1931 तक होती थी जातिगत जनगणना,बिहार से निकला जिन्न क्या BJP के लिए बनेगा चैलेंज

Caste Census in Bihar: देश में वैसे तो 1860 से जनगणना हो रही है। और उस समय से साल 1931 तक जातिगत जनगणना भी होती थी। लेकिन आजादी के बाद से जनगणना में केवल अनुसूचित जाति और अनुसूचित जन जाति की ही जातियों के रुप में अलग से जनगणना की जाती रही है।

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जातिगत जनगणना पर राजनीति

Caste Census in Bihar: बिहार में बीते शनिवार से जातिगत सर्वे शुरू हो गया है। इसमें 2.7 करोड़ जनसंख्या और 2.58 करोड़ घरों को कवर किया जाएगा और सर्वे का पूरा काम 31 मई को पूरा हो जाएगा। हालांकि बिहार सरकार ने इसे जातिगत जनगणना नहीं कहा है। लेकिन इसमें राज्य के 38 जिलों में जातियों की ही गणना की जाएगी। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का दावा है कि इसके जरिए लोगों का सही रिकॉर्ड तैयार होगा और उसका उन्हें योजनाओं में फायदा मिलेगा। लेकिन यह मामला जितना सीधा दिख रहा है, उतना हकीकत में नहीं है। क्योंकि एक तरफ नीतीश कुमार, तेजस्वी यादव, अखिलेश यादव जातिगत जनगणना का समर्थन कर रहे हैं, वहीं केंद्रीय स्तर पर भाजपा ने जातिगत जनगणना करने से इंकार कर दिया है। हालांकि मामला इतना संवेदनशील है कि बिहार की भाजपा इकाई इसका खुलकर विरोध भी नहीं कर रही है।
क्या है जातिगत जनगणना
देश में वैसे तो 1860 से जनगणना हो रही है। और उस समय से साल 1931 तक जातिगत जनगणना भी होती थी। लेकिन आजादी के बाद से जनगणना में केवल अनुसूचित जाति और अनुसूचित जन जाति की ही जातियों के रुप में अलग से जनगणना की जाती रही है। जबकि ओबीसी जातियों की जनगणना अलग से नहीं की गई। लेकिन अब यह मांग उठने लगी है कि देश में ओबीसी की भी गणना की जाय। जिससे कि सही स्थिति का अंदाजा लग सके। ऐसे में सवाल उठता है कि केंद्र में बैठी भाजपा क्यों जातिगत जनगणना नहीं चाहती है।
बदल सकती है राजनीति
अगर जातिगत जनगणना होती है तो इस बात का डर है कि कहीं मौजूदा आंकलन की तुलना में ओबीसी की संख्या में बढ़ोतरी या कमी न हो जाय। तो यह एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा बन सकता है। और आरक्षण की नई मांग खड़ी हो सकती है।
1990 में तत्कालीन प्रधान मंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने पिछड़ा वर्ग पर गठित बी.पी.मंडल आयोग की कुल 40 सिफारिशों में से एक सिफारिश को जब लागू किया और उसके बाद अन्य पिछड़ा वर्ग के उम्मीदवारों को सरकारी नौकरियों में सभी स्तर पर 27 प्रतिशत आरक्षण मिलने की व्यवस्था हुई । मंडल कमीशन की रिपोर्ट (1979 में पेश की गई थी) के अनुसार देश में 52 फीसदी ओबीसी जातियां थी। उस एक फैसले ने पूरे भारत, खासकर उत्तर भारत की राजनीति को ही बदल कर रख दिया।
इस तरह का डर ओबीसी जातिगत जनगणना से भी दिखता है। इसीलिए कोई राजनीतिक दल जो सत्ता में रहता है वह जोखिम नहीं लेना चाहता है। क्योंकि उसका सबसे ज्यादा असर उत्तर प्रदेश और बिहार की राजनीति में दिख सकता है
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प्रशांत श्रीवास्तव author

करीब 17 साल से पत्रकारिता जगत से जुड़ा हुआ हूं। और इस दौरान मीडिया की सभी विधाओं यानी टेलीविजन, प्रिंट, मैगजीन, डिजिटल और बिजनेस पत्रकारिता में काम कर...और देखें

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