Babri के आरोपी बरीः फैसले को चुनौती देगा MPLB, बोला- SC ने माना था विध्वंस था कानून का गंभीर उल्लंघन
उन्होंने कहा, ‘‘हम निश्चित रूप से उच्चतम न्यायालय जाएंगे क्योंकि सर्वोच्च न्यायालय ने खुद यह स्वीकार किया था कि बाबरी मस्जिद का विध्वंस एक आपराधिक कृत्य था।’’
तस्वीर का इस्तेमाल सिर्फ प्रस्तुतिकरण के लिए किया गया है। (फाइल)
उत्तर प्रदेश के अयोध्या में बाबरी मस्जिद के विध्वंस से जुड़े केस के आरोपियों को बरी करने के स्पेशल सीबीआई कोर्ट के आदेश को ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देगा। बुधवार (सात सितंबर, 2022) को बोर्ड के कार्यकारिणी सदस्य और प्रवक्ता सैयद कासिम रसूल इलियास ने समाचार एजेंसी ‘पीटीआई-भाषा’ को इस बारे में बताया कि बोर्ड ने बाबरी विध्वंस केस में कोर्ट की ओर से सभी आरोपियों को बरी किए जाने के फैसले को टॉप कोर्ट में चैलेंज करने का फैसला लिया है।
उन्होंने आगे बताया, ‘‘हम निश्चित तौर पर टॉप कोर्ट का दरवाजा खटखटाएंगे, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने खुद यह बात मानी थी कि कि बाबरी मस्जिद का विध्वंस एक आपराधिक कृत्य था। कोर्ट के पांच जजों वाली बेंच ने राम जन्मभूमि बाबरी मस्जिद मामले में नौ नवंबर 2019 को दिए गए ऐतिहासिक फैसले में कहा था कि इस मस्जिद को ढहाया जाना कानून का गंभीर उल्लंघन था। इस मामले के सभी आरोपी अब भी कानून की पकड़ से बाहर हैं।’’
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दरअसल, इस केस में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल में हाजी महबूब और सैयद अखलाक की ओर से दी गई बाबरी विध्वंस केस में सीबीआई कोर्ट के निर्णय के पुनरीक्षण की याचिका खारिज कर दी थी। इलियास के मुताबिक, हाईकोर्ट ने जिन हाजी महबूब और सैयद अखलाक की याचिका खारिज की, वे दोनों ही अयोध्या के रहने वाले हैं। वे इस मामले में सीबीआई अदालत में गवाह थे और छह दिसंबर 1992 को अभियुक्तों की ओर से जमा की गई भीड़ ने उनके घरों पर भी हमला किया था। वे दोनों बाबरी मस्जिद के नजदीक में ही रहते हैं।
स्पेशल सीबीआई कोर्ट ने 30 सितंबर 2020 को बाबरी विध्वंस मामले में पूर्व उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी, पूर्व केंद्रीय मंत्री मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के वरिष्ठ नेता विनय कटियार और साध्वी ऋतंभरा समेत सभी 32 अभियुक्तों को बरी कर दिया था। उसके बाद महबूब और अखलाक ने आठ जनवरी 2021 को सीबीआई अदालत के इस निर्णय के पुनरीक्षण के लिए उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था। इस साल नौ नवंबर को न्यायालय ने उनकी यह अर्जी खारिज करते हुए कहा था कि दोनों याचिकाकर्ता बाबरी विध्वंस मामले के पीड़ित नहीं हैं।
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