कौन थे आल्हा-ऊदल,कोई मानता है अमर तो कोई मैहर देवी का भक्त,वीर ऐसे कि आज भी लोग देते हैं मिसाल

Alha-Udal History And Songs:आल्हा और उदल उन 2 भाईयों की कहानी है, जो परमार वंश के सामंत थे। उनके बारे में सबसे अहम जानकारी कालिंजर के राजा परमार के दरबार में कवि जगनिक द्वारा लिखे गए आल्हा खंड से मिलती है। इस काव्य रचना में दोनों भाइयों की 52 लड़ाइयों का रोमांचकारी वर्णन है।

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Alha-Udal History And Songs:इतिहास में कुछ पात्र ऐसे होते हैं, जिनके बारे में ऐतिहासिक साक्ष्य से ज्यादा, सैकड़ों वर्षों से उनको लेकर चली आ रही कहानियों से ज्यादा जानकारी मिलती है। वीरगाथा काल के आल्हा और उदल ऐसे ही पात्र हैं, जिन्हें परंपरागत इतिहास में ज्यादा जगह नहीं मिली। लेकिन उनकी बहादुरी के किस्से लोगों के मन में पीढ़ियों से इस तरह रच-बस गए हैं कि वह 800 साल बाद भी सजीव लगते हैं। बुंदेलखंड के महोबा जिले में आज भी ऊदल चौक से ऊदल के सम्मान में लोग घोड़े पर सवार होकर नहीं गुजरते हैं। आल्हा-उदल 12 वीं शताब्दी के वह किरदार हैं, जिन्हें पृथ्वीराज चौहान का समकालीन माना जाता है। और उनके नाम पर 52 युद्धों की अमर कहानी है।

कौन थे आल्हा-उदल

आल्हा और उदल उन 2 भाईयों की कहानी है, जो परमार वंश के सामंत थे। उनके बारे में सबसे अहम जानकारी कालिंजर के राजा परमार के दरबार में कवि जगनिक द्वारा लिखे गए आल्हा खंड से मिलती है। इस काव्य रचना में दोनों भाइयों की 52 लड़ाइयों का रोमांचकारी वर्णन है। आल्हा खंड के अनुसार आखिरी लड़ाई उन्होंने पृथ्‍वीराज चौहान से लड़ी थी। जिसमें यह कहा जाता है कि उन्होंने पृथ्वीराज चौहान को हरा दिया था। हालांकि बाद में अपने गुरू गोरखनाथ के कहने पर पृथ्वीराज को जीवनदान दे दिया था। आल्हा खंड के अनुसार इस लड़ाई में आल्हा का भाई ऊदल वीरगति को प्राप्त हो गया था। और उसके बाद आल्हा को वैराग्य हो गया।

मां शारदा के भक्त, कई किवदंतियां भी

आल्हा को मध्यप्रदेश के मैहर स्थित मां शारदापीथ का परम भक्त माना जाता है। आज भी स्थानीय लोगों को मानना है कि आल्हा अमर हैं और वह हर रोज मां शारदा के मंदिर दर्शन करने आते हैं। ऐसी किवदंतियां है कि आज भी हर रोज सुबह आल्हा मंदिर में मां की आरती और पूजा करने आते हैं। लोग यह भी कहते हैं कि हर रोज आल्हा द्वारा मां शारदा के दर्शन करने के सबूत भी मिलते हैं।

आज भी आल्हा-ऊदल के नाम पर संस्कार

रिपोर्ट के अनुसार, आज के दौर में भी महोबा में ज्यादातर सामाजिक संस्कार आल्हा ऊदल की कहानी के बिना पूरे नहीं होते हैं। स्थानीय लोग बच्चों के नाम भी आल्हा खंड से लेकर रखते हैं। आल्हा-ऊदल का बुंदेलखंड में ऐसा असर है कि सावन के महीने में बुंदेलखंड के हर गांव-गली में उनके शौर्य पर लिखे गए गाने गाए जाते है। जैसे बड़े लड़ैया महोबे वाले खनक-खनक बाजी तलवार आज भी स्थानीय लोगों के जुबान पर है।

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प्रशांत श्रीवास्तव author

करीब 17 साल से पत्रकारिता जगत से जुड़ा हुआ हूं। और इस दौरान मीडिया की सभी विधाओं यानी टेलीविजन, प्रिंट, मैगजीन, डिजिटल और बिजनेस पत्रकारिता में काम कर...और देखें

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