'संविधान हत्या दिवस घोषित करना गलत...' याचिका दायर, हाईकोर्ट ने केंद्र से मांगा जवाब

Samvidhan Hatya Diwas: इलाहाबाद हाईकोर्ट में दाखिल की गई याचिका में दलील दी गई है कि केंद्र सरकार द्वारा जारी अधिसूचना सीधे तौर पर भारत के संविधान के प्रावधानों का उल्लंघन करती है। 25 जून को संविधान हत्या दिवस घोषित करना गलत है क्योंकि संविधान एक जीवंत दस्तावेज है जो कभी मर नहीं सकता और न ही किसी को इसे नष्ट करने की अनुमति दी जा सकती है।

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने केंद्र से मांगा जवाब।

Samvidhan Hatya Diwas: इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 25 जून को संविधान हत्या दिवस घोषित करने की 13 जुलाई की अधिसूचना को चुनौती देने वाली एक जनहित याचिका पर केंद्र सरकार से जवाब मांगा है। झांसी के अधिवक्ता संतोष सिंह दोहरे द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश अरुण भंसाली और न्यायमूर्ति विकास बुधवार की खंडपीठ ने केंद्र से जवाब मांगते हुए इस मामले की अगली सुनवाई 31 जुलाई तय की है।

सोमवार को जैसे ही इस मामले पर सुनवाई शुरू हुई, केंद्र सरकार के अधिवक्ता ने इस मामले में जवाब दाखिल करने के लिए समय मांगा जिस पर अदालत ने उनका अनुरोध स्वीकार कर लिया। इस जनहित याचिका में 13 जुलाई की भारत के राजपत्र में प्रकाशित इस अधिसूचना को रद्द करने की मांग की गई है। इस अधिसूचना में कहा गया है कि 25 जून 1975 को आपातकाल लागू कर तत्कालीन सरकार ने लोगों के अधिकारों का जबरदस्त हनन किया।

संविधान एक जीवंत दस्तावेज

याचिका में दलील दी गई है कि केंद्र सरकार द्वारा जारी अधिसूचना सीधे तौर पर भारत के संविधान के प्रावधानों का उल्लंघन करती है और साथ ही राष्ट्रीय सम्मान का अपमान रोकने वाले 1971 के अधिनियम के प्रावधानों का भी उल्लंघन करती है। याचिका में कहा गया है कि इस अधिसूचना में प्रयुक्त भाषा भारत के संविधान का अपमान करती है क्योंकि 1971 के अधिनियम के अनुच्छेद दो के मुताबिक, संसद ने यह घोषणा की है कि बोलकर या लिखकर शब्दों से संविधान के प्रति अपमान प्रदर्शित करना एक अपराध है। इसमें कहा गया कि 1975 में संविधान के प्रावधानों के तहत आपातकाल लागू किया गया था इसलिए प्रतिवादियों द्वारा 25 जून को संविधान हत्या दिवस घोषित करना गलत है क्योंकि संविधान एक जीवंत दस्तावेज है जो कभी मर नहीं सकता और न ही किसी को इसे नष्ट करने की अनुमति दी जा सकती है।

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