अटल बिहारी वाजपेयी के 'अटल अल्फाज', पढ़ें मन को भिगो देने वाली 5 कविताएं

Atal Bihari Vajpayee Poems: पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की जयंती के मौके पर सारा देश उनको याद कर रहा है। अटल बिहारी वाजपेयी की इच्छा थी कि उनको एक नेता से ज्यादा एक कवि के रूप में पहचाना जाए। उनकी ये पहचान उनकी कविताओं के साथ बरकरार है। नीचे पढ़िए अटल बिहारी की 5 कविताएं।

Atal Bihari Vajpayee 5 Poems

कवि के रूप में कैसे थे अटल बिहारी वाजपेयी?

5 Poems Of Atal Bihari: एक प्रधानमंत्री के तौर पर भारत के विकास में भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी के योगदान को तो देश याद ही कर रहा है। एक कवि के तौर पर भी उनके प्रशंसकों की कोई कमी नहीं है। अटल के जाने के बाद भी उनकी कविताएं लोगों के दिलों में बसी हैं। ये अटल बिहारी के अद्भुत व्यक्तित्व का कमाल था कि अपनी पार्टी के साथ दूसरी पार्टियों में भी इस अजातशत्रु के प्रशंसकों की कोई कमी नहीं थी।
स्वतंत्रता सेनानी, पत्रकार, संपादक, कवि, सांसद, विदेश मंत्री और फिर 3-3 बार देश के प्रधानमंत्री... भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी ने भारत की राजनीति पर जो छाप छोड़ी है वो अमिट है। वो क्या कहते थे, नीचे पढ़िए।

मौत से ठन गई

ठन गई!
मौत से ठन गई!
जूझने का मेरा इरादा न था,
मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा न था
रास्ता रोक कर वह खड़ी हो गई,
यों लगा ज़िंदगी से बड़ी हो गई
मौत की उमर क्या है? दो पल भी नहीं,
जिंदगी-सिलसिला, आज-कल की नहीं
मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूं,
लौटकर आऊंगा, कूच से क्यों डरूं?
तू दबे पांव, चोरी-छिपे से न आ,
सामने वार कर फिर मुझे आजमा
मौत से बेखबर, जिंदगी का सफर,
शाम हर सुरमई, रात बंसी का स्वर
बात ऐसी नहीं कि कोई गम ही नहीं,
दर्द अपने-पराए कुछ कम भी नहीं
प्यार इतना परायों से मुझको मिला,
न अपनों से बाकी है कोई गिला
हर चुनौती से दो हाथ मैंने किए,
आंधियों में जलाए हैं बुझते दिए
आज झकझोरता तेज तूफान है,
नाव भंवरों की बांहों में मेहमान है
पार पाने का कायम मगर हौसला,
देख तेवर तूफां का, तेवरी तन गई,
मौत से ठन गई।
एक लेखक के तौर पर अटल बिहारी वाजपेयी ये बात जानते थे कि अपने विचारों को जनता तक पहुंचाने के लिए कविता सबसे असरदार माध्यम होती है। उनकी कविताओं में राष्ट्रभक्ति का जोश भी था और दुश्मनों को कड़ी चेतावनी भी थी।

पाकिस्तान पर अटल के अल्फाज

एक नहीं, दो नहीं, करो बीसों समझौते,
पर स्वतंत्र भारत का मस्तक नहीं झुकेगा
अगणित बलिदानों से अर्जित यह स्वतंत्रता
सुशोभित शोणित से सिंचित यह स्वतंत्रता
त्याग, तेज, तप, बल से रक्षित यह स्वतंत्रता
दुःखी मनुजता के हित अर्पित यह स्वतंत्रता
इसे मिटाने की साजिश करने वालों से
कह दो चिनगारी का खेल बुरा होता है
औरों के घर आग लगाने का जो सपना
वह अपने ही घर में सदा खरा होता है
अपने ही हाथों तुम अपनी कब्र न खोदो
अपने पैरों आप कुल्हाड़ी नहीं चलाओ,
ओ नादान पड़ोसी अपनी आंखें खोलो
आजादी अनमोल न इसका मोल लगाओ,
पर तुम क्या जानो आजादी क्या होती है
तुम्हें मुफ्‍त में मिली न कीमत गई चुकाई
अंग्रेजों के बल पर दो टुकड़े पाए हैं
मां को खंडित करते तुमको लाज न आई?
अमरीकी शास्त्रों से अपनी आजादी को दुनिया में कायम रख लोगे यह मत समझो
दस-बीस अरब डॉलर लेकर आने वाली बर्बादी से तुम बच लोगे यह मत समझो,
धमकी जिहाद के नारो से हथियारों से कश्मीर कभी हथिया लोगे यह मत समझो
हमलो से अत्याचारों से संहारो से भारत का शीश झुका लोगे यह मत समझो,
जब तक गंगा की धार, सिंधु में ज्वार, अग्नि में जलन, सूर्य में तपन शेष;
स्वातंत्र्य समर की वेदी पर अर्पित होंगे अगणित जीवन-यौवन शेष
अमरीका क्या संसार भले ही हो विरुद्ध;
कश्मीर पर भारत का ध्वज नहीं झुकेगा,
एक नहीं दो नहीं करो बीसों समझौते
पर स्वतंत्र भारत का निश्चय नहीं रुकेगा।।
राजनीति की आपाधापी से वक्त निकाल कर अटल बिहारी की सोच जब कागज पर उतरी तो वो कविता बन गई। अटल की ये शिकायत हमेशा रही कि भाषण देने की मजबूरी ने कविता कहने की धारा को बहने नहीं दिया, लेकिन उनको सुनने वाले इस बात से इत्तफाक नहीं रखते थे। अटल बिहारी कहते थे कि कविता एंकात चाहती है। भाषण की मजबूरी कविता को घुमड़ने नहीं देती।

आओ फिर से दिया जलाएं

आओ फिर से दिया जलाएं, आओ फिर से दिया जलाएं
भरी दुपहरी में अंधियारा, सूरज परछाई से हारा
अंतरतम का नेह निचोड़ें बुझी हुई बाती सुलगाएं।
आओ फिर से दिया जलाएं
हम पड़ाव को समझे मंजिल, लक्ष्य हुआ आंखों से ओझल
वतर्मान के मोहजाल में आने वाला कल न भुलाएं।
आओ फिर से दिया जलाएं।
आहुति बाकी यज्ञ अधूरा, अपनों के विघ्नों ने घेरा
अंतिम जय का वज़्र बनाने नव दधीचि हड्डियां गलाएं।
आओ फिर से दिया जलाएं।
राजनीति के रेगिस्तान में अटल बिहारी वाजपेयी कविताओं की बारिश चाहते थे, अटल को इस बात का मलाल हमेशा रहा कि सियासत की मजबूरी के चलते वो अपनी कविताओं को ज्यादा समय नहीं दे पाए। इस निराशा के भाव से उभरकर उन्होंने अपने विचारों की शक्ति को शब्दों से सजाया और इसके बाद कभी हार न मानने वाली रचना का जन्म हुआ।

गीत नया गाता हूं

गीत नया गाता हूं
टूटे हुए तारों से फूटे बासंती स्वर
पत्थर की छाती में उग आया नव अंकुर
झड़े सब पीले पात, कोयल की कुहुक रात
प्राची मे अरुणिम की रेख देख पता हूं
गीत नया गाता हूं।
टूटे हुए सपने की सुने कौन सिसकी
अन्तर की चीर व्यथा पलकों पर ठिठकी
हार नहीं मानूंगा, रार नहीं ठानूँगा,
काल के कपाल पे लिखता मिटाता हूं
गीत नया गाता हूं, गीत नया गाता हूं।।
एक दौर था जब अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने जीवन को कविता के जरिए दुनिया के सामने प्रस्तुत करने के लिए 'परिचय' नाम की एक कविता लिखी। इस कविता ने अटल बिहारी वाजपेयी की हिंदू छवि को लोगों ने काफी पसंद किया।

हिन्दू तन-मन हिन्दू जीवन

मैं शंकर का वह क्रोधानल कर सकता जगती क्षार क्षार
डमरू की वह प्रलयध्वनि हूं, जिसमें नचता भीषण संहार
रणचंडी की अतृप्त प्यास, मैं दुर्गा का उन्मत्त हास
मैं यम की प्रलयंकर पुकार, जलते मरघट का धुंआधार
फिर अंतरतम की ज्वाला से जगती में आग लगा दूं मैं
यदि धधक उठे जल, थल, अंबर, जड़, चेतन तो कैसा विस्मय
हिन्दू तन-मन हिन्दू जीवन रग-रग हिन्दू मेरा परिचय
मैं आदि पुरुष निर्भयता का वरदान लिये आया भूपर
पय पीकर सब मरते आए, मैं अमर हुआ लो विष पीकर
अधरों की प्यास बुझाई है मैंने पीकर वह आग प्रखर
हो जाती दुनिया भस्मसात जिसको पल भर मे ही छूकर
भय से व्याकुल फिर दुनिया ने प्रारंभ किया मेरा पूजन
मैं नर नारायण नीलकण्ठ बन गया न इसमें कुछ संशय
हिन्दू तन-मन हिन्दू जीवन रग रग हिन्दू मेरा परिचय।।
ग्वालियर की गलियों से सियासत के गलियारों के सफर में कई मुश्किलें आयीं लेकिन 'अटल' इरादों के सामने हर एक मुश्किल नतमस्तक हो गयी। भारत की राजनीति को अटल फॉर्मूला देने वाले अटल बिहारी वाजपेयी अब हमारे बीच नहीं हैं। लेकिन अटल के विचारों का प्रकाश हमेशा, भारत की राजनीति के आसमान को प्रकाशित करता रहेगा।

अपने अटल फैसलों दुनिया को दिखाई भारत की ताकत

अटल बिहारी वाजपेयी की इच्छा थी कि उनको एक नेता से ज्यादा एक कवि के रूप में पहचाना जाए। उनकी ये पहचान उनकी कविताओं के साथ बरकरार है। लेकिन कवि हृदय अटल में एक ऐसा पराक्रमी देशभक्त भी बसता था। जिसने देशहित में बेहद मुश्किल फैसले भी लिए। फिर चाहें पोखरण में परमाणु परीक्षण का बड़ा फैसला हो या फिर करगिल में पाकिस्तान को चौथी बार युद्ध में पटखनी देने का पराक्रम, देशहित में पूर्व प्रधानमंत्री के फैसले हमेशा अटल साबित हुए।
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लेटेस्ट न्यूज

आयुष सिन्हा author

मैं टाइम्स नाउ नवभारत (Timesnowhindi.com) से जुड़ा हुआ हूं। कलम और कागज से लगाव तो बचपन से ही था, जो धीरे-धीरे आदत और जरूरत बन गई। मुख्य धारा की पत्रक...और देखें

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