भरतमुनि सम्मान समारोह: मोहन भागवत बोले, 'मंदिर में रामलला क्या पधारे, भारत का ‘स्व’ लौट रहा'

Bharatmuni Samman Ceremony: कलासाधक संगम में भरतमुनि सम्मान से कलासाधकों का सम्मान हुआ। मोहन भागवत ने इस सम्मान को राम मंदिर निर्माण से जोड़ते हुए कहा कि मंदिर में रामलला क्या पधारे, भारत का ‘स्व’ लौट रहा है। रामलला के प्रकट होने के बाद संस्कार भारती द्वारा किया गया यह प्रयास उसे दर्शाता है।

Mohan Bhagwat

मोहन भागवत, सरसंघचालक

Mohan Bhagwat News: संस्कार भारती द्वारा आयोजित अखिल भारतीय कला साधक संगम के तीसरे दिन आज भरतमुनि सम्मान समारोह का आयोजन हुआ। इस दौरान राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने लोक कलाओं को संरक्षित और प्रसारित करने में विशेष योगदान के लिए महाराष्ट्र के गणपत सखाराम मसगे को प्रथम भरतमुनि सम्मान से सम्मानित किया। चित्रकला क्षेत्र में विजय दशरथ आचरेकर को भरतमुनि सम्मान प्रदान किया गया। भरतमुनि सम्मान के अंतर्गत कला साधकों को भरतमुनि की मूर्ति, एक प्रशस्ति पत्र और डेढ़ लाख रुपये का चेक प्रदान किया गया।

राम मंदिर को लेकर मोहन भागवत ने क्या कहा?

मोहन भागवत ने इस सम्मान को राम मंदिर निर्माण से जोड़ते हुए कहा कि मंदिर में रामलला क्या पधारे, भारत का ‘स्व’ लौट रहा है। रामलला के प्रकट होने के बाद संस्कार भारती द्वारा किया गया यह प्रयास उसे दर्शाता है। उन्होंने कहा कि कला का संबंध मनोरंजन से कम, मनुष्यों को संस्कारवान बनाने से अधिक होता है। हमारी दृष्टि कहती है कि कला ही मनुष्य को मनुष्य बनाती है, इसीलिए कलाकारों का सम्मान समाज में होना चाहिए। आज के समय में सम्मान समारोह की प्रासंगिकता पर बात करते हुए कहा कि कलाकारों का सम्मान एक सामाजिक आवश्यकता है क्योंकि यह संस्कृति को समृद्ध बनाने वाले साधकों की तपस्या को धन्यवाद कहने का अवसर होता है।

संस्कार भारती के राष्ट्रीय अध्यक्ष वासुदेव कामत ने कहा कि यह भरतमुनि का सम्मान है, कोई प्रतियोगिता की ट्रॉफी नहीं। कलासाधकों के कारण समाज अपनी संस्कृति को प्रवाहमान बनाए रखता है। भरतमुनि सम्मान समिति के संयोजक सुबोध शर्मा एवं रविंद्र भारती ने सम्मान समारोह का संचालन किया। चार दिवसीय अखिल भारतीय कलासाधक संगम-202 श्री श्री रविशंकर आश्रम बेंगलुरु, कर्नाटक में हो रहा है, जिसमें देश भारत से आये हजारों कला प्रतिनिधि व कलासाधक भाग ले रहे हैं। वस्तुतः कलासाधक संगम भारतीय कला दृष्टि में विश्वास रखने वाले कलासाधकों का एक समागम है जो प्रायः 3 वर्ष के अंतराल पर देश के अलग-अलग स्थान पर आयोजित होता है। इसमें विभिन्न कलाविधाओं की मंचीय प्रस्तुतियां व बौद्धिक संवाद-विमर्श होता है। जिसके माध्यम से कलासाधक, कला रसिक व आमजन भारतीय कला दृष्टि के प्रति अपनी सोच विकसित करते हैं और साहित्य-कला-संस्कृति के माध्यम से मातृभू आराधना में संलग्न होते हैं।

समरसता पर आधारित शोभायात्रा निकाली जाएगी

इस बार के कलासाधक संगम में देश के सभी प्रांतों से आए साहित्यकार व कलाकार कला और साहित्य के माध्यम से समरसता विषय के अंतर्गत आने वाले विभिन्न पहलुओं पर सत्रों में सेमिनार, मंचीय प्रस्तुतियों व प्रदर्शनियों से संदेश दे रहे हैं। तीसरे दिन सम्मान समारोह के साथ-साथ लघु नाटिका 'कृष्ण कहे' के अंतर्गत प्रसिद्ध अभिनेता नितीश भारद्वाज ने अभिनय से वर्तमान समाज में समरसता के भाव का उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत किया। कलासाधक संगम के आखिरी दिन सामाजिक समरसता पर आधारित शोभायात्रा भी निकाली जाएगी। आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर के आशीर्वचन, डॉ. मोहन भागवत के समापन उद्बोधन के साथ 4 दिवसीय कार्यक्रम पूर्ण होगा।

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