कभी राम मंदिर के लिए खाई थी लाठियां, छूकर निकल गई थी गोली, अब कारसेवक शालिनी दबीर को रामलला प्राण प्रतिष्ठा का मिला आमंत्रण

Ayodhya Ram Mandir: बाबरी मस्जिद ढांचे के ढहने की यादों को याद करते हुए शालिनी दबीर यह भी याद करती हैं कि कैसे जेलें भरी होने के कारण उन्हें एक स्कूल में बंद होने के लिए 'मजबूर' होना पड़ा था।

Karsevak Shalini Dabir

कारसेवक शालिनी दबीर को मिला राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा का आमंत्रण पत्र

Ayodhya Ram Mandir: 90 के दशक में जब राम मंदिर आंदोलन चरम पर था, जिसमें कई कार सेवक मारे गए थे, लाठियां खाकर घायल हो गए थे, जेल में बंद कर दिए गए थे, उन्हीं में से एक कारसेवक शालिनी दबीर को राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह के लिए आमंत्रित किया गया है। शालिनी दबीर भाग्यशाली रहीं थीं, जो गोली उनके पास से गुजर गई थी, हालांकि गोली से बचने के बाद उन्हें तब लाठी खानी पड़ी थी और जेल में भी रहना पड़ा था।

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स्कूल में होना पड़ा था बंद

बाबरी मस्जिद ढांचे के ढहने की यादों को याद करते हुए शालिनी दबीर यह भी याद करती हैं कि कैसे जेलें भरी होने के कारण उन्हें एक स्कूल में बंद होने के लिए 'मजबूर' होना पड़ा था। दबीर, जो उस समय 63 वर्ष की थीं, 60 किमी पैदल चलकर अयोध्या पहुंचीं थीं और 30 अक्टूबर 1990 को अयोध्या पहुंचकर उन्होंने बाबरी ढांचे पर भगवा लहराते हुए देखा था। महाराष्ट्र के रहने वाली दबीर 1990 में कार सेवा के लिए मुंबई से अयोध्या के लिए चलीं थी।

क्या बोलीं शालिनी

शालिनी कहती हैं- "कारसेवकों पर गोलियां चल रही थीं और पुलिस ने हमें सबसे ज्यादा प्रताड़ित किया... यूपी पुलिस ने दादर से आने वाली महिला कारसेवकों के एक समूह को गिरफ्तार किया और उन्हें स्कूल परिसर में रखा। मुझे एक स्कूल में बंद कर दिया गया क्योंकि जेलें भरी हुई थीं।"

'आया था बंदर'

उन्होंने यह भी दावा किया कि उन्होंने न केवल लाठीचार्ज झेला बल्कि आंसू गैस और गोलीबारी भी उनपर हुई थी। उन्होंने दावा किया कि एक गोली उनके पास से निकल गई थी। उन्होंने कहा- "मेरे बगल वाला व्यक्ति गोली से मर गया 'बहुत कोशिशों के बाद भी एक दीवार नहीं गिर रही थी, तभी एक बंदर उस दीवार पर बैठ गया और सब कुछ धूल में बदल गया क्योंकि उसने दीवार पर दबाव डाला था और वह ढह गई। बाबरी ढांचा ढहने के बाद मुस्लिम समुदाय का एक व्यक्ति आया और उसने मिठाई देते हुए कहा कि अब आप लोगों को वह मिल गया जो आप चाहते थे।"

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शिशुपाल कुमार author

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