अटल बिहारी वाजपेयी: एक राजनेता और कवि जो अपने आदर्शों पर अडिग रहे- आनंद दुबे

एक कवि की छवि हो या दोस्ती की दास्तां। अगर जीवन के हर पहलू में आदर्श के साथ किसी के अटल होना का ज़िक्र आएगा तो नि:संदेह उस फेहरिस्त में सबसे आगे अटल बिहारी वाजपेयी का ही नाम आएगा... पढ़ें आनंद दुबे का यह विशेष आलेख।

भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजेपयी

चाहे राजनीति हो चाहे निजी जिंदगी, बतौर प्रधानमंत्री हों या बतौर नेता विपक्ष, एक कवि की छवि हो या दोस्ती की दास्तां। अगर जीवन के हर पहलू में आदर्श के साथ किसी के अटल होना का ज्क्र आयेगा तो नि:संदेह उस फेहरिस्त में सबसे आगे अटल बिहारी वाजपेयी का ही नाम आएगा। वैसे तो अटल जी के बारे में कुछ भी किसी से छिपा नहीं है। कोई कुछ नया लिख सके ऐसा संभव भी नहीं है लेकिन उनके बारे में जानी समझी बातें ही बार-बार लिखो तब भी लगती नई सी ही हैं। दशकों तक राजनीति में रमे अटल की हर बातें शतकों तक ना सिर्फ़ याद रहेंगी बल्कि आने वालों के लिए एक सबक भी बनी रहेंगी।

1968 में भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष से लेकर 1980 में भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष तक और 1957 में बलरामपुर से लोक सभा सदस्य बनने से लेकर 1996 में देश के प्रधानमंत्री बनने तक अटल जी पूरा राजनीतिक जीवन संघर्ष, समर्पण और सदाचार का प्रतीक बना रहा। अटूट इच्छाशक्ति अटल जी की सबसे बड़ी ताकत रही। विरोध कैसा भी हो और कितना भी बड़ा हो जो ठान लिया सो ठान लिया। 11 और 13 मई 1998 का पोखरण अटल की इसी इच्छाशक्ति का गवाह है। पश्चिमी देशों को भनक भी नहीं लगी और अचानक भारत एक परमाणु संपन्न राष्ट्र हो गया। अनेकों प्रतिबंध लगने की आशंका को दरकिनार करते हुए अटल अपनी इच्छाशक्ति पर अटल रहे। पोखरण परीक्षण के बाद अमरीका और ब्रिटेन समेत कई पश्चिमी देशों ने भारत पर आर्थिक पांबदी लगा दी लेकिन ये पाबंदियां कुछ वर्षों से अधिक नहीं टिक सकीं।

अटल जी ना सिर्फ़ हमेशा पड़ोसियों से बेहतर संबंध बनाने के पक्षधर रहे बल्कि उसके लिए कदम भी आगे बढ़ाते रहे। यही वजह रही कि 19 फ़रवरी 1999 को उन्होंने दिल्ली से लाहौर के लिए बस सेवा की ना सिर्फ़ शुरुआत की, बल्कि सदा-ए-सरहद के पहले यात्री बने। अटल जी की दूरदर्शिता का हर कोई कायल रहा है। कल से कल को समझने की जो कला अटल जी में थी वो बिरले नेताओं में ही होती है। यहां दो उदाहरणों का ज़िक्र जरूरी है। पहला स्वर्णिम चतुर्भुज योजना, अटली जी ने देश के हर कोने को सड़क मार्ग से जोड़ने की पहल की। ये योजना देश के चार महानगरों दिल्ली, मुम्बई, कोलकाता और चेन्नई को एक मार्ग से जोड़ने वाली थी जिसने देश के विकास को एक नई रफ़्तार दी। यही नहीं देश की नदियों को जोड़ने की योजना भी उन्होंने बनाई और उसका ख़ाका भी तैयार किया। अपनी इस योजना के लिए उनको कई संगठनों के विरोध का भी सामना करना पड़ा लेकिन अटल तो अटल ही रहे। अटल जी ने संचार क्रांति को भी एक नई रफ़्तार दी और उसे आम लोगों तक पहुंचाया। 1999 में अटल जी की नई टेलिकॉम पॉलिसी ने इसको आगे बढ़ाया।

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