कभी UPA सरकार को बचाने में अहम साबित हुआ था अतीक का वोट, न्यूक्लियर डील पर फंस गई थी मनमोहन सरकार

Atiq Ahmad murder Case : राजेश सिंह की किताब 'बाहुबलीज ऑफ इंडियन पॉलिटिक्स: फ्राम बुलेट टू बैलेट' में इस बात का जिक्र है कि कैसे 2008 में यूपीए सरकार बचाने में अतीक की अहम भूमिका रही। सिंह ने अपनी किताब में लिखा है, 'लोकसभा में यूपीए के 228 सांसद थे। अविश्वास प्रस्ताव से निकलने के लिए 44 सासंदों की कमी पड़ रही थी।

ateeq ahmad

अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ की शनिवार को हुई हत्या।

Atiq Ahmad murder Case : साल 2008 में अमेरिका के साथ असैन्य परमाणु करार को लेकर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अगुवाई वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (UPA) की सरकार गिरने के कगार पर आ गई थी लेकिन इस सरकार को बचाने के लिए आपराधिक पृष्ठभूमि वाले जिन 6 सांसदों ने डील के पक्ष में वोट किया उसमें अतीक अहमद भी शामिल था। अलग-अलग जेलों में बंद इन छह सांसदों को 48 घंटे के भीतर संसद लाया गया और उनसे वोट डलवाए गए।

वाम दलों ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया था

बता दें कि वाम दलों ने इस करार को लेकर यूपीए सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया था और सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया था। डील पर अविश्वास प्रस्ताव से बचने के लिए यूपीए सरकार के पास बहुमत का आंकड़ा नहीं था। ऐसे में समाजवादी पार्टी (सपा) की मदद से इन सांसदों के वोट डील के पक्ष में पड़े और यूपीए सरकार गिरने से बच गई। इन 6 सांसदों के ऊपर 100 से ज्यादाी आपराधिक केस थे। अतीक उस समय फूलपुर से सपा का सांसद थे। हालांकि, आपराधिक केस में सजा होने पर बाद में सपा ने उसे पार्टी से निकाल दिया।

44 सासंदों की कमी पड़ रही थी

राजेश सिंह की किताब 'बाहुबलीज ऑफ इंडियन पॉलिटिक्स: फ्राम बुलेट टू बैलेट' में इस बात का जिक्र है कि कैसे 2008 में यूपीए सरकार बचाने में अतीक की अहम भूमिका रही। सिंह ने अपनी किताब में लिखा है, 'लोकसभा में यूपीए के 228 सांसद थे। अविश्वास प्रस्ताव से निकलने के लिए 44 सासंदों की कमी पड़ रही थी। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को हालांकि इस बात का भरोसा था कि उनकी सरकार गिरेगी नहीं बल्कि बच जाएगी। सिंह को यह विश्वास कहां से आया था, यह थोड़े समय बाद जाहिर हो गया।'

मनमोहन सरकार ने फरलो पर जेल से निकाला

सिंह आगे लिखते हैं कि सपा, अजित सिंह की पार्टी राएलडी और देवगौड़ा की जनता दल (सेक्युलर) सहित 'बाहुबली नेताओं' ने डील के पक्ष में वोट किया। किताब के मुताबिक 'वोटिंग से 48 घंटे पहले सरकार ने कानून का उल्लंघन करने वाले देश के छह प्रमुख सांसदों को फरलो पर जेल से बाहर लेकर आई ताकि सांसद के रूप में वे अपनी संवैधानिक कर्तव्यों का निर्वाह कर सकें।'

गत शनिवार रात हुई अतीक की हत्या

साल 1989 में राजनीति में कदम रखने वाला अतीक पांच बार विधायक रहा। साल 2004 में वह सपा के टिकट पर चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचा। हालांकि, इसके करीब पांच साल बाद उसके आपराधिक रिकॉर्ड को ध्यान में रखते हुए सपा ने उसे पार्टी से निकाल दिया। गत शनिवार रात करीब साढ़े 10 बजे अतीक और उसके भाई अशरफ की हत्या तीन लोगों ने उस समय कर दी जब दोनों को मेडिकल जांच के लिए प्रयागराज के एक अस्पताल लाया गया। शनिवार को ही अतीक के बेटे असद को दफनाया गया। इसके कुछ घंटों बाद ही अतीक एवं अशरफ की पुलिस हिरासत में हत्या हो गई।

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आलोक कुमार राव author

करीब 20 सालों से पत्रकारिता के पेशे में काम करते हुए प्रिंट, एजेंसी, टेलीविजन, डिजिटल के अनुभव ने समाचारों की एक अंतर्दृष्टि और समझ विकसित की है। इ...और देखें

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