रेटिनोब्लास्टोमा: बच्चों में आंखों का कैंसर है खतरनाक, समय रहते पहचानें लक्षण, एक्सपर्ट से जानें जरूरी बातें

What is Retinoblastoma: बच्चों की आंखों को लेकर रेटिनोब्लास्टोमा नाम के खतरे पर जागरूक होने की जरूरत है। आंकड़े बताते हैं कि इस कैंसर के सबसे ज्यादा मामले भारत से आते हैं और समय पर लक्षण पहचान लिए जाएं तो इसका इलाज मुमकिन हैं। पढ़ें आई स्पेशलिस्ट द्वारा दी गई ये जानकारी।

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बच्चों की आंखों के कैंसर के बारे में जरूरी जानकारी

What is Retinoblastoma: बचपन में होने वाले कैंसरों में से रेटिनोब्लास्टोमा एक मूक खतरा है। यह दुर्लभ नेत्र कैंसर मुख्य रूप से पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों को प्रभावित करता है, फिर भी इसके बारे में जागरूकता बहुत कम है। नतीजतन, कई मामलों का तब तक पता नहीं चल पाता जब तक कि ये काफी आगे की स्टेज तक नहीं पहुंच जाते हैं जिससे दृष्टि और जीवन दोनों को खतरा पैदा होता है।

रेटिनोब्लास्टोमा के बारे में जानना और यह समझना महत्वपूर्ण है

अक्सर रेटिनोब्लास्टोमा को नजरअंदाज कर दिया जाता है और जागरूकता की कमी का एक मुख्य कारण यह है कि ये बीमारी बहुत ही दुर्लभ है, जिसे अक्सर अधिक प्रचलित बीमारियों के कारण नज़रअंदाज कर दिया जाता है। इसके अतिरिक्त, इसके लक्षण सूक्ष्म हो सकते हैं या बचपन की सामान्य बीमारी के कारण हो सकते हैं, जिससे निदान में विलम्ब होता है। अक्सर ग्रामीण क्षेत्रों में सांस्कृतिक वर्जनाएं या आंखों के स्वास्थ्य के बारे में गलत धारणाएं भी चर्चाओं और जांच में बाधा डाल सकती हैं। संकरा आई हॉस्पिटल, आनंद के वीआर कंसल्टेंट डॉ. बिरवा दवे कहते हैं कि माता-पिता को इन लक्षणों के बारे में अच्छी तरह जागरूक होना चाहिए क्योंकि बच्चे अपने शरीर में होने वाले किसी भी बदलाव को नहीं पहचान पाएंगे जिससे उपचार में देरी हो सकती है।

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रेटिनोब्लास्टोमा, जिसके भारत में प्रति वर्ष 1500 से अधिक मामले सामने आते हैं और ये आंकड़ें दुनिया भर में रिपोर्ट किए जाने वाले मामलों में से सबसे अधिक हैं। ये एक तरह का नेत्र कैंसर है जो आंख के पीछे की तरफ मौजूद प्रकाश के प्रति संवेदनशील परत रेटिना में असामान्य कोशिका वृद्धि से शुरू होता है। यह परत आंख में प्रवेश करने वाले प्रकाश का पता लगाती है और छवि की व्याख्या के लिए मस्तिष्क को संकेत भेजती है। यह कैंसर आम तौर पर छोटे बच्चों में होता है, जिसका पता अक्सर 2 साल की उम्र से पहले ही लग जाता है। यह आम तौर पर एक आंख को प्रभावित करता है, हालांकि कभी-कभी यह दोनों आंखों में भी हो सकता है।

माता-पिता को अपने बच्चे की आंखों में सफ़ेद चमक या तिरछापन जैसे संकेतों को लेकर सतर्क रहना चाहिए, खासकर फ़्लैश फोटोग्राफी में। आंखों का लाल पड़ना, सूजन या आईरिस के रंग में बदलाव भी किसी समस्या का संकेत हो सकता है। नियमित रूप से आंखों की जांच करवाना आवश्यक है, खासकर अगर परिवार में रेटिनोब्लास्टोमा या अन्य आनुवंशिक विकारों का इतिहास रहा हो तो ये और भी जरूरी हो जाता है।

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अगर माता-पिता को कोई असामान्य लक्षण दिखाई देते हैं, तो उन्हें तुरंत बाल रोग विशेषज्ञ से परामर्श लेना चाहिए। शीघ्र निदान से कैंसर की सीमा के आधार पर कीमोथेरेपी, विकिरण चिकित्सा या यहां तक कि सर्जरी सहित कई तरह के उपचार विकल्प उपलब्ध हो सकते हैं। इसका लक्ष्य केवल बच्चे का जीवन बचाना ही नहीं बल्कि उनकी दृष्टि और जीवन की गुणवत्ता को भी सुरक्षित रखना है।

रेटिनोब्लास्टोमा से निपटने में माता-पिता, देखभाल प्रदाताओं और स्वास्थ्य सेवा पेशेवरों को लक्षित करते शैक्षिक अभियान आवश्यक हैं। लक्षणों, जोखिम कारकों और नियमित नेत्र परीक्षण के महत्व के बारे में जानकारी प्रदान करने से शीघ्र निदान और बेहतर परिणाम प्राप्त करने में मदद मिल सकती है। सोशल मीडिया, सामुदायिक कार्यक्रम और स्कूल कार्यक्रमों जैसे विभिन्न चैनलों का उपयोग करके इसके बारे में जागरूकता को अधिक लोगों तक पहुंचाने में मदद मिल सकती है।

रेटिनोब्लास्टोमा भले ही दुर्लभ है, लेकिन बच्चों और परिवारों पर इसका प्रभाव बहुत अधिक होता है। जागरूकता फैलाकार यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि देरी से निदान और उपचार के कारण किसी भी बच्चे की दृष्टि या जीवन को अनावश्यक रूप से नुकसान न पहुंचे। डॉ. बिरवा ने कहा कि अब समय आ गया है कि आंखों के स्वास्थ्य को प्राथमिकता दी जाए और माता-पिता को अपने बच्चों की दृष्टि की रक्षा करने हेतु आवश्यक ज्ञान और संसाधनों से सशक्त बनाया जाए।

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मेधा चावला author

हरियाणा की राजनीतिक राजधानी रोहतक की रहने वाली हूं। कई फील्ड्स में करियर की प्लानिंग करते-करते शब्दों की लय इतनी पसंद आई कि फिर पत्रकारिता से जुड़ गई।...और देखें

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