कोसी नदी तटबंध योजना पर भारत और नेपाल सरकार ने मिल कर किया काम
मुख्य बातें
- अंग्रेजों के शासनकाल में ही बनाई गई थी कोसी नदी पर तटबंध निर्माण की योजना
- कोसी नदी तटबंध योजना पर भारत और नेपाल सरकार ने मिल कर किया काम
- देश के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने किया था कोसी परियोजना का शिलान्यास
कोसी नदी को बिहार का शोक कहा जाता है। बिहार में हर साल किसी ना किसी हिस्से में बाढ़ आती ही है। उत्तर बिहार का अधिकतर हिस्सा बाढ़ प्रभावित रहता है। साल 2008 में बिहार को भीषण बाढ़ का सामना करना पड़ा था। कोसी गंगा नदी की सहायक नदी है, कोसी नदी नेपाल के पहाड़ो से निकलकर बिहार में भीमनगर के रास्ते बहती हुई प्रवेश करती है और कटिहार जिले के कुर्सेला के पास गंगा में मिल जाती है। कोसी नदी हर साल अपना धारा बदलने के लिए भी जानी जाती है, इस वजह से हर साल लाखों लोग कोसी नदी के बाढ़ से प्रभावित होते है। पौराणिक कथाओं में इस नदी का नाम कौशिकी नदी होने का भी वर्णन है।
कैसे हुआ कोसी बैराज का निर्माण
अंग्रेजों के समय भी कोसी नदी बिहार में तबाही मचाती थी, अंग्रेज शासकों ने कोसी तटबंध निर्माण कर बाढ़ नियंत्रण करने के लिए परिस्थितियों का अध्ययन प्रारंभ किया था। जब सन 1869-70 के बीच बिहार के पुर्णिया में बाढ़ ने कहर बरपाया, तब अंग्रेज कोसी नदी पर तटबंध बना कर बाढ़ नियंत्रण के निष्कर्ष पर पहुंचे। अंग्रेजों ने नेपाल के उदयपुर के बराहक्षेत्र में बांध निर्माण का प्रस्ताव नेपाल के राजा के समक्ष रखा। नेपाल के तत्कालीन राजा बीरसम्शेर बराहक्षेत्र में बांध बनाने के लिए तैयार हुए, लेकिन ब्रिटिश राज के खत्म होने के बाद ये योजना अंजाम तक नहीं पहुंच पाई। आजाद भारत के तत्कालीन केंद्रीय मंत्री ललित नारायण मिश्रा के संबंध नेपाल के राजा से बहुत अच्छे थे। चूंकि ललित नारायण मिश्रा का घर तत्कालीन सहरसा जिला और वर्तमान के सुपौल के बलुआ बाजार में स्थित है और उस समय उनका परिवार भी बाढ़ से प्रभावित रहता था, इसलिए उन्होंने कोसी नदी पर बांध बनाने का प्रण लिया। कहा जाता है कि एक सम्मेलन में जब राजेन्द्र प्रसाद, श्री कृष्ण सिंह, ललित नारायण मिश्रा एवं कई बड़े नेता शामिल हुए, वहीं तटबंध निर्माण का फैसला लिया गया। सभी के साझा प्रयासों से बिहार के सुपौल जिला स्थित वीरपुर में बांध का निर्माण कराया गया।
तटबंधों के बीच फंसी लाखों जिंदगियां
एक रिपोर्ट के अनुसार कोसी तटबंधों के बीच लगभग 380 गांव हैं, ये गांव 4 जिलों के 13 प्रखंडो में फैले हुए है। 2001 में की गई जनगणना के अनुसार इन गांव में 9 लाख से अधिक लोग निवास करते है। कोसी नदी पर बने तटबंध की लंबाई 400 किलो मीटर के आस -पास है। हर चुनाव में तटबंधों के बीच फंसे जीवन को बेहतर किए जाने का वादा किया जाता है, लेकिन आज तक यहां के लोग असुविधा में जीवन जीने को मजबूर है। स्थानीय लोगों का कहना है कि देश के तत्कालीन राष्ट्रपति ने कोसी तटबंध निर्माण कार्य का शिलान्यास करते हुए कहा था कि भारत सरकार कोसी के अंदर और बाहर बसे लोगों के लिए समान विकास कार्य करेंगी, लेकिन आज हमें कोई देखने वाला नहीं है। साल 1984 में जब तटबंध के क्षमता का आकलन किया गया था तो उस समय ये रिपोर्ट सामने आया कि तटबंध की क्षमता छह लाख क्यूसेक पानी तक रोकने का है। जब भी कोसी बैराज में दो लाख क्यूसेक से अधिक पानी होते ही तटबंध केअंदर गांवो में पानी भर जाता है। शिक्षा और स्वास्थ्य व्यवस्था लचर स्थिति में है।
कोसी बैराज वरदान या अभिशाप
जब हमने कोसी बैराज से 16 किलोमीटर दूर बलुआ बाजार गांव में किसानों से बात किया तो किसानों के बात में मदभेद देखने को मिला। कुछ किसान कोसी बैराज के समर्थन में थे, लेकिन कुछ किसानों ने इसका विरोध किया। बड़े किसान रंजीत मिश्रा एवं प्रमील मिश्रा का कहना है कि उनके परिवार का लगभग 150 एकड़ जमीन 2008 के बाढ़ में बर्बाद हो गई, इन खेतों में लगभग 10 फीट बालु भर गया। बालू भरने से खेत की उपजाऊ नहीं बचा, वहीं एक किसान ने बताया कि उनके खेत में बाढ़ के पानी के साथ चिकनी मिट्टी आ गया, जिसके बाद से उनका खेत और उपजाऊ हो गया है। अगस्त से लेकर अक्टूबर तक यहां बाढ़ का डर बना रहता है, लोग कोसी बैराज के क्यूसेक के पानी की जानकारी अपने खाते में पड़े बचत राशी से ज्यादा रखते हैं। कई लोगों का कहना है की कोसी अपनी धारा हर साल बदलती है इसलिए बांध बना कर सरकार ने गलती कर दी, लेकिन अधिकतर लोगों ने कहा अगर कोसी बैराज नहीं होता तो हमें हर साल भंयकर बाढ़ का सामना करना पड़ता।