Operation Meghdoot: सियाचिन ग्लेशियर में सेना के ऑपरेशन मेघदूत के पूरे हुए 40 साल
Operation Meghdoot: औपचारिक तौर पर यह ऑपरेशन 1984 में शुरू हुआ था, लेकिन भारतीय वायु सेना के कई हेलीकॉप्टर 1978 से ही सियाचिन ग्लेशियर में अपनी सेवाएं दे रहे थे।
ऑपरेशन मेघदूत के 40 साल पूरे (फोटो- Indian Army)
Operation Meghdoot: भारतीय सेना के ऑपरेशन मेघदूत के 40 साल पूरे हो गए हैं। इस ऑपरेशन की याद आज भी पाकिस्तान को सहमा देती होगी। सियाचिन ग्लेशियर में सेना ने इस ऑपरेशन को तब शुरू किया था, जब पाकिस्तान इस पर कब्जा करना चाहता था। मौजूदा समय में यहां राफेल, सुखोई-30 एमकेआई, चिनूक, अपाचे, एडवांस्ड लाइट हेलीकॉप्टर (एएलएच), लाइट कॉम्बैट हेलीकॉप्टर (एलसीएच) प्रचंड, मिग-29, मिराज -2000, सी-17, सी-130 जे, आईएल-76 तथा एएन-32 ऑपरेशन मेघदूत के लिए अपनी सेवाएं दे रहे हैं।
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सियाचिन पर कब्जा करना चाहता था पाकिस्तान
ऑपरेशन मेघदूत के 40 साल पूरे होने पर सेना की ओर से एक वीडियो भी जारी किया गया है। जिसमें सेना के शौर्य को दिखाया गया है। 40 वर्ष पहले पाकिस्तान सियाचिन पर कब्जा करना चाहता था। दुश्मन के इरादों को नाकाम करने के लिए 13 अप्रैल 1984 को सशस्त्र बलों ने ऑपरेशन शुरू किया था। 13 अप्रैल को ही सियाचिन में भारत का झंडा भी लहरा दिया गया था।
1978 से ही वायुसेना थी एक्टिव
औपचारिक तौर पर यह ऑपरेशन 1984 में शुरू हुआ था, लेकिन भारतीय वायु सेना के कई हेलीकॉप्टर 1978 से ही सियाचिन ग्लेशियर में अपनी सेवाएं दे रहे थे। यहां पर चेतक हेलीकॉप्टर उड़ाए जा रहे थे और यह अक्टूबर 1978 में इस ग्लेशियर में उतरने वाला भारतीय वायुसेना का पहला हेलीकॉप्टर था। साल 1984 तक आते-आते लद्दाख के अज्ञात क्षेत्र पर दावे संबंधी पाकिस्तान की तथ्यात्मक हेरफेर वाली आक्रामकता और सियाचिन में विदेशी पर्वतारोहण अभियानों को अनुमति देने की कवायद चिंता का कारण बन रहे थे।
वायुसेना की भूमिका अहम
वायु सेना के मुताबिक भारत ने इस क्षेत्र में चलने वाली पाकिस्तानी सैन्य कार्रवाई के बारे में खुफिया जानकारी मिलने के बाद सियाचिन पर अपने दावे को वैध बनाने के पाकिस्तान के कुप्रयासों को विफल करने का फैसला किया। इस महत्वपूर्ण प्रयास में भारतीय वायुसेना ने एक शानदार भूमिका निभाते हुए अपनी जिम्मेदारी निभाई। उसके सामरिक और रणनीतिक महत्व के वायुयानों जैसे एएन-12एस, एएन-32एस एवं आईएल-76एस ने आवश्यक रसद और सामान सैनिकों को गंतव्य तक पहुंचाया। उच्च ऊंचाई वाले क्षेत्रों में हवाई आपूर्ति सुनिश्चित की।
कैसे मिली बढ़त
इसके बाद वहां से एमआई-17, एमआई-8, चेतक और चीता हेलीकॉप्टरों ने लोगों तथा जरूरी सामग्रियों को ग्लेशियर की अत्यधिक ऊंचाई तक पहुंचाया, जो हेलीकॉप्टर निर्माताओं द्वारा निर्धारित की गई सीमा से भी कहीं अधिक था। इस तरह से जल्द ही लगभग 300 सैनिक ग्लेशियर की रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण चोटियों व दर्रों पर तैनात हो गए। जब तक पाकिस्तानी सेना ने अपने सैनिकों को आगे बढ़ाकर इस पर प्रतिक्रिया व्यक्त की, तब तक भारतीय सेना ने रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण इन पर्वत चोटियों और दर्रों पर अपना कब्जा जमा लिया था, जिससे उसे सामरिक लाभ प्राप्त हुआ।
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