'zero food children' पर JAMA नेटवर्क पर प्रकाशित लेख फर्जी खबरों को सनसनीखेज बनाने का दुर्भावनापूर्ण प्रयास- सरकार

JAMA लेख छह महीने से अधिक उम्र के शिशुओं के लिए स्तन के दूध के महत्व को स्वीकार नहीं करता है और इसके बजाय केवल ऐसे शिशुओं को पशु का दूध/फार्मूला, ठोस या अर्ध-ठोस आदि खिलाने पर ध्यान देता है।

प्रतीकात्मक तस्वीर (Pixabay)

महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने कहा है कि भारत में तथाकथित शून्य भोजन वाले बच्चों (zero food children) पर 12 फरवरी, 2024 को JAMA नेटवर्क पर प्रकाशित लेख फर्जी खबरों को सनसनीखेज बनाने के लिए इच्छुक लॉबी द्वारा एक जानबूझकर और दुर्भावनापूर्ण प्रयास है। लेख का खंडन करते हुए, मंत्रालय ने कहा है कि यह आश्चर्यजनक है कि भारत में बच्चों की पोषण स्थिति पर इतने व्यापक और गलत सामान्यीकरण तक पहुंचने के लिए श्री एस.वी. सुब्रमण्यम और अध्ययन के सह-लेखकों द्वारा कोई प्राथमिक शोध नहीं किया गया है।

लेखकों ने स्वयं डेटा पर गहरी शंकाओं को स्वीकार किया है और कम से कम 9 सीमाओं का उल्लेख किया है जो उनके अध्ययन को बिल्कुल अविश्वसनीय बनाती हैं। "शून्य भोजन वाले बच्चों" की कोई वैज्ञानिक परिभाषा नहीं है। अपनाई गई पद्धति अपारदर्शी है। भारत में किसी भी राज्य सरकार या किसी निजी संगठन ने कभी भी भूख से मर रहे बच्चों के बारे में रिपोर्ट नहीं की है।

JAMA लेख छह महीने से अधिक उम्र के शिशुओं के लिए स्तन के दूध के महत्व को स्वीकार नहीं करता है और इसके बजाय केवल ऐसे शिशुओं को पशु का दूध/फार्मूला, ठोस या अर्ध-ठोस आदि खिलाने पर ध्यान देता है। यह आश्चर्यजनक है कि लेख छह से तेईस महीने के शिशुओं के लिए भोजन की परिभाषा से स्तन के दूध को बाहर रखा गया है। अध्ययन में संदर्भित तथाकथित 19.3% जीरो फूड बच्चों में से 17.8% को मां का दूध मिला था और केवल 1.5% बच्चों को गैर-स्तनपान कराने का दावा किया गया है।

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