रेवड़ी कल्चर पर वरुण गांधी ने साधा निशाना, जो जन्म से लेकर मौत तक का ठेका ले..

बीजेपी सांसद वरुण गांधी पिछले कुछ समय से कृषि कानूनों, बेरोजगारी और शासन से संबंधित विभिन्न मुद्दों पर अपनी पार्टी से स्वतंत्र रुख अपना रहे हैं। उन्होंने अब तक चार किताबें लिखी हैं जिनमें द इंडियन मेट्रोपोलिस उनकी नवीनतम पुस्तक है।

वरुण गांधी, बीजेपी सांसद

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सांसद वरुण गांधी ने कहा कि राजनीतिक दलों ने मुफ्त की रेवड़ियों की पेशकश की संस्कृति को बढ़ावा देकर जनमानस में एक ऐसी मानसिकता को प्रोत्साहित किया है कि जो सरकार जन्म से मृत्यु तक का उसका ठेका ले, वही कल्याणकारी सरकार है।शासन से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर अक्सर अपनी चिंता जताने वाले वरूण गांधी ने कहा कि मुफ्त की रेवड़ियों की पेशकश कर सार्वजनिक धन के व्यापक दुरुपयोग के बारे में संवाद की जरूरत है। ‘‘द इंडियन मेट्रोपोलिस’’ के बारे में कहा कि ऐसे कई वादे पूरे नहीं होते हैं या आंशिक रूप से अधूरे रह जाते हैं। ऐसे वादे करना मतदाताओं का अपमान है।

सभी दल एक जैसे

उन्होंने कहा कि सभी राजनीतिक दल अब मुफ्त रेवड़ियां बांटने की पेशकश करते हैं और इसके माध्यम से हकदारी की एक मानसिकता को प्रोत्साहित किया गया है। इससे जन्म से अंत तक कल्याणकारी राज्य की अवधारणा पैदा हो रही है।’’हालांकि, उन्होंने कहा कि हर योजना या घोषणापत्र का वादा मुफ्त नहीं है।उनके मुताबिक स्कूलों में छात्रों के लिए मुफ्त भोजन, जैसा कि मध्याह्न भोजन योजना के तहत दिया जाता है।उन्होंने कहा कि इसे मुफ्त के रूप में वर्गीकृत नहीं किया जाना चाहिए, यह देखते हुए कि यह हमारे बच्चों के स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में मदद करता है।उन्होंने आगे कहा कि मुफ्त उपहारों के इस ढांचे में सुधार के लिए कई स्तर पर पहल की आवश्यकता होगी।

सभी सरकारें मिल कर सोचें

उत्तर प्रदेश से तीन बार सांसद रहे गांधी ने सुझाव दिया कि मुफ्त उपहारों की घोषणा करने वाली सरकारों चाहे राज्य हो या केंद्र को एक वित्त पोषण योजना प्रदान करने की आवश्यकता होनी चाहिए। संसद और राज्य विधानसभा बजटीय समझ को मजबूत करने और कार्य करने की उनकी क्षमता बढ़ाने के लिए, नीतियों को तैयार करने और बजटीय विश्लेषण करने में सहायता के लिए एक बजटीय कार्यालय स्थापित किया जाना चाहिए।’’शहरों के सामने चुनौतियों के बारे में लिखी अपनी पुस्तक के बारे में चर्चा करते हुए गांधी ने कहा कि भारत के शहर अपने मास्टर प्लान में कई शहरी हरित स्थानों की आवश्यकता पर विचार करने में विफल’’ रहे हैं।

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