क्या होता है डिजिटल डिमेंशिया? क्या ज्यादा मोबाइल चलाने से भी खाली हो सकता है दिमाग? रिसर्च में हुआ खुलासा

आज बदलते समय में टेक्नोलॉजी और हमारा साथ बहुत गहरा होता जा रहा है। तकनीक के नए-नए पहलुओं ने हमारी सोचने के दिशा को पूरी तरह बदलकर रख दिया है। लेकिन आजकल एक नई समस्या की चर्चा चल पड़ी है, जिसे 'डिजिटल डिमेंशिया' कहा जाता है। आइए जानते हैं इसे लेकर हुई एक रिसर्च के बारे में विस्तार से...

what is digital dementia

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आज तेजी से बदलते समय में डिजिटल टेक्नोलॉजी हमारी जिंदगी के कई पहलुओं पर अपना असर रख रही है। हाल ही के वर्षों में सामने आई नई टेक्नोलॉजी जैसे चैटबॉट्स और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसे टूल्स ने हमारे सोचने-समझने के तरीके को भी बदलकर रख दिया है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि जीवन को आसान बना रही तकनीक का हमारे दिमाग पर क्या असर पड़ता है? तकनीक के इस असर पर लंबे समय से बहस चल रही है। कुछ लोगों ने ‘डिजिटल डिमेंशिया’ नामक सिद्धांत देकर लोगों को डराने का भी काम किया है। जिसका साफ मतलब है कि स्मार्टफोन और इंटरनेट का इस्तेमाल जरूरत से ज्यादा करना बुजुर्गों की मेंटल हेल्थ को खराब कर रहा है। आइए जानते हैं इसके बारे में विस्तार से...

रिसर्च में हुआ खुलासा

बुजुर्गों के मानसिक स्वास्थ्य को लेकर हुई इस रिसर्च की मानें तो इस बात को कोई पुख्ता प्रमाण नहीं है कि मोबाइल का इस्तेमाल करने से बुजुर्गों की मेंटल हेल्थ खराब होती है। वही डिजिटल डिमेंशिया नाम का भी कोई खतरा नहीं है। अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सास और बॉयलर यूनिवर्सिटी के साझा प्रयास से हुए शोध में सामने आए आंकड़ों की मानें तो 50 साल से अधिक उम्र के लोगों में कंप्यूटर, स्मार्टफोन और इंटरनेट जैसी आधुनिक तकनीक का का इस्तेमाल करना उनकी मेंटल हेल्थ को किसी तरह का नुकसान नहीं पहुंचाता है। शोधकर्ताओं की मानें तो ये उनके दिमाग को और भी ज्यादा एक्टिव बनाए रखने में मदद कर सकता है।

क्या है डिजिटल डिमेंशिया?

डिमेंशिया एक दिमाग से जुड़ी ऐसी कंडीशन है, जिसमें हमारा दिमाग कमजोर होने लगता है। आमतौर पर ये बीमारी बुजुर्गों में देखने को मिलती है, लेकिन डिजिटल डिमेंशिया का सिद्धांत पहली बार साल 2012 में जर्मनी के न्यूरोसाइंटिस्ट 'मैनफ्रेड स्पिट्जर' ने दिया था। उनका कहना था कि तकनीक का जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल लोगों को मानसिक रूप से कमजोर बना रहा है। जिसमें दिए गए तर्कों के मुताबिक लोग अब फोन नंबर याद नहीं रखते और साधारण सी जानकारी भी गूगल करते हैं। जिसके पीछे कारण देते हुए वह कहते हैं कि जो लोग स्क्रीन पर ज्यादा समय बिताते हैं उन लोगों को इस तरह की समस्याओं का सामना ज्यादा करना पड़ता है।

क्या कहती है रिसर्च?

साइंस जर्नल नेचर ह्यूमन बिहेवियर में प्रकाशित इस रिसर्च की मानें तो डिजिटल डिमेंशिया जैसी समस्या के कोई ठोस वैज्ञानिक प्रमाण नहीं हैं। बल्कि ये बुजुर्गों के दिमाग को लंबे समय तक एक्टिव रखने में मददगार हो सकती है। नई स्टडी की मानें तो टेक्नोलॉजी से सिर्फ खतरे नहीं बल्कि इसके बहुत से फायदे भी हैं। हालांकि तकनीक का इस्तेमाल सही तरीके से किया जाना बहुत जरूरी है।

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गुलशन कुमार author

पॉटरी नगरी के नाम से मशहूर खुर्ज़ा शहर का रहने वाला हूं। हेल्थ, लाइफस्टाइल और राजनीति से जुड़े विषयों पर लिखने-पढ़ने का शौक है। Timesnowhindi.com में ...और देखें

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