2024 का आम चुनाव कई मायनों में होगा खास, बनेंगे और टूटेंगे कई रिकॉर्ड

2024 का आम चुनाव कई मायनों में खास होने जा रहा है। अगर मौजूदा सरकार को फिर मौका मिलता है तो पीएम नरेंद्र मोदी, जवाहर लाल नेहरू की बराबरी कर लेंगे। अगर सरकार को मौका नहीं मिलता तो यह साफ हो जाएगा कि जनता किसी खास दल को तीसरी दफा मौका नहीं देने के पक्ष में है। अगर गैर बीजेपी, गैर कांग्रेसी चेहरे के हाथ में सत्ता आती है तो देश के सामने तीसरा मोर्चा हकीकत बन कर सामने होगा।

बुधवार यानी 18 जनवरी को एक तरफ पीएम नरेंद्र मोदी 2024 आम चुनाव के लिए बीजेपी के नेताओं को जीत का मूल मंत्र दे रहे थे तो हैदराबाद में के चंद्रशेखर राव अपनी पार्टी बीआरएस के बैनर तले विपक्षी दलों को इकट्ठा कर बीजेपी को राह आसान नहीं होने का संदेश दिया। हालांकि देश की मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस के नेता केसीआर के मंच से दूर रहे। सवाल यह है कि 2024 का चुनाव अलग अलग दलों या शख्सियतों के लिए खास क्यों होगा। सबसे पहले बीजेपी और नरेंद्र मोदी के संदर्भ में 2024 के नतीजों को समझने की कोशिश करेंगे। अगर बात नरेंद्र मोदी की करें तो स्वाभविक है कि अगर आम चुनाव 2024 में जीत दर्ज करते हैं तो वो पंडित जवाहर लाल नेहरू और इंदिरा गांधी की कतार में आ जाएंगे।

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नेहरू लगातर तीन बार बने पीएम

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जवाहर लाल नेहरू ने चुने हुए सांसद के तौर पर 1952, 1957, 1962 में देश की कमान संभाली थी। हालांकि वो देश के पीएम 1947 से ही थे। लेकिन उनका निर्वाचन नहीं बल्कि चयन किया गया था। अगर बात इंदिरा गांधी की करें तो वो 1967, 1971 और 1980 में पीएम बनीं। लेकिन वो अपनी नाना की तरह लगातार तीन बार पीएम बनने का रिकॉर्ड नहीं कायम कर सकीं। अगर 2024 में नरेंद्र मोदी सत्ता में आते हैं तो वो जवाहर लाल नेहरू की बराबरी कर लेंगे।लगातार दो बार देश की कमान संभालने के बाद नरेंद्र मोदी, डॉ मनमोहन सिंह की बराबरी कर चुके हैं। अगर बात गुलजारी लाल नंदा की करें तो उन्हें भी देश को दो बार संभालने का मौका मिला। लेकिन उन्हें यह जिम्मेदारी अल्प समय के लिए जवाहर लाल नेहरू और लाल बहादूर शास्त्री के निधन के बाद मिली थी। नरेंद्र मोदी की अगुवाई में बीजेपी 2014 में सत्ता में आई तो कई तरह की परंपरा टूटी। मसलन नेहरू और इंजिरा की विरासत को आधार बनाकर कांग्रेस के सत्ता में बने रहने का भ्रम टूट चुका था। बीजेपी सत्ता में आने से पहले इंदिरा गांधी के कार्यकाल में इमरजेंसी को काले धब्बे के तौर पर देखती थी। इमरजेंसी को बीजेपी के नेता आज भी काला अध्याय ही बताते हैं लेकिन थोड़ा सा बदलाव यह हुआ कि वो 1971 की लड़ाई में इंदिरा गांधी के नेतृत्व का भी जिक्र करते हैं।

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