UP: 'बुल्डोजर कानून' को SC में चुनौती, कहा- यह Law लोगों के मूल अधिकारों के खिलाफ
इस कानून का नियम 22 कहता है कि किसी भी आरोपी के खिलाफ मुकदमा जांच के बीच में कभी भी दर्ज किया का सकता है और उसके लिए आरोपी का आपराधिक इतिहास होना जरूरी नहीं है।
उत्तर प्रदेश के बुलडोजर कानून को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दाखिल हुई है। याचिकाकर्ता अनस चौधरी ने उत्तर प्रदेश गैंगस्टर्स-एंटी सोशल एक्टिविटीज प्रिवेंशन एक्ट (1986) की धारा 3,12 और 14 और प्रिवेंशन रूल(2021) को 16(3), 22, 35, 37(3) और 40 की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी है। इस गैंगस्टर कानून के तहत यूपी सरकार की बुलडोजर की कार्रवाई कई बार आलोचना के घेरे में रही है।
कानून के शासन का अपमान है गैंगस्टर एक्ट
याचिका में कहा गया है कि न्यायपालिका आम लोगों के मूलभूत अधिकारों की रक्षा करती है। ऐसे में अदालत लोगों के अधिकारों का हनन करने वाले कानूनों की न्यायिक समीक्षा कर सकती है। ये वही कानून है जिसके तहत यूपी की मौजूदा सरकार अपराधिक कृत्य में शामिल आरोपियों के खिलाफ बुल्डोजर की कार्रवाई करती है। आइए, आपको समझाते हैं कि याचिका के जरिए इस कानून के किन प्रावधानों पर सवाल खड़े किए गए हैं:
1. अपराधिक इतिहास के बिना मुकदमा दर्ज करना
इस कानून का नियम 22 कहता है कि किसी भी आरोपी के खिलाफ मुकदमा जांच के बीच में कभी भी दर्ज किया का सकता है और उसके लिए आरोपी का आपराधिक इतिहास होना जरूरी नहीं है। याचिका में कहा गया है कि कानून का ये हिस्सा गैरकानूनी है, क्योंकि ये पुलिस को असीमित शक्तियां देता है। इस गैंगस्टर कानून और नियमों में आरोपियों के वर्गीकरण किए जाने का प्रावधान नहीं है। ऐसे में पुलिस मनचाहे तरीके से लोगों के खिलाफ कार्रवाई कर रही है। पुलिस उन लोगों के खिलाफ इस कानून के तहत मुकदमे दर्ज कर रही जिनके खिलाफ एक भी मुकदमा नहीं है।
2. प्रॉपर्टी अटैच करने का अधिकार असीमित
इस कानून के सेक्शन 14 में कहा गया है कि अगर जिलाधिकारी को लगता है कि किसी आरोपी के पास मौजूद कोई भी चल-अचल संपत्ति किसी अपराधिक कृत्य के द्वारा हासिल की गई है तो वो उसे जब्त करने का आदेश दे सकते हैं। जिलाधिकारी ये आदेश कोर्ट द्वारा अपराध पर संज्ञान लेने से पहले दे सकते हैं। वहीं नियम 37 कहता है कि किसी भी गैंगस्टर के खिलाफ मुकदमा दर्ज होने से पहले उसकी प्रॉपर्टी जब्त की जा सकती है। ये कानून कहता है कि जिलाधिकारी ही प्रॉपर्टी को जब्त करने और उसे छोड़ने का आदेश देंगे। ये प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के विपरीत है किसी भी मुकदमें को दर्ज करने वाला और उसमें फैसला देने वाला एक नहीं हो सकता है।
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3. संवैधानिक अधिकारों का हनन
भारत के संविधान का अनुच्छेद 21 कहता है कि सभी नागरिकों को स्वतंत्रता के साथ गरिमापूर्ण जीवन जीने का अधिकार है। लेकिन ये कानून कहता है कि वो व्यक्ति जिसने इसके पहले कभी अपराध ही ना किया हो और उसे जिंदगी भर गैंगस्टर के तमगे के साथ जीना पड़ेगा।
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