Amazing Indians award: पर्यावरण एवं कुछओं की विशेष प्रजाति के संरक्षण में ओडिशा के सौम्या रंजन बिस्वाल की बड़ी भूमिका सामने आई है। बिस्वाल के प्रयासों एवं उनके रखरखाव से ओडिशा के तट एवं मैंग्रोव आज साफ-सुथरे एवं सुरक्षित हैं। पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में इस उल्लेखनीय योगदान के लिए उन्हें टाइम्स नाउ के 'अमेजिंग इंडियन' अवार्ड से सम्मानित किया गया है। बिस्वाल की संस्था ओडिया पर्यावरण संरक्षण अभियान एवं देवी कच्छप कल्याणम के प्रयासों ने दुर्लभ कछुओं की प्रजाति-ओलिव रिडले को एक नया जीवन दिया है।
कछुओं की एक दुर्लभ प्रजाति है ओलिव रिडले
ओलिव रिडले कछुओं की एक दुर्लभ प्रजाति है। ये बहुत ही संवेदनशील और खास जगहों पर अपने अंडे देते हैं। इनके तट पर थोड़ी सी भी मानवीय दखल इनके अस्तित्व के लिए खतरा बन जाती है। कछुओं की इस विशेष प्रजाति के संरक्षण का जिम्मा पुरी जिले के पर्यवारणविद सौम्या रंजन बिस्वाल ने उठाया। 25 साल के बिस्वाल के प्रयासों ने रंग दिखाया। ओडिशा के तट पर ओलिव रिडली कछुओं की प्रजाति खुद को सुरक्षित महसूस करती है। सौम्या का मकसद क्षेत्रीय स्तर पर पर्यावरण की सुरक्षा करना है। इस उद्देश्य के साथ उन्होंने ओडिशा पर्यावरण संरक्षण अभियान (ओपीएसए) की स्थापना की।
ओडिशा के तट पर हर साल आते हैं हजारों कछुए
ओडिशा का तट दुनिया में ओलिव रिडले के लिए सबसे बड़ा सामूहिक घोंसला बनाने वाला स्थल है, जहां सैकड़ों-हजारों की संख्या में कछुए हर साल अपने अंडे देने के लिए आते हैं। ओडिशा का रुशिकुल्या एवं गहिरमाथ तट इन कछुओं की पसंदीदा जगहे हैं। इन दोनों तटों पर कछुओं के घोंसलों एवं अंडों को किसी तरह का नुकसान न पहुंचे, इसके लिए सौम्या एवं उनके दोस्त प्रत्येक रात इन जगहों की गश्त करते हैं। मादा कछुए अंडे देने के बाद वापस समुद्र में चले जाते हैं। इन अंडों से निकलने वाले कुछओं को वापस समुद्र में जाना होता है लेकिन बालू तट से समुद्र के बीच की दूरी इनके लिए खतरों से भरी होती है। केकड़े, रकून, कुत्ते, सूअर, सांप एवं जंगली जानवरों से इन्हें खतरा बना रहता है। इसके अलावा तट पर बिखरे प्लास्टिक, धातुएं, पत्थर एवं अन्य पदार्थ इनके रास्तों में अवरोध पैदा करते हैं।
रुशीकुल्या एवं गहिरमाथा कछुओं के लिए पसंदीदा जगह
ओडिशा में ओलिव रिडले कछुओं के लिए घोसला बनाने की तीन जगहें रुशीकुल्या, गहिरमाथा और देवी नदी का मुहाना है। रुशीकुल्या एवं गहिरमाथा को कछुओं के लिए ज्यादा सुरक्षित माना जाता है लेकिन देवी नदी के तट पर प्रदूषण की मात्रा बढ़ी है और यहां के मैंग्रोव को नुकसान पहुंचा है। सौम्या की संख्या इस तट की साफ-सफाई और कछुओं के प्रवास के अनुकूल पर्यावरण तैयार करती है। उनकी यह संस्था साल 2014 से ही ओडिशा के तटों एवं मैंग्रोव का संरक्षण करती आ रही है।
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