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विदेशी फंडिंग की मदद से सत्ता परिवर्तन के लिए रची गई थी साजिश, जानें क्या है माजरा; कैसे हुआ 'खुलासा'

क्या सचमुच पिछले साल हुए लोकसभा चुनाव के दौरान सत्ता परिवर्तन के लिए साजिश रची गई थी? ये सवाल इसलिए उठ रहे हैं, क्योंकि सूत्रों के हवाले से ये दावा किया जा रहा है कि 2024 के आम चुनाव में सत्ता परिवर्तन के लिए विदेशी फंडिंग की मदद से साजिश रची गई थी। इस बीच बीजेपी नेता अमित मालवीय ने भी बड़ा दावा किया है। रिपोर्ट में पढ़िए सारा माजरा।

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सत्ता परिवर्तन के लिए विदेशी फंडिंग की मदद से साजिश रची गई थी?

भारतीय चुनाव पर विदेशी प्रभाव की चर्चाओं के बीच यूएसएड की फंडिंग का मामला उभरकर आया है, विशेषकर विभिन्न एनजीओ और मीडिया आउटलेट से उसके संबंधों की बात सामने आई है, जिसके पीछे देश में उसके राजनीतिक एजेंडा को वजह बताया जा रहा है। विभिन्न सूत्रों के अनुसार, विभिन्न सरकारी कार्यकालों के दौरान फंडिंग पैटर्न और इसके स्पष्ट बदलाव ने भारतीय राजनीति पर बाहरी और प्रत्यक्ष प्रभाव के बारे में सवाल खड़े किए हैं।

देश में चुनाव को प्रभावित करना है फंडिंग का उद्देश्य

आंकड़ों का हवाला देते हुए, सूत्रों ने कहा कि 2004 से 2013 तक कांग्रेस के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार के तहत, भारत सरकार को यूएसएड से कुल 20.428 करोड़ डॉलर की फंडिंग मिली थी। सूत्रों ने कहा, 'इस अवधि के दौरान, एनजीओ को काफी बड़ा हिस्सा मिला, जो 211.496 करोड़ डॉलर था।' यह फंडिंग जाहिर तौर पर लोकतांत्रिक विकास, शिक्षा, स्वास्थ्य और शासन के उद्देश्य से विभिन्न पहलों का समर्थन करने के लिए आई थी। हालांकि, भाजपा सहित कई राजनीतिक हलकों का मानना है कि फंडिंग का उद्देश्य देश में चुनाव को प्रभावित करना है।

सूत्रों ने बताया कि 2014 में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के सत्ता में आने के बाद फंडिंग पैटर्न में भारी बदलाव आया। यूएसएड की फंडिंग में 2015 तक भारत सरकार की हिस्सेदारी घटकर मात्र 15.1 लाख डॉलर रह गई। इसके विपरीत, एनजीओ फंडिंग में उछाल आया और यह राशि 257.973 करोड़ डॉलर तक पहुंच गई। आलोचकों ने फंडिंग फोकस में इस बदलाव को देश के सामाजिक संगठनों पर बढ़ते बाहरी प्रभाव और राजनीतिक विमर्श को आकार देने में उनकी भूमिका का संकेत बताया है।

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