बिहार में जातिगत सर्वे के आंकड़ों से मुश्किल में BJP, 2024 चुनाव को लेकर बढ़ गई टेंशन
जातिगत सर्वे के आंकड़े सामने आने के बाद भाजपा को अपने समर्थक दलों के साथ बेहतर तालमेल बनाने की नए सिरे से रणनीति भी बनानी पड़ सकती है।
बिहार जातिगत सर्वे और बीजेपी की मुश्किलें
Bihar Caste Survey: बिहार में जातिगत सर्वे के आंकड़े भाजपा के लिए मुश्किलें पैदा कर सकते हैं। अब भाजपा को 2024 लोकसभा चुनाव के दौरान उच्च जातियों के बीच अपना समर्थन और जनाधार बनाए रखने के लिए और अधिक जद्दोजहद करनी होगी। साथ ही अपने गठबंधन सहयोगियों के नेताओं की जातीय खींचतान को भी रोकना होगा। बिहार में 40 संसदीय क्षेत्र हैं। भाजपा अपने 2019 के प्रदर्शन को दोहराने की कोशिश कर रही है, जब उसने नीतीश कुमार के साथ-साथ राम विलास पासवान के नेतृत्व वाली लोक जनशक्ति पार्टी के साथ मिलकर 39 सीटें जीती थीं।
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"ठाकुर का कुआं" से छिड़ी सियासी जंग
लेकिन, 1994 में तत्कालीन गोपालगंज डीएम जी कृष्णैया की हत्या के दोषी बिहार पीपुल्स पार्टी (बीपीपी) के पूर्व प्रमुख आनंद मोहन द्वारा राजद सांसद मनोज कुमार झा की कविता "ठाकुर का कुआं" के जिक्र को लेकर पहले से ही विवाद पैदा हो गया है। इसने बिहार में ब्राह्मणों और ठाकुरों/राजपूतों को टकराव की स्थिति में डाल दिया है। पर्यवेक्षकों का मानना है कि भाजपा को इस मुद्दे से सियासी तरीके से निपटना होगा। इसमें कोई भी चूक उसे भारी पड़ सकती है।
भाजपा नेताओं की निगाहें आलाकमान पर
सूत्रों के मुताबिक, राज्य नेतृत्व इस मामले में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह जैसे नेताओं के संपर्क में है, और उन्हें उम्मीद है कि पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व रोहिणी आयोग की सिफारिशों के बारे में फैसला ले सकता है। आयोग ने केंद्र सरकार की नौकरियों में पिछड़ी जातियों और ईबीसी के बीच आरक्षण/कोटा की सिफारिश की है। इसे लेकर भाजपा की बेचैनी जद (यू), राजद, कांग्रेस और तीन वाम दलों वाले छह दलों के महागठबंधन के लिए सुकूनभरी साबित होगी।
ओवैसी बनेंगे महागठबंधन के लिए चुनौती
लेकिन महागठबंधन की एक बड़ी समस्या असदुद्दीन ओवैसी के नेतृत्व वाली एआईएमआईएम है, जिसने 2020 के विधानसभा चुनावों में छह विधानसभा सीटें जीती थीं। ध्रुवीकरण के चलते ओवैसी की पार्टी महागठबंधन के मुस्लिम समर्थन का एक हिस्सा छीन सकती है। हालांकि, एआईएमआईएम के छह में से पांच विधायक बाद में राजद में शामिल हो गए थे।
भाजपा को छोटी पार्टियों को लुभाना होगा
इन हालात में भाजपा को एनडीए में शामिल नहीं होने वाली अन्य छोटी पार्टियों को लुभाना होगा। इसमें खास तौर पर शामिल है भाजपा कोटे से पूर्व मंत्री और एमएलसी मुकेश साहनी के नेतृत्व वाली विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी)। इस पार्टी को केवट और मल्लाह जैसे जाति का समर्थन मिलता है जिसकी संख्या 3.3% है। भाजपा को अपने समर्थक दलों के साथ बेहतर तालमेल बनाने की नए सिरे से रणनीति भी बनानी पड़ सकती है। इसके अलावा, बसपा प्रमुख मायावती भी भाजपा के लिए चुनौती खड़ी करेंगी। वह एनडीए से बाहर हैं और उनकी पार्टी का जाति-आधारित समर्थन कुल आबादी का 5.3% है।
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