अरुणाचल प्रदेश: अप्रैल के तीसरे सप्ताह में 'बौद्ध धर्म और पूर्वोत्तर की संस्कृति' पर दो दिन का अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन
केंद्र सरकार का संस्कृति मंत्रालय और अंतरराष्ट्रीय बौद्ध संघ ( इंटरनेशनल बुद्धिस्ट कन्फेडरेशन) मिल कर सम्मेलन का आयोजन कर रहे हैं। आईबीसी से सन्मार्ग को प्राप्त जानकारी के अनुसार सम्मेलन के उद्घाटन सत्र में अरुणाचल के मुख्यमंत्री पेमा खांडू रहेंगे।

बौद्ध धर्म और पूर्वोत्तर की संस्कृति “पर दो दिन का अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन
अरुणाचल प्रदेश के नामसाई शहर में अप्रैल के तीसरे सप्ताह में” बौद्ध धर्म और पूर्वोत्तर की संस्कृति “पर दो दिन का अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन होगा।पूर्वोत्तर भारत में महायान वज्रयान और थेरावाद बौद्ध धर्म का प्रचार प्रसार हुआ और अब भी बौद्ध धर्म अनुयायी इनका पालन करते हैं। भारत सरकार पूर्वोत्तर भारत में बौद्ध पर्यटन, विरासत, संस्कृति को बढावा देना चाहती है और संरक्षण भी करना चाहती है।
केंद्र सरकार का संस्कृति मंत्रालय और अंतरराष्ट्रीय बौद्ध संघ ( इंटरनेशनल बुद्धिस्ट कन्फेडरेशन) मिल कर सम्मेलन का आयोजन कर रहे हैं। आईबीसी से सन्मार्ग को प्राप्त जानकारी के अनुसार सम्मेलन के उद्घाटन सत्र में अरुणाचल के मुख्यमंत्री पेमा खांडू रहेंगे। पहले दिन तीन सत्रों में पूर्वोत्तर भारत में बौद्ध धर्म के ऐतिहासिक महत्व,कला-संस्कृति और पूरे क्षेत्र पर इसका क्या असर पड़ा जैसे विषयों पर चर्चा की जाएगी। दूसरे दिन विश्व प्रसिद्ध गोल्डन पैगोडा में विश्व शांति के लिए प्रार्थना की जाएगी और विपश्यना भी करवायी जाएगी।
पूर्वोत्तर भारत में बौद्ध धर्म सम्राट अशोक के शासन काल में आया और ये इलाका दक्षिण एशिया के अन्य देशों को बौद्ध संस्कृति से जोड़ने का महत्वपूर्ण कॉरिडोर बना। अरुणाचल प्रदेश का भिक्खु संघ, नामसाई परियात्ति सासन बौद्ध विहार और महाबोधि सोसायटी नामसाई ने बौद्ध धर्म को अपने सघन काम से नयी गति दी है। इन संस्थाओं के माध्यम से बौद्ध शिक्षा , समाज सेवा और अंतरराष्ट्रीय संबंधों को नयी गति मिली है।थेरवद बौद्ध धर्म की उत्पत्ति प्राचीन भारत में हुई श्रीलंका और अन्य दक्षिण एशियाई देशों में फैला इसकी सबसे सुंदर अभिव्यक्ति अरुणाचल के छोटे से शहर नामसाई में देखने को मिलती है। नामसाइ थेरवाद बौद्ध धर्म का गढ़ रहा है 18वीं सदी में ताई खम्माटी कबीले के लोग बर्मा से यहां आए और साथ लाए अपना धर्म भी। ये जनजाति नाओ दिहिंग उपजाऊ घाटी में तेंगापानी और लोहित नदी के किनारे आ कर बस गए थे। इन्होंने चौंगखाम राज विहार की स्थापना की अरूणाचल में ताई खम्माटी साम्राज्य का ये मुख्य आध्यात्मिक केंद्र बना।
चौंगखाम राजविहार का नए सिरे से जीर्णोद्धार किया गया 18 वीं सदी के बौद्ध विहार को ताई खम्माटी वास्तु शैली में बनवाया गया। आज ये पूर्वोत्तर भारत में एकता, शांति और थेरवाद बौद्ध धर्म और ताई खम्माटी समुदाय की भावनाओं का प्रतीक है। पिछले साल मई में अरुणाचल के उपमुख्यमंत्री ने इसको जनता को समर्पित किया था। चौंगखाम बौद्ध विहार में सभी प्रमुख बौद्ध उत्सव और महात्मा बुद्ध की जयंती धूमधाम से मनायी जाती है। बौद्ध धर्म अध्ययन का ये मुख्य केंद्र है यहां बौद्ध भिक्षु पाली भाषा सीखते हैं,बौद्ध ग्रंथो का अध्ययन करते हैं।
नामसाई जहां पर अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन होगा अब बौद्ध शिक्षा का मुख्य केंद्र है यहां महाबोधि सोसायटी आयी 2013 में महाबोधि लार्ड कॉलेज की स्थापना की गयी। पिछले साल महाबोधि विहार स्कूल की स्थापना की गयी जहां युवा बौद्धों को मुफ्त शिक्षा दी जाती है प्राचीन बौद्ध पूजा पद्धति सिखायी जाती है, प्राचीन ग्रंथों , बौद्ध त्यौहारों से परिचय करवाया जाता है।दो दिन का अंतरराष्ट्रीय बौद्ध सम्मेलन पूर्वोत्तर भारत के प्रमुख बौद्ध केंद्र को विश्व में नयी पहचान देगा।
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