ट्रेनों के बेपटरी होने के एक नहीं 24 कारक: गड़बड़ ट्रैक से लेकर ओवर स्पीडिंग तक...CAG पहले ही कर चुका था अलर्ट

Odisha Train Accident: दरअसल, ओडिशा के बालासोर जिले में बाहानगा स्टेशन के पास शालीमार-चेन्नई सेंट्रल कोरोमंडल एक्सप्रेस और बेंगलुरु-हावड़ा एक्सप्रेस ट्रेन के पटरी से उतरने और एक मालगाड़ी से टकराने के कारण हुए भीषण रेल हादसे में कम से कम 288 यात्रियों की मौत हुई है और 1,100 से अधिक यात्री घायल हो गए थे।

train derailment

ओडिशा में दो जून, 2023 को हुए रेल हादसे में 288 लोगों की जान चली गई थी।

तस्वीर साभार : टाइम्स नाउ ब्यूरो

Odisha Train Accident: भारतीय रेल के लिए ट्रेनों का पटरी से उतरना और फिर हादसे होना बड़ी चिंता का विषय रहा है। हालांकि, गाड़ियों के डिरेल (बेपटरी) होने के पीछे एक नहीं बल्कि लगभग 24 कारक होते हैं, जिनमें गड़बड़ ट्रैक से लेकर ओवर स्पीडिंग और खराब ड्राइविंग तक शामिल हैं। हैरत की बात है कि भारत के नियंत्रक और महालेखापरीक्षक (Comptroller and Auditor General of India : CAG) की ओर से इस बारे में आगाह किए जाने के बाद भी मौजूदा समय में स्थिति में बड़ा बदलाव नहीं आ पाया और दो जून को ओडिशा के बालासोर में एक बड़ा और भयावह रेल हादसा हुआ, जिसमें कम से कम 288 जानें चली गईं। दरअसल, कैग ने "भारतीय रेलवे में ट्रेनों के बेपटरी होने पर" अपनी साल 2022 की रिपोर्ट में कई सारी कमियों की ओर ध्यान दिलाया था और कुछ सिफारिशें भी की थीं। रिपोर्ट में तब दुर्घटना जांच के संचालन और अंतिम रूप देने के लिए निर्धारित समय-सीमा का सख्ती से पालन सुनिश्चित करने का सुझाव था। इस रिपोर्ट में जिन उदाहरणों का जिक्र था, वे अप्रैल 2017 से मार्च 2021 की अवधि के लिए कैग के ध्यान में आए थे। साथ ही वे भी, जो पहले के बरसों में उनके संज्ञान में (पिछली लेखापरीक्षा रिपोर्ट्स में) आए थे, लेकिन रिपोर्ट नहीं किए जा सके थे।

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ऑडिट का फोकस यह पता लगाने पर था कि क्या रेल मंत्रालय की ओर से पटरी से उतरने और टक्करों को रोकने के उपायों को स्पष्ट रूप से निर्धारित और कार्यान्वित किया गया था? ऑडिटर्स ने पाया कि विभिन्न कारणों से ट्रैक रिकॉर्डिंग कारों और ट्रैक मशीनों के बेकार पड़े होने के निरीक्षण में 30 से 100% तक की कमी थी। वक्त पर पूछताछ के महत्व पर प्रकाश डालते हुए रिपोर्ट में कहा गया है कि इसका असल उद्देश्य हादसे के कारणों का पता लगाना और उनकी घटना को रोकने के लिए प्रस्ताव तैयार करना था। बताया गया, "इस प्रक्रिया में यह पता लगाया जाता है कि काम करने की प्रणाली या भौतिक उपकरणों, जैसे ट्रैक, रोलिंग स्टॉक और अन्य कामकाजी उपकरण में कोई अंतर्निहित दोष मौजूद है या नहीं? फिर निष्कर्षों के आधार पर खामियों और गड़बड़ियों को सुधारने के उपाय प्रस्तावित किए जाते हैं।

रिपोर्ट के मुताबिक, 16 जोनल रेलवे (ZRs) में पटरी से उतरने की दुर्घटनाओं की 1129 'जांच रिपोर्ट' के विश्लेषण से चयनित मामलों/दुर्घटनाओं में पटरी से उतरने के लिए जिम्मेदार 24 कारकों का पता चला और इन मामलों में संपत्ति का कुल नुकसान 32.96 करोड़ रुपए बताया गया। वहीं, 422 रेल दुर्घटनाओं के लिए इंजीनियरिंग विभाग जिम्मेदार था। गाड़ियों/बोगियों के बेपटरी होने के पीछे जो प्रमुख कारक था, उसमें "ट्रैक का रख-रखाव" (171 मामले) से जुड़ा था। दूसरे नंबर "अनुमेय सीमा से परे ट्रैक मापदंडों का विचलन" (156 केस) था। कुल मिलाकर 182 दुर्घटनाएं मकैनिकल डिपार्टमेंट के चलते हुईं और 154 दुर्घटनाएं लोको पायलट्स की वजह से हुईं। यह भी पता चला कि "खराब ड्राइविंग/ओवर स्पीडिंग" भी एक अहम कारक था।

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बकी कुल 422 दुर्घटनाएं इंजीनियरिंग विभाग के लिए जिम्मेदार थे, रेल से पटरी से उतरने के लिए जिम्मेदार प्रमुख कारक "ट्रैक के रखरखाव" (171 मामले) से संबंधित था, इसके बाद "अनुमेय सीमा से परे ट्रैक का रुख" (156 मामला) था। कुल मिलाकर, 182 हताहत यांत्रिकी विभाग के कारण हुए और 154 दुर्घटनाएं लोको पायलटों के कारण हुईं। "खराब ड्राइविंग/ओवर स्पीडिंग" भी एक महत्वपूर्ण कारक था, जबकि ऑपरेटिंग डिपार्टमेंट (संचालन विभाग) की वजह से होने वाली दुर्घटनाओं की संख्या 275 थी और "प्वाइंटों की गलत सेटिंग और शंटिंग संचालन में अन्य गलतियां" 84% थीं। 2017-21 के दौरान 1,127 पटरी से उतरने की घटनाएं हुईं, जिनमें 289 ट्रैक नवीनीकरण से जुड़ी थीं।

रिपोर्ट के मुताबिक, 63% केसों में जांच रिपोर्ट निर्धारित समय सीमा में स्वीकार करने वाले प्राधिकारी को पेश नहीं की गई थी और 49% मामलों में अधिकारियों की ओर से रिपोर्ट की स्वीकृति में देरी हुई। यही नहीं, राष्ट्रीय रेल सुरक्षा कोष (Rashtriya Rail Sanraksha Kosh : RRSK) के प्राथमिकता-I कार्यों पर संपूर्ण खर्च 2017-18 में 81.55% से घटकर 2019-20 में 73.76% हो गया था। ट्रैक नवीनीकरण कार्यों के लिए धन का आवंटन भी ₹9,607.65 करोड़ (2018-19) से घटकर 2019-20 में ₹7,417 करोड़ हो गया था और धनराशि का पूरा इस्तेमाल नहीं किया गया था। ये सारी बातें सामने आने के बाद कैग ने सिफारिश की थी कि निगरानी के लिए एक मजबूत तंत्र बनाया जाना चाहिए, ताकि मेनटेनेंस से जुड़ी गतिविधियों को समय पर लागू कराना सुनिश्चित किया जा सके।

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अभिषेक गुप्ता author

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