शारदा सिन्हा: जैसा हमने देखा और जाना, वो एक ही थीं, उनके समान कोई दूसरा नहीं होगा

बिहार कोकिला कही जाने वालीं शारदा सिन्हा का जन्म बिहार के सुपौल जिले में हुआ था। यहीं से उनकी लोकगायिका बनने की यात्रा शुरू हुई थी, काफी संघर्षों के बाद शारदा सिन्हा इस मुकाम तक पहुंची थीं।

शारदा सिन्हा का आज शाम दिल्ली में हुआ निधन (फोटो- @biharkokila)

नहाय-खाय के साथ आज से आस्था के महापर्व छठ की शुरुआत हो चुकी है। बिहार, पूर्वांचल समेत देश के अलग-अलग हिस्सों समेत विदेशों में भी इस त्योहार को लेकर तैयारी चरम पर है। छठ घाटों की साफ-सफाई, अर्घ्य देने के लिए व्रतियों के लिए सारी व्यवस्थाएं हो चुकी हैं, लेकिन असीम श्रद्धा और उत्साह के इस माहौल में एक ऐसी खबर सामने आई है, जिससे इस त्योहार की रौनक इस बार काफी फीकी हो गई है। छठ की पहचान सिर्फ डाला, सूप, कोनिया, ठेकुआ भर ही नहीं है, इससे इतर एक खास स्वर भी है, जिसमें माटी की सोंधी खुशबू है, जो रोम-रोम में पवित्रता और उत्साह का संचार करता है, जिसमें दीनानाथ (सूर्यदेव) और छठी मैया की पुकार है, सुहाग और संतान के लिए मन की मुराद है। वह आवाज है बिहार कोकिला कही जानी वाली महान लोक गायिका शारदा सिन्हा की।

पिछले चार दशकों से भी अधिक समय तक हर घाट, हर गली, हर घर में दिवाली के बाद से ही शारदा सिन्हा के गानों की गूंज से ही एहसास हो जाता है कि छठ के आयोजन की शुरुआत हो चुकी है। एक तरह से उनके गाने छठ की पहचान हैं। शारदा सिन्हा ठीक छठ के नहाय-खाय के दिन इस धरा से गोलोक गमन कर चुकी हैं। उनके निधन से छठ की छटा इस बार निश्चित रूप से बेहद धुंधली रहेगी। भले ही घाटों पर उनके गीत के ही साथ अर्घ्य दिए जाएंगे, लेकिन एक मायूसी, एक उदासी हर किसी के चेहरे पर जरूर दिखेगी। उनके निधन से करोड़ों लोग शोकाकुल हैं। करीब दो हफ्ते से एम्स, दिल्ली में जिंदगी की जंग लड़ते हुए मंगलवार रात उन्होंने अंतिम सांस ली, लेकिन उनकी जिजीविषा तो देखिए जाते-जाते भी उन्होंने छठी मैया को समर्पित अपना अंतिम गीत उनके चरणों में समर्पित करके ही इस धरती से विदाई ली। पिछले हफ्ते अस्पताल से ही उनके बेटे अंशुमान ने सोशल मीडिया के जरिये अपनी मां की इच्छा का जिक्र करते हुए यूट्यूब पर इस गीत को रिलीज किया था। शारदा सिन्हा ने अपने इस अंतिम गाने में छठी मईया से गुहार लगाते हुए गाया- "दुखवा मिटाईं छठी मईया..."। लेकिन नियति को शायद यह मंजूर नहीं था। गत सितंबर में ही शारदा सिन्हा पर दुखों का पहाड़ टूटा, जब उनके पति ब्रजकिशोर सिन्हा का साथ हमेशा के लिए छूट गया। 54 सालों तक हमसाये रहे ब्रजकिशोर बाबू के निधन से शारदा सिन्हा बुरी तरह टूट चुकी थीं। हालांकि उन्होंने हिम्मत बटोरकर 20 अक्टूबर को सोशल मीडिया पर सिन्हा साहब की मधुर स्मृतियों के सहारे अपनी संगीत यात्रा को जारी रखने की बात कही थी, लेकिन इसी बीच सात साल पुरानी बीमारी ने उन्हें बुरी तरह चपेट में ले लिया, उनका स्वास्थ्य दिन प्रतिदिन गिरने लगा। एम्स, दिल्ली में डॉक्टरों की तमाम कोशिशों के बावजूद उन्हें बचाया न जा सका।

'हो दीनानाथ', 'केलवा के पात पर','पटना के घाट पर देब हम अरघिया', 'छठी मैया आईं न दुयरिया', 'पहिले पहिल हम कईनी छठी मईया व्रत तोहार' जैसे कई गाने छठ की पवित्रता के पर्याय हैं। छठ के गाने वैसे तो नई-पुरानी पीढ़ी के कई गायक-गायिकाओं ने गाए हैं, लेकिन शारदा सिन्हा के स्वर में छठ के गीत जनमानस में ऐसे रच-बस गए कि छठ और शारदा सिन्हा एक-दूसरे के पर्याय बन गए। उनके गायन में एक अलग तरह का ठहराव था और उनकी खनकदार आवाज ताउम्र वैसी ही बनी रही। सिर्फ छठ के गीत ही नहीं बल्कि सोहर, मुंडन, उपनयन, शादी-ब्याह के अलग-अलग रस्मों से लेकर दुल्हन की विदाई तक- मैथिली और भोजपुरी में शारदा सिन्हा के गाए गाने वहां की संस्कृति का अनूठा हिस्सा हैं।

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