'नागरिकों को नहीं है चुनावी बॉन्ड फंड का स्रोत जानने का अधिकार', केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से कहा

'Electoral Bond' Scheme: भारत के अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने राजनीतिक दलों को फंडिंग के चुनावी बांड मोड को चुनौती देने वाली याचिकाओं के संबंध में सुप्रीम कोर्ट में अपने विचार पेश किए हैं। उन्होंने कहा कि नागरिकों को इन फंडों के स्रोत को जानने का मौलिक अधिकार नहीं है।

चुनावी बॉन्ड योजना पर केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से कही ये बड़ी बातें।

Supreme Court News: अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने राजनीतिक दलों को फंडिंग के "अपारदर्शी" चुनावी बांड मोड को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर रविवार को सुप्रीम कोर्ट में अपने विचार रखे और कहा कि संविधान ने नागरिकों को इन फंडों के स्रोत को जानने का मौलिक अधिकार प्रदान नहीं किया है। सुप्रीम कोर्ट को आगाह करते हुए कहा कि चुनावी बांड को विनियमित करने के लिए नीति डोमन में एंट्री न करें। अटॉर्नी जनरल ने तर्क दिया कि योजना किसी भी मौजूदा अधिकार का उल्लंघन नहीं करती है। उन्होंने ऐसे मामलों पर संसदीय बहस के महत्व पर भी जोर दिया।

'मौजूदा अधिकार का उल्लंघन नहीं करती यह योजना'

वेंकटरमणी ने अदालत को चुनावी बांड को विनियमित करने के लिए नीति डोमेन में एंट्री करने के प्रति आगाह किया। मामले पर 31 अक्टूबर की सुनवाई से पहले सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की पीठ के समक्ष वेंकटरमणी ने कहा, "यह योजना किसी भी व्यक्ति के किसी भी मौजूदा अधिकार का उल्लंघन नहीं करती है और इसे संविधान के भाग III के तहत किसी भी अधिकार के प्रतिकूल नहीं कहा जा सकता है। एजी आर वेंकटरमणी ने कहा कि न्यायिक समीक्षा बेहतर या अलग नुस्खे सुझाने के उद्देश्य से राज्य की नीतियों को स्कैन करने के बारे में नहीं है।

'आपराधिक इतिहास को जानने का अधिकार अलग है'

उन्होंने कहा कि 2003 में पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज मामले में सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले ने उम्मीदवारों को अपने आपराधिक इतिहास की घोषणा करने का निर्देश दिया था ताकि मतदाताओं को एक सूचित विकल्प चुनने में सक्षम बनाया जा सके। उन्होंने ये साफ किया कि चुनावी बॉन्ड फंड सोर्स के बारे में जानने की तुलना उस नियम से नहीं की जा सकती जिसमें किसी उम्मीदवार के आपराधिक इतिहास को जानने का अधिकार है। उन्होंने कहा कि आपराधिक इतिहास के जरिए उम्मीदवार की पसंद के लिए उपयोगिता तय करती है, लेकिन ये मामला बिल्कुल अलग है।

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