बिहार में फिर से शुरू होगी जातीय जनगणना? पटना हाईकोर्ट के फैसले को नीतीश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दी चुनौती
बिहार सरकार ने कहा कि राज्य पहले ही कुछ जिलों में 80 प्रतिशत से अधिक सर्वेक्षण कार्य पूरा कर चुका है और 10 प्रतिशत से कम कार्य लंबित है। पूरी मशीनरी जमीनी स्तर पर काम कर रही है। राज्य सरकार ने कहा कि जाति आधारित डेटा का संग्रह संविधान के अनुच्छेद 15 और 16 के तहत एक संवैधानिक आदेश है।
बिहार सरकार ने पटना उच्च न्यायालय के उस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है, जिसमें उसने जातिगत जनगणना पर अंतरिम रोक लगा दी है। पटना हाईकोर्ट के चार मई के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दायर एक अपील में राज्य सरकार ने कहा कि रोक से पूरी कवायद पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।
संविधान का दिया हवाला
राज्य सरकार ने कहा कि जाति आधारित डेटा का संग्रह संविधान के अनुच्छेद 15 और 16 के तहत एक संवैधानिक आदेश है। संविधान के अनुच्छेद 15 में कहा गया है कि राज्य किसी भी नागरिक के खिलाफ केवल धर्म, नस्ल, जाति, लिंग, जन्म स्थान या इनमें से किसी के आधार पर भेदभाव नहीं करेगा, जबकि अनुच्छेद 16 में कहा गया है कि संबंधित मामलों में सभी नागरिकों के लिए अवसर की समानता होगी।
कई जिलों में 80 प्रतिशत काम पूरा
बिहार सरकार ने कहा कि राज्य पहले ही कुछ जिलों में 80 प्रतिशत से अधिक सर्वेक्षण कार्य पूरा कर चुका है और 10 प्रतिशत से कम कार्य लंबित है। पूरी मशीनरी जमीनी स्तर पर काम कर रही है।
पटना हाईकोर्ट ने क्या कहा था
पटना हाईकोर्ट ने 4 मई को जाति आधारित सर्वे पर रोक लगाते हुए आदेश दिया था कि अबतक जितना डाटा जमा किया गया है, उसे सुरक्षित रखा जाए। साथ ही हाईकोर्ट से इस मामले पर तीन जुलाई को अगली तारीख मिली थी, जिसके खिलाफ राज्य सरकार फिर से हाईकोर्ट गई और जल्द सुनवाई करने की अपील की, जिसे हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया था।
विरोध में दलीलें
जातीय जनगणना का विरोध में दायर अर्जी में दलील दी गई थी कि जनगणना का अधिकार क्षेत्र केंद्र सरकार के दायरे में आता है। राज्य सरकार इस तरह की जनगणना नहीं करा सकती। वहीं सरकार का कहना है कि सभी दलों की सहमति से ये कार्य हो रहा है और इससे विकास कार्यों में फायदा मिलेगा।
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