सद्गुरु से जानें मानसिक पीड़ा का कौन है जिम्मेदार, कैसे पा सकते हैं मानसिक कष्टों से मुक्ति
जरूरत से ज्यादा सोचने से हम खुद को ही मानसिक कष्ट देते हैं। सद्गुरु से इस बारे में विस्तार से जानें। उन्होंने बताया है कि अगर हम लगातार ऐसे विचारों से घिरे रहते हैं तो अपने लिए ही उलझनें बढ़ा लेते हैं। ऐसे में हमारे कष्ट के लिए किसे जिम्मेदार माना जाए।
Sadhguru on Mental Health
Sadhguru on Mental Health: किसी न किसी वजह को लेकर हम सभी मानसिक कष्ट से गुजरते रहते हैं। कैसे मुक्ति पा सकते हैं मानसिक कष्टों से? आइये जानते हैं कि सबसे पहले ये पता लगाना होगा कि जिम्मेदार कौन है ...
प्रश्न: मैं अपने विचारों में जीने से थक चुका हूं। ऐसा लगता है कि मैं हमेशा अपने विचारों में रहता हूं। सद्गुरु मुझे समझ में नहीं आ रहा कि मैं अपने साथ क्या करूं?
सद्गुरु: अच्छा तो आप कहां रहना चाहते हैं? जहां आप रह रहे हैं, वह वाकई कोई विकल्प नहीं है। इस धरती पर आप अपने रहने की जगह चुन सकते हैं, मसलन इस जगह रहें या उस जगह रहें। आप यहां बैठें या वहां बैठें, आप किसी भी जगह घर बना सकते हैं या अपना तंबू गाड़ सकते हैं । इसमें कोई दिक्कत नहीं है।
जिसे आप जीवन कहते हैं, वह फिलहाल आपके भौतिक शरीर में घटित हो रहा है, आपके विचारों में नहीं। लेकिन फिलहाल आपने अपने विचारों और भावनाओं को खास महत्व दे रखा है। आपको लगता है कि आपके विचार और भावनाएं आपके अस्तित्व से ज्यादा महत्वपूर्ण हैं। इसकी वजह से आपको लगता है कि आप अपने विचारों या भावनाओं में रहते हैं। कोई भी व्यक्ति अपने मन या ख्यालों में नहीं रहता।
आज लोग इतने सक्षम हो गए हैं कि वो हर चीज से अपने लिए मुसीबतें खड़ी कर सकते हैं। अगर आप चाहें तो आपको अभी गोरिल्ला बना सकता हूं, तब आपको ख्यालों में रहने की ज्यादा जरूरत नहीं पड़ेगी। लेकिन कभी-कभी गोरिल्ले भी चिंतित दिखाई देते हैं। क्या मैं आपके क्रमिक विकास की घड़ी को उल्टा घुमा दूं? अगर आपको गोरिल्ला होना अच्छा नहीं लगता तो मैं आपको लंगूर बना सकता हूं। अगर लंगूर होना भी अच्छा नहीं लगता तो मैं आपको साधारण बंदर या कोई भी रेंगने वाला जीव बना सकता हूं। आप क्या बनना चाहेंगे? या फि र आप क्रमिक विकास की तीसरी अवस्था में जाना चाहेंगे? तीसरी अवस्था यानी तीसरा अवतार। आप जानते हैं कि तीसरा अवतार क्या है?
क्या आप जानते हैं कि पहला अवतार क्या है? आपको इन अवतारों के बारे में पता होना चाहिए। पहला अवतार है मत्स्य अवतार यानी मछली रूप। दूसरा अवतार था कूर्मावतार यानी कछुआ रूप। तीसरा अवतार था वराहावतार यानी सुअर रूप, मैं आपको उस अवस्था में ला सकता हूं। इस अवस्था में कोई चिंता नहीं रहती, पेट भरा रहता है। अगर आप सुअर नहीं बनना चाहते तो फि र अपने कल्याण के लिए अपने दिमाग का इस्तेमाल ठीक तरीके से कीजिए। इंसानों को यह दिया ही इसलिए गया है, ताकि वह इसका इस्तेमाल करके दूसरे प्राणियों से बेहतर जिंदगी जी सकें, न कि इससे अपनी जिंदगी और दूभर बना लें। आपको एक अच्छा खासा दिमाग यह सोच कर दिया गया था कि आप दूसरे प्राणियों से बेहतर जिंदगी जिएंगे, लेकिन यही दिमाग आपके लिए सबसे बड़ी मुसीबत बन गया है। इसका मतलब है कि इसे वापस लेकर आपको फि र से सुअर बना देना चाहिए।
शरीर और मन उपहार हैं
जीवन ने आपको कई बहुमूल्य उपहार दिए हैं - उनमें से एक है आपका शरीर और दूसरा आपका मन, इसके अलावा कई और चीजें भी हैं, लेकिन ये दो सबसे अद्भुत उपहार हैं जो आपको मिले हैं। जैसे ही आप इन बेहतरीन तोहफों के बारे में शिकायत करना शुरू करते हैं, वैसे ही आप इन दोनों चीजों को परेशानी में डाल देते हैं। ऐसी हालत में, शायद आपको अच्छा नहीं लगे फिर भी मैं आपसे कहना चाहूंगा कि आप जीने के बिल्कुल योग्य नहीं हैं। अगर आप इस शरीर को ढंग से रखना नहीं जानते हैं, अगर आप इस शरीर में होने का आनंद नहीं उठा सकते, अगर आपको यह पता नहीं कि यह कितने कमाल की चीज है, तो आप एक इंसान का जीवन जीने के लिए पूरी तरह से अयोग्य हैं। ऐसे में आपको वापस वराह या सुअर योनि में चले जाना चाहिए। अगर आप चाहें तो यह सर्जरी द्वारा आपके लिए किया जा सकता है। अगर हम आपके मस्तिष्क का तीन चौथाई भाग निकाल दें तो आप बस जंगली सुअर की तरह घुरघुराते रहेंगे।
शारीरिक पीड़ा और मानसिक पीड़ा अलग-अलग हैं
दुनिया में आपको बहुत तरह के लोगों की संगति मिलती है, इसलिए आपको लगता है कि आपके पास एक बहाना है। लेकिन आपकी इस पीड़ा के लिए कोई बहाना नहीं काम करेगा। अगर कोई शारीरिक तकलीफ आपको पीड़ा दे रही है तो भी कोई बहाना नहीं चलेगा, हालांकि छोटा-मोटा कोई बहाना कभी कभार चल सकता है। अगर भौतिक शरीर तकलीफ में है तो हम उसे दूसरे तरीके से देखते हैं। अगर आप अपने को खुद ही पीड़ा दे रहे हैं तो उस स्थिति में आपके प्रति करुणा का क्या मतलब है? मैं जानना चाहता हूं कि जो व्यक्ति खुद को ही चोट पहुंचाने के लिए जिम्मेदार है, उसके प्रति करुणा की क्या जरूरत है? अगर कोई दूसरा व्यक्ति आपको चोट पहुंचा रहा है तो आपको करुणा की जरूरत हो सकती है। लेकिन अगर आप खुद ही अपने आप को कुरेद रहे हों तो आपको करुणा की जरूरत है या आपके सिर पर एक चपत लगाने की जरूरत है?
अगर पीड़ाएं मन में हैं - तो कारण आप हैं
आपको एक बात और समझने की जरूरत है कि अगर आपकी पीड़ा मन में है तो इसका मतलब है कि आपने अपनी पीड़ाएं खुद पर थोपी हुई हैं। इसे कोई दूसरा आप पर नही थोप सकता। शारीरिक पीड़ा तो फिर भी कोई दूसरा आपको दे सकता है, लेकिन मानसिक तौर पर आप जो भी कर रहे हैं वह सौ फ ीसदी आपका किया धरा है। इसे ठीक करने के लिए आपको ही इस पर काम करना होगा। इसके लिए आपको सभी तरह के उपकरण दिए गए हैं, बस आपको उनका इस्तेमाल करना होगा। आप दीर्घकालिक आत्महत्या की ओर बढ़ रहे हैं, क्योंकि खुद को पीड़ित करना भी एक तरह से किश्तों में आत्महत्या करने जैसा ही है। अब यह आपको तय करना है कि आप किश्तों में आत्महत्या करना चाहते हैं या आप इस स्थिति से बाहर निकलना चाहते हैं। अगर आप बाहर आना चाहते हैं तो हम आपको भरोसा दिलाते हैं कि हम इसमें आपकी मदद करेंगे; आपको आसरा
देंगे, आपको भोजन देंगे, बस आपको इस पर काम करना होगा। इतना ही नहीं, आपको जो करना है, वो भी हम बताएंगे। अब इससे ज्यादा आपको और क्या चाहिए?
कोई दूसरा व्यक्ति समाधान नहीं दे सकता
आपको क्या लगता है कि आसमान से कोई आएगा और आपकी सारी दुख और तकलीफें दूर कर देगा। ऐसा कभी नहीं होता। इस धरती पर मसीहा आए, भगवान आए, देवियां आईं, फिर भी लोगों की तकलीफें कम नहीं हुईं। ये लोग आए और चले गए, लेकिन दुखी लोग आज भी दुखी हैं। भगवान का सहारा होने के बाद भी वे दुखी हैं। इसके लिए न तो कोई बहाना चलेगा और न ही कोई कारण माना जाएगा। आपकी इन सारी तकलीफों का एक ही कारण है - और वो हैं आप खुद। अगर मैं आपसे कहता हूं कि आप सजग नहीं हैं या बेसुध हैं तो आप उसी को अपनी ढाल के रूप इस्तेमाल करने लगेंगे, ‘अरे, मैं तो बेसुध हूं, मैं क्या कर सकता हूं ? ’तो मेरा जवाब होगा, ‘आप बेसुध नहीं आप बेवकूफ हैं। आप खुद को कुरेदते रहेंगे और शिकायत भी करेंगे कि यह चुभता है। अगर आपको पीड़ा पसंद है तो मुझे कोई आपत्ति नहीं। आप खुद को कुरेदना चालू रखिए और शिकायत करते रहिए कि मुझे दर्द हो रहा है, मुझे चुभन हो रही है। इसका मतलब है कि आप निरे मूर्ख हैं।
कोई भी आध्यात्मिक गुरु यह नहीं कर सकता कि ऐसी हालत में आपको पुचकारे, सहलाए और सांत्वना दे। मैं यहां आपको तसल्ली या दिलासा देने के लिए नहीं हूं; मैं यहां आपको समाधान देने के लिए हूं। अगर आप समाधान चाहते हैं तो आपको समझना होगा कि खुद को प्रताडि़त करना कोई बचाव न होकर निरी मूर्खता है। अगर आप इस बात को समझेंगे तो आप इससे बाहर आ सकते हैं। लेकिन अगर आपको लगता है कि पीड़ा को झेलना समझदारी है, तो झेलिए पीड़ा। अगर आपको यह पसंद है तो इसमें मुझे क्या दिक्कत है? अगर आपको त्रासदी पसंद है तो मैं क्या कर सकता हूं?
तरीका आपको ही अमल में लाना होगा
किसी दूसरे के आनंद व अनुभव से मेरा कोई विरोध नहीं, फिर चाहे यह आनंद किसी भी चीज से मिलता हो। कुछ लोग खुशियों का मजा लेते हैं तो कुछ लोगों को पीड़ा में आनंद आता है, कौन किससे आनंद लेता है यह उस पर निर्भर करता है। हां अगर आपको इससे शिकायत है तो इसका मतलब है कि आपको इसमें मजा नहीं आ रहा। अगर आपको इसमें मजा नहीं आ रहा तो आपको इसे ठीक करना चाहिए, इसे रोकना चाहिए। सवाल आता है कि मैं इसे कैसे रोकूं? अगर आप इसे रोकने का तरीका नहीं जानते तो वो तरीका हम आपको बताएंगे। लेकिन क्या आप इसके लिए वक्त, उर्जा और अपना फोकस लगाने के लिए तैयार हैं? अगर आप इसके लिए तैयार है तो हमारे पास हर इंसान के लिए समाधान है। लेकिन ध्यान रखिए, अगर कोई व्यक्ति सुबह अपने दांत साफ नहीं करना चाहता, लेकिन वह दिनभर फूलों की तरह महकना चाहता है तो यह नहीं हो सकता। जीवन इस तरीके से घटित नहीं होता। अगर आप मिंट की खूशबू चाहते हैं तो आपको सुबह अपने दांत साफ करने ही होंगे। खिलने का मतलब ही है कि आपको अधिक कोशिश करनी होगी।
(सद्गुरु द्वारा डिज़ाइन किया गया, इनर इंजीनियरिंग अब हिंदी में 7-चरणीय ऑनलाइन कार्यक्रम के रूप में उपलब्ध है, जो मन, शरीर, भावनाओं और ऊर्जा को नियंत्रित करने में मदद करता है)
भारत में पचास सर्वाधिक प्रभावशाली गिने जाने वाले लोगों में, सद्गुरु एक योगी, दिव्यदर्शी, और युगदृष्टा हैं और न्यूयार्क टाइम्स ने उन्हें सबसे प्रचलित लेखक बताया है। 2017 में भारत सरकार ने सद्गुरु को उनके अनूठे और विशिष्ट कार्यों के लिए पद्मविभूषण पुरस्कार से सम्मानित किया है। वे दुनिया के सबसे बड़े जन-अभियान, जागरूक धरती - मिट्टी बचाओ के प्रणेता हैं, जिसने 4 अरब लोगों को छुआ है।
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