World Thalassemia Day 2023: क्यों मनाया जाता है वर्ल्ड थैलेसीमिया डे? जानिए इतिहास, थीम और महत्व
World Thalassemia Day 2023: विश्व थैलेसीमिया दिवस लोगों को बीमारी से जुड़े मिथकों और इससे जुड़े सामाजिक कलंक के बारे में भी शिक्षित करता है और थैलेसीमिया रोगियों को सामान्य जीवन जीने में मदद करता है। हर साल 8 मई को विश्व थैलेसीमिया दिवस मनाया जाने वाला एक वार्षिक दिवस है।
World Thalassemia Day 2023: जानिए विश्व थैलेसीमिया दिवस का इतिहास, थीम, लक्षण और उपचार
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ऐसे में इन मरीजों को हर 20 से 25 दिन में बाहर से खून देना पड़ता है। विशेषज्ञों की राय है कि अगर इस बीमारी का ठीक से इलाज न किया जाए तो यह मौत का कारण बन सकती है। इस बीमारी के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए हर साल 8 मई को विश्व थैलेसीमिया दिवस मनाया जाता है। जानिए इस दिन का इतिहास और इस बीमारी से जुड़े कुछ अहम तथ्य।
विश्व थैलेसीमिया दिवस का इतिहास - World Thalassemia Day History 2023
विश्व थैलेसीमिया दिवस पहली बार 1994 में मनाया गया था। थैलेसीमिया इंटरनेशनल फेडरेशन के अध्यक्ष और संस्थापक जॉर्ज एंगेल्सॉस ने इस बीमारी से पीड़ित सभी रोगियों और उनके माता-पिता के सम्मान में दिन की शुरुआत की। इसका मुख्य उद्देश्य लोगों में इस बीमारी के प्रति जागरुकता पैदा करना था।
विश्व थैलेसीमिया दिवस 2023 की तारीख और थीम - World Thalassemia Day 2023 Date and Theme
विश्व थैलेसीमिया दिवस 2023 सोमवार, 8 मई को मनाया जाएगा। इस वर्ष की थीम है, "जागरूक रहें। साझा करें। देखभाल करें।"
थैलेसीमिया के दो प्रकार - Two Types of Thalassemia
थैलेसीमिया माइनर और मेजर दो तरह का होता है। जब एक साथी में दोषपूर्ण गुणसूत्र होता है, तो बच्चे को थैलेसीमिया माइनर होता है। माइनर थैलेसीमिया में मरीज सामान्य जीवन जी सकता है। लेकिन जब पति-पत्नी दोनों के गुणसूत्रों में दोष होता है तो बच्चे को थैलेसीमिया मेजर हो जाता है। ऐसे में उसे बार-बार बाहर से ब्लड लेना पड़ता है।
थैलेसीमिया के लक्षण - World Thalassemia Day Symptoms 2023
थैलेसीमिया रोग के लक्षण भी बहुत सामान्य होते हैं। जैसे लगातार कमजोरी, थकान महसूस होना, पेट में सूजन, गहरा पेशाब, त्वचा का पीला रंग, साथ ही नाखून, आंखें और जीभ का पीला पड़ना, बच्चों का रुका हुआ विकास इस बीमारी से जुड़े कुछ लक्षण हैं।
थैलेसीमिया उपचार - World Thalassemia Day Treatment 2023
थैलेसीमिया का एकमात्र इलाज बोन मैरो ट्रांसप्लांट को माना जाता है। लेकिन यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि केवल 20 से 30 प्रतिशत रोगियों को ही उनके परिवार से HLA समरूप दाता मिल पाता है। ब्लड ग्रुप की कमी के कारण 70 फीसदी मरीजों का इलाज नहीं हो पाता है। ऐसे में उन्हें समय-समय पर रक्तदान करना पड़ता है।
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