बोफोर्स मामले में CBI ने बनाया नया प्लान, निजी जासूस से जानकारी मांगने के लिए उठाया बड़ा कदम
CBI Plan for Bofors Case: बोफोर्स मामले में भारतीय जांच एजेंसी ने नया कदम उठाया है। अधिकारियों ने ये बताया है कि निजी जासूस से जानकारी मांगने के लिए सीबीआई अमेरिका को एलआर भेजेगी। आपको इस रिपोर्ट में बताते हैं कि आखिर ये मामला क्या है और इसमें अब तक क्या-क्या हुआ।
CBI (फाइल फोटो)
Bofors Case Updates: केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) बोफोर्स मामले में निजी जासूस माइकल हर्शमैन से जानकारी मांगने के लिए जल्द ही अमेरिका को एक न्यायिक अनुरोध भेजेगा। अधिकारियों ने रविवार को यह जानकारी दी। हर्शमैन ने 1980 के दशक के 64 करोड़ रुपये के कथित बोफोर्स रिश्वत कांड के बारे में महत्वपूर्ण विवरण भारतीय एजेंसियों के साथ साझा करने की इच्छा व्यक्त की थी। सीबीआई ने एक विशेष अदालत को भी इस घटनाक्रम के बारे में सूचित किया है, जो मामले में आगे की जांच के लिए एजेंसी की याचिका पर सुनवाई कर रही है।
कथित रिश्वत मामले की आगे की जांच का प्लान
अधिकारियों ने बताया कि ‘लेटर रोगेटरी’ (एलआर) भेजने की प्रक्रिया इस वर्ष अक्टूबर में शुरू की गई थी और अमेरिका को औपचारिक अनुरोध भेजने में लगभग 90 दिन लगने की संभावना है, जिसका उद्देश्य कथित रिश्वत मामले की आगे की जांच के लिए सूचना प्राप्त करना है। लेटर रोगेटरी एक लिखित अनुरोध है जो एक देश की अदालत द्वारा किसी आपराधिक मामले की जांच या अभियोजन में सहायता प्राप्त करने के लिए दूसरे देश की अदालत को भेजा जाता है।
राजीव गांधी को इस मामले में कर दिया था बरी
दिल्ली उच्च न्यायालय ने 2004 में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी को इस मामले में बरी कर दिया था। उसने एक साल बाद राजनीतिक रूप से संवेदनशील इस मामले में हिंदुजा बंधुओं सहित शेष आरोपियों के खिलाफ सभी आरोपों को खारिज कर दिया था। इतालवी व्यवसायी एवं कथित तौर पर रिश्वत मामले में बिचौलिये ओत्तावियो क्वात्रोची को 2011 में एक अदालत ने बरी कर दिया था। अदालत ने सीबीआई को उनके खिलाफ अभियोजन वापस लेने की अनुमति दी थी।
64 करोड़ रुपये की रिश्वत के आरोपों से जुड़ा मामला
यह मामला 1980 के दशक में तत्कालीन कांग्रेस सरकार के दौरान स्वीडन की कंपनी ‘बोफोर्स’ के साथ 1,437 करोड़ रुपये के सौदे में 64 करोड़ रुपये की रिश्वत के आरोपों से जुड़ा है। यह सौदा 400 हॉवित्जर तोपों की आपूर्ति के लिए किया गया था, जिसने करगिल युद्ध के दौरान भारत की जीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। यह मामला 2011 में बंद कर दिया गया था।
‘फेयरफैक्स ग्रुप’ के प्रमुख हर्शमैन 2017 में निजी जासूसों के एक सम्मेलन में भाग लेने के लिए भारत आए थे। अपने प्रवास के दौरान वह विभिन्न मंचों पर दिखाई दिए और उन्होंने आरोप लगाया कि घोटाले की जांच कांग्रेस सरकार द्वारा पटरी से उतार दी गई थी। हर्शमैन ने कहा है कि वह सीबीआई के साथ विवरण साझा करने के लिए तैयार हैं। एजेंसी ने विशेष अदालत को सूचित किया कि हर्शमैन के खुलासे के बाद, वह जांच को फिर से खोलने की योजना बना रही है।
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आयुष सिन्हा author
मैं टाइम्स नाउ नवभारत (Timesnowhindi.com) से जुड़ा हुआ हूं। कलम और कागज से लगाव तो बचपन से ही था, जो...और देखें
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