World Thalassemia Day 2023 : शरीर में रेड ब्लड सेल्स से जुड़ी गंभीर बीमारी थैलेसीमिया; एक्सपर्ट से जानिए इसके लक्षण और प्रकार
World Thalassemia Day 2023 : जो लोग थैलेसीमिया के वाहक होते हैं वे आमतौर पर स्वस्थ होते हैं और उन्हें हल्का एनीमिया होता है। जब तक कोई विशेष परीक्षण नहीं किया जाता है, तब तक यह पता नहीं चलेगा कि व्यक्ति थैलेसीमिया वाहक है। इसका इलाज आमतौर पर महंगा है, आइये एक्सपर्ट से जानिए इस बीमारी के खास लक्षण, प्रकार और उपचार -
world thalassemia day 2023: थैलेसीमिया कैसे होता है?
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थैलेसीमिया क्या होता है? - What is Thalassemia?
ग्लैम्यो हेल्थ (Glamyo Health) की को-फाउंडर डॉ प्रीत पाल ठाकुर ने टाइम्स नाउ नवभारत डिजिटल से बातचीत में बताया कि थैलेसीमिया एक इंटरनल ब्लड रिलेटेड डिजीज होता है जिसमें ब्लड में हेमोग्लोबिन बनाने वाले एक या एक से अधिक जीनों में मुख्य अविकार होता है। इससे ब्लड में हेमोग्लोबिन की मात्रा कम हो जाती है जो शरीर के समस्त अंगों को ओक्सीजन पुर्ति करने के लिए जरूरी होता है। इस रोग की वजह से प्रभावित होने वाले व्यक्ति को उनकी ज़िन्दगी भर के लिए उपचार और पालनपोषण की आवश्यकता होती है।
थैलेसीमिया के प्रकार - Types of Thalassemia
बीटा थैलेसीमिया: इसमें बीटा ब्लड सेल्स के डिसऑर्डर के कारण थैलेसीमिया होता है।
अल्फा थैलेसीमिया: इसमें अल्फा ब्लड सेल्स के डिसऑर्डर के कारण थैलेसीमिया होता है।
इस रोग के कुछ महत्वपूर्ण प्रभाव - Some Important Effects of Thalassemia Disease
शरीर में ऑक्सीजन की कमी: थैलसेमिया रोगी के ब्लड में हीमोग्लोबिन की कमी होती है, जो उनके शरीर में ऑक्सीजन की कमी का कारण बनती है। इसका सीधा प्रभाव शरीर के अंगों को नुकसान पहुंचता है जो उनमें ऑक्सीजन के संचार (Lack of oxygen in the body) को अवरुद्ध करता है।
ब्लड प्रेशर में वृद्धि: थैलसेमिया के रोगी के शरीर में हीमोग्लोबिन की कमी होने के कारण ब्लड की सामान्य वृद्धि नहीं होती है। यह ब्लड की संचार और ब्लड प्रेशर (Increase in blood pressure) में वृद्धि के कारण होता है।
थैलसीमिया के कुछ महत्वपूर्ण लक्षण - Some important symptoms of Thalassemia
खून की कमी: थैलसीमिया रोग में आयरन के एकत्रीकरण न कर पाने के कारण ब्लड में हीमोग्लोबिन (Anemia) की मात्रा में कमी होती है। इससे ब्लड संचार में दिक्कत होती है और व्यक्ति थकान महसूस करता है।
पेट में सूजन: थैलसीमिया रोग से पीड़ित व्यक्ति के शरीर के अंगों में आयरन के एकत्रीकरण होता है। इससे पेट में भी सूजन (Abdominal bloating) हो सकती है जो व्यक्ति को आराम नहीं देती है।
बौने में कमजोरी: आयरन की कमी के कारण थैलसीमिया रोग से पीड़ित व्यक्ति के बौने में कमजोरी (Weakness in Dwarves) होती है। इससे उन्हें चलने में दिक्कत होती है और वे जल्दी थक जाते हैं।
खांसी और थकान: थैलसीमिया रोग से पीड़ित व्यक्ति में सामान्य से अधिक खांसी और थकान (Cough and fatigue) होती है।
थैलेसीमिया के मरीजों की त्वचा पर कुछ विशेष असर पड़ते हैं जो निम्न रूप में हैं: जिसमें त्वचा का रंग धुंधला पड़ जाता है या जैसे अंगूर के रंग का हो जाता है। त्वचा कुछ हद तक सूखने लगती है और अत्यधिक दुखती है। त्वचा की लालिमा बढ़ जाती है जो की एक सामान्य त्वचा की तुलना में अधिक होती है। त्वचा छिलने लगती है और दाने भी पड़ सकते हैं। थैलेसीमिया के मरीजों की त्वचा रूखी और बेजान लगती है।
थैलेसीमिया कब होता है?- When does Thalassemia happen?
यदि माता-पिता दोनों रोग के वाहक हैं, तो उनके बच्चे में थैलेसीमिया विकसित होने की 25 प्रतिशत संभावना होती है। जिन लोगों को यह रोग होता है वे रक्तदान से जीवित रहते हैं। ऐसे व्यक्ति के शरीर में बहुत अधिक आयरन जमा हो जाता है, जिसे दवा देकर दूर करना पड़ता है। यदि ब्लड सुरक्षित नहीं है, तो उन्हें हेपेटाइटिस बी, सी, एचआईवी का भी खतरा बढ़ जाता है। शरीर में आयरन की मात्रा अधिक होने से लिवर, हार्ट आदि में कई तरह की समस्याएं हो सकती हैं। ऐसे में अकेले ब्लड ट्रांसफ्यूजन से भी 25-30 साल बाद व्यक्ति के जीवित रहने की संभावना भी कम हो जाती है।
थैलेसीमिया का उपचार - Treatment of Thalassemia
स्टेम सेल ट्रांसप्लांट ही एकमात्र उपचार विकल्प है। इसके अलावा जीन थेरेपी का विकल्प भी उपलब्ध है लेकिन यह भारत में उपलब्ध नहीं है क्योंकि यह बहुत महंगा है। इसमें थैरेपी के जरिए जीन रिपेयर किया जाता है। आयरन के जमाव को दूर करने के लिए दवाएं दी जाती हैं। डॉक्टर के नियमित फॉलोअप में रहकर व्यक्ति सामान्य जीवन जी सकता है। कंपलीट ब्लड काउंट टेस्ट बताएगा और डॉक्टर मैन्युअल जांच भी करेगा, क्योंकि लिवर और प्लीहा दोनों बढ़े हुए हैं। क्योंकि शरीर में ब्लड ठीक से नहीं बन पाता है। ऐसी स्थिति में लिवर और प्लीहा अधिक काम करते हैं जिससे ब्लड ठीक से बनता है। ऐसे मामलों में निदान के तुरंत बाद इलाज शुरू कर देना चाहिए, ताकि बाद में समस्या गंभीर न हो जाए।
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