एक अंग्रेज के खिलाफ मुकदमा लड़ने इग्लैंड तक चले गए थे बाल गंगाधर तिलक, ऐसे ही नहीं मिली थी 'लोकमान्य' की उपाधि

Bal Gangadhar Tilak Punyatithi: जिस अंग्रेज ने बाल गंगाधर तिलक को अशांति का जनक कहा था, उसका नाम था वेलेंटाइन चिरोल। इग्नाटियस वैलेंटाइन चिरोल एक ब्रिटिश पत्रकार, लेखक, इतिहासकार और राजनयिक था। उसे सर की उपाधि मिली हुई थी।

bal gangadhar tilak punyatithi

कहानी आधुनिक भारत के निर्माता बाल गंगाधर तिलक की

Bal Gangadhar Tilak Punyatithi: बाल गंगाधर तिलक- आजादी के नायक, बापू की भाषा में आधुनिक भारत के निर्माता और जनता के लोकमान्य और अंग्रेजों के लिए अशांति के जनक। अंग्रेज बाल गंगाधर तिलक से इतने खौफ खाते थे कि उन्हें भारतीय अशांति का जनक की उपाधि दे दी थी, लेकिन तिलक तो तिलक ठहरे, आजादी के योद्धा, जिस अंग्रेज ने उन्हें ये नाम दिया था, उसके खिलाफ मुकदमा लड़ने के लिए इंग्लैड तक चले गए। उस गोरे की हालत खराब दी थी बाल गंगाधर तिलक ने।

ये भी पढ़ें- जब Father Of Atomic Bomb ओपेनहाइमर को पंडित नेहरू ने दिया था भारतीय नागरिक बनने का ऑफर, मिला था ये जवाब

कौन था वो अंग्रेज

जिस अंग्रेज ने बाल गंगाधर तिलक को अशांति का जनक कहा था, उसका नाम था वेलेंटाइन चिरोल। इग्नाटियस वैलेंटाइन चिरोल एक ब्रिटिश पत्रकार, लेखक, इतिहासकार और राजनयिक था। उसे सर की उपाधि मिली हुई थी। इसी ने बाल गंगाधर तिलक को भारतीय अशांति का जनक कहा था। बाद में चिरोल को इस कथन के लिए बड़ी कीमत चुकानी पड़ी थी और बेज्जइती हुई सो अलग।

क्या कहा था चिरोल ने

चिरोल ने तिलक को भारतीय अशांति का जनक अपनी पुस्तक, इंडियन अनरेस्ट में कहा था। चिरोल ने भारत में क्रांतिकारियों के साथ लोकमान्य के संबंध स्थापित करने की कोशिश की और कहा कि लोकमान्य बम विस्फोटों और गुप्त समाजों के प्रेरक और आयोजक थे, जिनका गढ़ बंगाल था। चिरोल ने छह आधारों पर लोकमान्य को बदनाम करने की कोशिश की:

  1. नासिक के कलेक्टर जैक्सन की हत्या
  2. पूना प्लेग कमेटी के अध्यक्ष रैंड की हत्या
  3. ताई महाराज केस
  4. ब्लैकमेल
  5. जिमनास्टिक सोसायटी
  6. गौ-रक्षा समिति
तिलक बना चिरोल केस (Tilak vs Chirol)

तिलक को जब ये बात पता चली तो उन्होंने चिरोल सबक सिखाने की ठान ली और उसके खिलाफ मुकदमा कर दिया। बर्मा की मांडले जेल से रिहाई के बाद, तिलक ने अक्टूबर 1915 में चिरोल पर मानहानि का मुकदमा दायर किया। सरकारी देरी के कारण, वह सितंबर 1918 में शिकायत दर्ज कराने के लिए लंदन चले गए। लोकमान्य ने चिरोल से माफी मांगने और भारतीय युद्ध राहत कोष में योगदान देने के लिए कहा। हालांकि जैसा कि सबको पता था कि अंग्रेजी राज में भारतीय को न्याय मिलना नामुमकिन था, तिलक अंततः मुक़दमा हार गए, लेकिन इसके कारण चिरोल को लगभग दो साल भारत में बिताने पड़े थे।

देश और दुनिया की ताजा ख़बरें (Hindi News) अब हिंदी में पढ़ें | देश (india News) और चुनाव के समाचार के लिए जुड़े रहे Times Now Navbharat से |

लेटेस्ट न्यूज

शिशुपाल कुमार author

पिछले 10 सालों से पत्रकारिता के क्षेत्र में काम करते हुए खोजी पत्रकारिता और डिजिटल मीडिया के क्षेत्र में एक अपनी समझ विकसित की है। जिसमें कई सीनियर सं...और देखें

End of Article

© 2024 Bennett, Coleman & Company Limited