Ahmednagar: 'अहमदनगर' नहीं अब कहिए 'अहिल्या बाई होलकर', CM शिंदे ने नाम बदलने का किया एलान
Ahmednagar Name Changed: महाराष्ट्र के अहमद नगर जिले को अब अहिल्याबाई होलकर के नाम से जाना जाएगा, सीएम शिंदे ने इसे लेकर एलान किया है।
अहमद नगर जिले को अब अहिल्याबाई होलकर के नाम से जाना जाएगा
Maharashtra Ahmednagar Name Changed: महाराष्ट्र के सीएम एकनाथ शिंदे ने अहमदनगर (Ahmednagar) जिले के नाम को बदलने का एलान किया है, अब इस जिले को अहिल्या बाई होलकर (Ahilya Bai Holkar) के नाम पर रखा जाएगा, सीएम एकनाथ शिंदे ने जिले के नाम को बदलने का बुधवार को एलान किया, गौर हो कि 31 मई को अहिल्याबाई होलकर की जयंती है, इसी मौके पर सीएम शिंदे ने जिले के नाम को बदलने का एलान कर दिया ध्यान रहे कि जिले का नाम बदलने की मांग लगातार की जा रही थी जिसपर शिंदे सरकार ने अमल कर दिया है।
अहिल्याबाई होल्कर, मालवा राज्य की रानी के जन्मस्थान अहमदनगर में अहिल्याबाई होल्कर की जयंती से जुड़ी सभा को संबोधित करते हुए सीएम शिंदे ने यह ऐलान किया, इस मौके पर सीएम एकनाथ शिंदे के साथ डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस भी मौजूद थे।
औरंगाबाद का नाम बदलकर 'छत्रपति संभाजीनगर'
गौर हो कि इससे पहले मध्यप्रदेश के इंदौर हवाईअड्डे का नाम 'देवी अहिल्याबाई होल्कर हवाईअड्डा' रखा गया था, उनके नाम पर मध्य प्रदेश और सोलापुर में दो विश्वविद्यालयों का नाम रखा गया है वहीं हाल ही में महाराष्ट्र के औरंगाबाद का नाम बदलकर 'छत्रपति संभाजीनगर' और उस्मानाबाद का नाम बदलकर 'धाराशिव' किया जा चुका है।
कौन थीं अहिल्यादेवी होलकर
अहिल्यादेवी होलकर (31 मई 1725 - 13 अगस्त 1795), मराठा साम्राज्य की प्रसिद्ध महारानी तथा इतिहास-प्रसिद्ध सूबेदार मल्हारराव होलकर के पुत्र खण्डेराव की धर्मपत्नी थीं। उन्होने माहेश्वर को राजधानी बनाकर शासन किया। अहिल्याबाई ने अपने राज्य की सीमाओं के बाहर भारत-भर के प्रसिद्ध तीर्थों और स्थानों में मन्दिर बनवाए, घाट बँधवाए, कुओं और बावड़ियों का निर्माण किया, मार्ग बनवाए-काशी विश्वनाथ में शिवलिंग को स्थापित किया, भूखों के लिए अन्नसत्र (अन्यक्षेत्र) खोले, प्यासों के लिए प्याऊ बिठलाईं, मन्दिरों में विद्वानों की नियुक्ति शास्त्रों के मनन-चिन्तन और प्रवचन हेतु की।
अपने जीवनकाल में ही इन्हें जनता देवी' समझने और कहने लगी थी'
अहिल्याबाई ने अपने राज्य की सीमाओं के बाहर भारत-भर के प्रसिद्ध तीर्थों और स्थानों में मन्दिर बनवाए, घाट बँधवाए, कुओं और बावड़ियों का निर्माण किया, मार्ग बनवाए-सुधरवाए, भूखों के लिए अन्नसत्र (अन्यक्षेत्र) खोले, प्यासों के लिए प्याऊ बिठलाईं, मन्दिरों में विद्वानों की नियुक्ति शास्त्रों के मनन-चिन्तन और प्रवचन हेतु की। और, आत्म-प्रतिष्ठा के झूठे मोह का त्याग करके सदा न्याय करने का प्रयत्न करती रहीं-मरते दम तक। ये उसी परम्परा में थीं जिसमें उनके समकालीन पूना के न्यायाधीश रामशास्त्री थे और उनके पीछे झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई हुई। अपने जीवनकाल में ही इन्हें जनता 'देवी' समझने और कहने लगी थी।
अहिल्याबाई का जन्म चौंडी नामक गाँव में हुआ था
चौंडी गाँव महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले के जामखेड में पड़ता है। पिता माणकोजी शिंदे जो क्षेत्र के पाटील थे। दस-बारह वर्ष की आयु में उनका विवाह हुआ। उनतीस वर्ष की अवस्था में विधवा हो गईं। पति का स्वभाव चंचल और उग्र था। वह सब उन्होंने सहा। फिर जब बयालीस-तैंतालीस वर्ष की थीं, पुत्र मालेराव का देहान्त हो गया। जब अहिल्याबाई की आयु बासठ वर्ष के लगभग थी, दौहित्र नत्थू चल बसा। चार वर्ष पीछे दामाद यशवन्तराव फणसे न रहा और इनकी पुत्री मुक्ताबाई सती हो गई।
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