लेबनान की क्रिश्चियन महिला भारत के इस मंदिर में बनी पुजारन, हाई पेड नौकरी छोड़ पकड़ा आध्यात्म का रास्ता
Bhairagini Maa Hanine: हम बात कर रहे हैं कोयंबटूर में ईशा योग केंद्र में मां लिंग भैरवी मंदिर की पुजारन भैरागिनी मां हनिने की। इस मंदिर से जुड़ने से पहले वह एक लेबनानी महिला थीं और आरामदायक जिंदगी गुजर कर रही थीं। हालांकि, आध्यात्म से जुड़ने के लिए उन्होंने अपना सबकुछ छोड़ दिया और भारत आ गईं।
भैरागिनी मां हनिने (फोटा- Isha Foundation)
Bhairagini Maa Hanine: मिडिल ईस्ट का एक मुस्लिम बाहुल्य देश है लेबनान। यहां ईसाईयों की आबादी करीब 32 प्रतिशत है। इस देश की एक ईसाई महिला अब सनातन और हिंदुत्व का झंडा बुलंद कर रही है। आध्यात्म और सनातन से जुड़ने के लिए न सिर्फ उन्होंने एक हाई पेड सैलरी वाली नौकरी को छोड़ दिया बल्कि वह एक तमिलनाडु के एक मंदिर में पुजारन तक बन गई हैं।
हम बात कर रहे हैं कोयंबटूर में ईशा योग केंद्र में मां लिंग भैरवी मंदिर की पुजारन भैरागिनी मां हनीन की। इस मंदिर से जुड़ने से पहले वह एक लेबनानी महिला थीं और आरामदायक जिंदगी गुजर कर रही थीं। हालांकि, आध्यात्म से जुड़ने के लिए उन्होंने अपना सबकुछ छोड़ दिया और भारत आ गईं। अब वह पिछले 14 साल से यहां हैं और मंदिर की पुजारन की भूमिका निभा रही हैं। आइए जानते हैं इनके बारे में...
'मैं जहां से आई वहां आध्यात्मिकता नाम की चीज नहीं'
टाइम्स नाउ डिजिटल से खास बातचीत में भैरागिनी मां हनीन ने कहा कि 'मैं मूल रूप से लेबनान से हूं और मैंने ग्राफिक डिजाइनिंग का अध्ययन किया है। मैं एक विज्ञापन एजेंसी में एक रचनात्मक कला निर्देशक थी। मैं 2009 में स्वयंसेवक के रूप में यहां आई थी और मैं यहां 14 साल से हूं।' हनीन ने आगे बताया कि 'मैं जहां से आई हूं, वहां आध्यात्मिकता और योग जैसी कोई चीज नहीं है। हालांकि, मेरे पास सब कुछ था लेकिन मैं एक ऐसी चीज के लिए तरस रही थी जो मुझे नहीं पता था कि यह क्या था और जैसा कि सद्गुरु कहते हैं, बहुत से लोग केवल आध्यात्मिकता की ओर रुख करते हैं जब जीवन में कोई मुश्किल आती हैं। दुर्भाग्य से मेरे सबसे करीबी दोस्त की मृत्यु से मैं बहुत बुरी तरह प्रभावित हुई और तभी मेरे मन में सवाल उठने लगे। मैंने उत्तर ढूंढना शुरू कर दिया।'
भैरागिनी मां के रूप में ली दीक्षा
हनीन कहती हैं कि 'अपनी खोज के दौरान, मुझे सद्गुरु के बारे में पता चला और मैंने 'इनर इंजीनियरिंग' की।' (ईशा योग केंद्र द्वारा प्रस्तुत एक कार्यक्रम) 2005 में। मैं वापस गई, अपनी नौकरी से इस्तीफा दे दिया, अपना बैग पैक किया और यहां आ गई। मैंने हर पहलू में स्वयंसेवा करना शुरू कर दिया और इससे मुझे ऐसी संतुष्टि मिली जो मैंने पहले कभी महसूस नहीं की थी। दो वर्ष पहले सद्गुरु ने मुझे भैरागिनी मां के रूप में दीक्षा दिलाई!'
परिवार को आज मुझ पर गर्व है-मां हनीन
टाइम्स नाउ डिजिटल से मां हनीन ने कहा, 'मैं जहां हूं, अपने परिवार और उनके समर्थन की वजह से हूं। शुरुआत में, उनके लिए यह समझना मुश्किल था कि मैं जो कर रही हूं वह क्यों कर रही हूं, लेकिन जब उन्होंने मुझमें और मेरे व्यवहार में बदलाव देखा, तो वे उत्सुक हो गए। वह लड़की जो हर बात पर प्रतिक्रिया करती थी, क्रोधित और चिढ़ जाती थी, वह अब बहुत अधिक शांत और धैर्यवान है, उन्होंने मुझमें जबरदस्त बदलाव देखा। अब, वे लोगों को भारत में मेरे जीवन के बारे में बताते हैं और मैं जो कर रही हूं उस पर उन्हें गर्व है।'
हनीन को पसंद है भारतीय साड़ी ईसाई महिला होते हुए भी अब वह भारतीय परिधान साड़ी में रहती हैं और भक्तों के साथ देवी की पूजा करती हैं। वह बताती हैं कि भैरागिनी मां लिंगा भैरवी देवी मंदिर की पुजारियों के लिए एक शब्द है और 'भैरागिनी' का अर्थ है - 'देवी के रंग'। भैरागिनी मां को देवी और उनके गुणों का प्रतिबिंब माना जाता है। इसी कारण हम लाल साड़ी पहनते हैं। भैरागिनी मां लिंग भैरवी निवास की देखभाल करने वाली हैं और वे पूजा-अर्चना से लेकर आरती तक सभी अनुष्ठान करती हैं।
नहीं बदला धर्म, अभी भी हूं ईसाईवह बताती हैं कि भारत आने के बाद भी उन्होंने अपना धर्म नहीं बदला है और अभी भी ईसाई हैं। उन्हेांने कहा, मुझसे कभी भी किसी ने धर्म परिवर्तन करने के लिए नहीं कहा। अपने परिवार के बारे में उन्होंने कहा, मुझे मेरे परिवार से पूरा समर्थन मिला और अभी भी वे मेरे साथ हैं। वह आगे कहती हैं कि शुरुआत में मेरे परिवार के लिए यह समझना मुश्किल था कि मैं जो कर रही हूं वह क्यों कर रही हूं, लेकिन जब उन्होंने मुझमें और मेरे व्यवहार में बदलाव देखा तो वे मेरा समर्थन करने लगे।
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