Ram Mandir: 1528 से 2019 तक अयोध्या राम मंदिर की कानूनी लड़ाई, 2024 में हुई प्राण प्रतिष्ठा
Ram Mandir: राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा 22 जनवरी, 2024 को पीएम मोदी द्वारा की गई। आइए जानते हैं राम मंदिर की कानूनी लड़ाई के बारे में।
पीएम मोदी ने 22 जनवरी को रामलला की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा की थी।
Ram Mandir: अयोध्या में भव्य मंदिर का आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आधिकारिक तौर पर उद्घाटन कर दिया है। इस उद्घाटन समारोह में सैकड़ों धार्मिक हस्तियां, राजनेता और बॉलीवुड हस्तियां उपस्थित रही थीं। चलिए आज आप को बताते है कि कैसे 500 साल का विवाद अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण में परिवर्तित हुआ। राम मंदिर आंदोलन की शुरुआत 1528 में मुगल बादशाह बाबर के सेनापति मीर बाकी द्वारा बाबरी मस्जिद के निर्माण से हुई। 1858 में, निहंग सिखों ने बाबरी मस्जिद को भगवान राम का जन्मस्थान होने का दावा करने का प्रयास किया। इस घटना ने विवादित स्थल पर नियंत्रण के लिए संघर्ष की शुरुआत को चिह्नित किया। निर्मोही अखाड़े के पुजारी रघुबर दास ने 1885 में पहला कानूनी मुकदमा दायर किया, जिसमें मस्जिद के बाहरी प्रांगण में एक मंदिर बनाने की अनुमति मांगी गई।
हालांकि इसे कोर्ट ने खारिज कर दिया गया जिसके कारण दो समुदायों के बीच विवाद पैदा हो गया। तब तक अयोध्या में ब्रिटिश प्रशासन ने हिंदुओं और मुसलमानों के लिए पूजा के अलग-अलग क्षेत्रों को चिह्नित करते हुए मंदिर के चारों ओर एक बाड़ लगा दी जो लगभग 90 वर्षों तक उसी तरह खड़ा रहा। 22 दिसंबर, 1949 की रात को बाबरी मस्जिद के अंदर 'राम लल्ला' की मूर्तियां प्रकट हुई जिससे स्थल के आसपास धार्मिक भावनाएं तीव्र हो गई और इसके स्वामित्व पर कानूनी लड़ाई शुरू हो गई। हिंदुओं ने दावा किया कि मूर्तियां मस्जिद के अंदर प्रकट हुई। इस साल पहली बार संपत्ति विवाद अदालत में गया। साल 1950 से लेकर1959 के बीच अगले दशक में कानूनी मुकदमों में वृद्धि देखी गई, जिसमें निर्मोही अखाड़ा ने मूर्तियों की पूजा करने का अधिकार मांगा और सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने साइट पर कब्जा करने की मांग की।
बाद में एक विवादास्पद कदम में 1986 में केंद्र में राजीव गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार के दौरान बाबरी मस्जिद के ताले खोल दिए गए, जिससे हिंदुओं को अंदर पूजा करने की अनुमति मिल गई। इस निर्णय ने तनाव को और बढ़ा दिया। विश्व हिंदू परिषद ने 1990 में राम मंदिर के निर्माण के लिए एक समय सीमा तय की, जिससे मंदिर की मांग और बढ़ गई। इस अवधि में भाजपा के नेता लालकृष्ण आडवाणी की रथ यात्रा की शुरुआत भी हुई। इस दौरान वीएचपी और भाजपा ने राम जन्मभूमि की मुक्ति के लिए पूरे विश्व से जन समर्थन जुटाया। वहीं दूसरी तरफ वर्ष 1992 में राम भक्तों द्वारा ढांचे को ढहा दिया गया। ढांचे के विध्वंस के बाद पूरे भारत में सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे, जिसके परिणामस्वरूप जान-माल का भारी नुकसान हुआ।
उस समय की पीवी नरसिम्हा राव के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार द्वारा विवादित क्षेत्र के अधिग्रहण को डॉ. फारुकी ने चुनौती दी, जिसके बाद 1994 में सुप्रीम कोर्ट (SC) ने फैसला सुनाया। फैसले ने अधिग्रहण को बरकरार रखा। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 2002 में स्वामित्व मामले की सुनवाई शुरू की और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने मस्जिद के नीचे एक हिंदू मंदिर के सबूत का दावा करते हुए खुदाई की। साल 2009-2010 में 16 वर्षों में 399 बैठकों के बाद, लिब्रहान आयोग ने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिसमें बाबरी मस्जिद विध्वंस के जटिल विवरणों का खुलासा किया गया और प्रमुख नेताओं को शामिल किया गया।
लिब्रहान आयोग ने अपनी जांच शुरू करने के लगभग 17 साल बाद जून 2009 को अपनी रिपोर्ट सौंपी, जिसमें लालकृष्ण आडवाणी, अटल बिहारी वाजपेयी और अन्य बीजेपी नेताओं का नाम शामिल था। इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 2010 के फैसले में भूमि को हिंदुओं, मुसलमानों और निर्मोही अखाड़े के बीच विभाजित करके विवाद को सुलझाने का प्रयास किया गया। हालांकि, निर्णय को अपील और आगे की कानूनी चुनौतियों का सामना करना पड़ा। जिसके बाद साल 2019 में ऐतिहासिक फैसले में, सुप्रीम कोर्ट ने राम मंदिर के निर्माण के लिए पूरी विवादित भूमि हिंदुओं को दे दी और मस्जिद के निर्माण के लिए एक वैकल्पिक स्थल आवंटित किया।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 5 अगस्त, 2020 को बाबरी मस्जिद स्थल पर एक भव्य राम मंदिर की आधारशिला रखी। 'भूमि पूजन' और श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के गठन ने राम मंदिर के निर्माण का मार्ग प्रशस्त कर दिया, जिससे एक लंबी कानूनी गाथा का अंत हुआ। जिसके बाद 22 जनवरी, 2024 को पीएम मोदी ने राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा करते हुए भव्य मंदिर का उद्घाटन किया।
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