इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा-'रिकॉर्डेड टेलीफोनिक बातचीत अवैध रूप से प्राप्त होने पर भी सबूत के रूप में स्वीकार्य'

न्यायमूर्ति सुभाष विद्यार्थी ने कहा कि जब भारत में साक्ष्य की स्वीकार्यता की बात आती है तो एकमात्र परीक्षण प्रासंगिकता का परीक्षण होता है।न्यायमूर्ति ने कहा, 'कानून स्पष्ट है कि किसी भी सबूत को अदालत द्वारा इस आधार पर स्वीकार करने से इनकार नहीं किया जा सकता है कि यह अवैध रूप से प्राप्त किया गया था।'

इलाहाबाद हाईकोर्ट का अहम फैसला

इलाहाबाद उच्च न्यायालय (Allahabad High Court) ने एक हालिया फैसले में कहा कि दो आरोपियों के बीच टेलीफोन पर हुई बातचीत को साक्ष्य से बाहर नहीं किया जा सकता, भले ही यह अवैध रूप से प्राप्त की गई हो, जैसा कि बार और बेंच ने बताया है। न्यायमूर्ति सुभाष विद्यार्थी ने यह टिप्पणी एक ट्रायल कोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए की, जहां रिश्वतखोरी के एक मामले में आरोपी को बरी करने से इनकार कर दिया गया था, जिस पर रिकॉर्डेड टेलीफोनिक बातचीत (recorded telephonic converstation) के आधार पर आरोप लगाया गया था।

अभियुक्त ने तर्क दिया था कि साक्ष्य अवैध रूप से प्राप्त किए गए थे और इसलिए अदालत के समक्ष स्वीकार्य नहीं थे। हालाँकि, कोर्ट ने उनकी याचिका खारिज कर दी। अदालत ने कहा, 'दोनों आरोपियों के बीच टेलीफोन पर हुई बातचीत को इंटरसेप्ट किया गया था या नहीं और यह कानूनी रूप से किया गया था या नहीं, इससे आवेदक के खिलाफ साक्ष्य में रिकॉर्ड की गई बातचीत की स्वीकार्यता पर कोई असर नहीं पड़ेगा।'

कैंटोनमेंट बोर्ड के पूर्व सीईओ महंत प्रसाद राम त्रिपाठी के खिलाफ भ्रष्टाचार के एक मामले की सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट का फैसला आया। त्रिपाठी पर बोर्ड के सदस्य शशि मोहन के जरिए 1.65 लाख रुपये रिश्वत मांगने का आरोप था।

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