World Parkinson Day : पार्किंसन रोग क्या होता है? जानें इसके कारण, लक्षण और उपचार
11 अप्रैल के दिन दुनिया भर में विश्व पार्किंसन दिवस मनाया जाता है। ये मस्तिष्क से जुड़ी एक बीमारी है, जिससे आपका पूरा शरीर प्रभावित होता है। आज हम आपको विस्तार से बताएंगे कि क्या होता है पार्किंसन और क्या हैं इसके कारण? इसके साथ ही जानिए पार्किंसन के लक्षण और उपचार।

Parkinson Disease
हर साल 11 अप्रैल का दिन दुनिया भर में विश्व पार्किंसन दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन को मनाने का उद्देश्य लोगों को इस गंभीर बीमारी के प्रति जागरूक करना है, जिससे इसके खतरे को कम किया जा सके। हेल्थ एक्सपर्ट्स की मानें तो पार्किंसन एक मस्तिष्क से जुड़ी समस्या है, जिसका असर धीरे-धीरे हमारे पूरे शरीर पर देखने को मिलता है। पार्किंसन को बूढ़े लोगों की बीमारी माना जाता है, क्योंकि इसके लक्षण ज्यादातर 60 साल की आयु के बाद ही देखने को मिलते हैं। आज विश्व पार्किंसन दिवस के मौके पर हम आपको इस रोग के बारे में विस्तार से बताने जा रहे हैं। इस विषय पर बेहतर जानकारी के लिए हमने हेल्थ एक्सपर्ट से बात की है। आइए जानते हैं क्या है ये बीमारी जानें इसके लक्षण और उपचार?
क्या है पार्किंसन रोग? - What is Parkinson Disease?
पार्किंसन मस्तिष्क से जुड़ा एक रोग है, जिसके चलते आपके दिमाग का कुछ हिस्सा खराब होने लगता है। इस रोग के बारे में हमें विस्तार से बताया प्रो. डॉ. रूपम बोरगोहिन जो यशोदा हॉस्पिटल के सीनियर कंसल्टेंट न्यूरोलॉजिस्ट और प्रोग्राम डायरेक्टर-पीडीएमडीआरसी ने। डॉक्टर के मुताबिक ये रोग धीरे-धीरे गंभीर समस्याओं का कारण बनता है। इस रोग का विकास उम्र बढ़ने के साथ-साथ होता है, जिसकी शुरुआत लगभग 60 साल की आयु के बाद होती है। हालांकि महिलाओं के मुकाबले पार्किंसन पुरुषों को ज्यादा प्रभावित करता है। इसके बाद भी अधिक उम्र इस रोग का कोई सेट पैमाना नहीं है, ये 20 साल के नौजवानों में भी देखने को मिल सकता है, लेकिन इसकी संभावना बहुत कम होती है।
पार्किंसन के कारण - Causes of Parkinson Disease
पार्किंसन की बात करें तो इसका कोई एक खास कारण सामने नहीं आता है, बल्कि इसके एक से अधिक कारण भी हो सकते हैं। पार्किंसन रोग का एक बड़ा कारण अनुवांशिक भी है, जिसका मतलब है कि ये रोग आपको अपने माता-पिता से विरासत में प्राप्त हो सकता है। हालांकि अभी तक के आंकड़ों की मानें तो आनुवंशिक रूप से पार्किंसन होने की संभावना केवल 10% है। इसके अलावा अल्जाइमर और हंटिंगटन जैसे रोग भी आपको पार्किंसन का शिकार बना सकते हैं। इनके साथ ही कुछ दवाओं के साइड इफेक्ट्स के कारण, कुछ जहरीले पदार्थों जैसे मैंगनीज की धूल, कार्बन मोनोऑक्साइड, वेल्डिंग से निकलने वाला धुआं और कीटनाशकों के संपर्क में आने पर पार्किंसन की समस्या हो सकती है।
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पार्किंसन के लक्षण - Symptoms of Parkinson Disease
- पार्किंसन रोग का सबसे पहला और अहम लक्षण है कि इसमें आपकी मांसपेशियां कमजोर होकर कांपने लगती हैं। ये कंपन मांसपेशियों को रिलैक्स करने पर और भी ज्यादा बढ़ जाता है।
- पार्किंसन रोग से पीड़ित व्यक्ति के शरीर का ढांचा झुकने लगता है, और उसकी चाल धीमी हो जाती है। हालांकि ये लक्षण बीमारी की गंभीर स्थिति में दिखाई देता है।
- बार-बार पलक न झपकना और चेहरे की मांसपेशियों पर अपना नियंत्रण कम होना पार्किंसन का एक लक्षण है।
- पार्किंसन रोग से पीड़ित होने पर आपको पेन से लिखते समय खराब लिखावट का सामना करना पड़ सकता है। क्योंकि मांसपेशियों पर आपका नियंत्रण कम हो जाता है।
पार्किंसन का उपचार - Treatment of Parkinson Disease
प्रो. डॉ. रूपम बोरगोहिन की मानें तो पार्किंसन्स एक ऐसी बीमारी है जिसका अभी तक पूरी तरह से इलाज नहीं मिल पाया है, लेकिन हां, इसके लक्षणों को दवाओं और इलाज से काफी हद तक कंट्रोल किया जा सकता है। अगर बीमारी की पहचान शुरुआत में हो जाए, तो डॉक्टर्स इसके लक्षणों जैसे हिलना (कंपन), शरीर में जकड़न, धीमी चाल, बैलेंस की समस्या और अजीब सी चाल (जैसे पैर घसीटते हुए चलना या अचानक चलते-चलते रुक जाना) इन सब पर काबू पाने की कोशिश कर सकते हैं।
इस बीमारी में दवाओं का मकसद होता है दिमाग में डोपामाइन नाम का एक केमिकल बढ़ाना, जिससे शरीर की हरकतों पर कंट्रोल बेहतर हो सके। बीमारी के शुरुआती दौर में दवाएं अच्छी तरह असर करती हैं और मरीज को राहत मिलती है। लेकिन वक्त के साथ-साथ दवाओं का असर थोड़ा कम होने लगता है, और कुछ लोगों को हाथ-पैर या चेहरे में अनचाहे झटके (डिस्किनेसिया) आने लगते हैं। ऐसे मामलों में एक और उपाय होता है डीप ब्रेन स्टिमुलेशन (DBS)।
डीप ब्रेन स्टिमुलेशन (DBS) क्या है और इससे कैसे इलाज किया जाता है
प्रो. डॉ. रूपम बोरगोहिन यह एक खास तरह की सर्जरी है जो उन मरीजों के लिए होती है जो चार साल या उससे ज्यादा वक्त से पार्किंसन्स से जूझ रहे होते हैं, और दवाओं से उन्हें फायदा तो मिलता है लेकिन मोटर प्रॉब्लम्स (जैसे चाल में गड़बड़ी, झटके आदि) बढ़ने लगती हैं। DBS कराने से पहले यह भी देखा जाता है कि मरीज का दिमाग ठीक से काम कर रहा हो (यानि याददाश्त या सोचने-समझने की शक्ति में कोई बड़ी कमी न हो), और कोई बड़ी दूसरी बीमारी न हो।
अब बात करें DBS सर्जरी की तो इसमें डॉक्टर दिमाग के अंदर एकदम तय जगहों पर पतली सी वायर (जिसे ‘लीड’ कहते हैं) लगाते हैं। इसके साथ ही छाती में त्वचा के नीचे एक छोटा-सा डिवाइस लगाया जाता है, जो बैटरी से चलता है कुछ-कुछ पेसमेकर जैसा। ये डिवाइस बहुत हल्के-हल्के इलेक्ट्रिक सिग्नल दिमाग को भेजता है, जिससे गलत तरीके से काम कर रहे नर्व सिग्नल शांत हो जाते हैं और शरीर की हिलती-डुलती हरकतें काफी हद तक थम जाती हैं।
कुल मिलाकर, अगर सही समय पर सही इलाज मिल जाए, तो पार्किंसन्स के साथ भी अच्छी और बेहतर जिंदगी जीना बिल्कुल मुमकिन है।
डिस्क्लेमर: प्रस्तुत लेख में सुझाए गए टिप्स और सलाह केवल आम जानकारी के लिए हैं और इसे पेशेवर चिकित्सा सलाह के रूप में नहीं लिया जा सकता। किसी भी तरह का फिटनेस प्रोग्राम शुरू करने अथवा अपनी डाइट में किसी तरह का बदलाव करने से पहले अपने डॉक्टर से परामर्श जरूर लें।
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