अगले 14 दिन तक जटिल सवालों के जवाब तलाशेगा चंद्रयान-3, चांद के अबूझ रहस्यों से उठाएगा परदा
Chandrayaan 3 Landing On Moon : ऐसा माना जाता है कि चंद्रमा भी पृथ्वी का हिस्सा है और उसकी उम्र भी पृथ्वी के बराबर है। पृथ्वी के चंद्रमा के निर्माण का एक प्रमुख सिद्धांत है कि मंगल ग्रह के आकार का एक खगोलीय पिंड युवा धरती से टकराया था और इस टक्कर से निकले मलबे से अंतत: चंद्रमा का निर्माण हुआ।
चंद्रमा की सतह पर हुई चंद्रयान 3 की सफल लैंडिंग।
Chandrayaan 3 Landing On Moon : साल 2008 में भारत ने जो अपना चंद्र मिशन शुरू किया था बुधवार को वह अपने मुकाम पर पहुंच गया। भारत का चंद्रयान-3 चांद के दक्षिण हिस्से पर सफलतापूर्वक 'सॉफ्ट लैंडिंग' कर गया। इस कामयाबी के साथ भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने एक लंबी छलांग लगाई। इस कामयाबी के साथ चंद्रमा पर 'सॉफ्ट लैंडिंग' करने वाला भारत दुनिया का चौथा देश तो बना ही। साथ ही वह चांद के दक्षिणी हिस्से में उतरने वाला विश्व का पहला देश भी बना।
Chandrayaan 3: चंद्रमा की सतह पर ऐसे उतरा चंद्रयान-3 देखें पहला Video
14 दिन तक चांद की सतह की जांच करेगा चंद्रयान-3
भारत की इस सफलता पर पूरे देश में जश्न का माहौल है। लोग एक-दूसरे को बधाई दे रहे हैं। बहरहाल-चंद्रयान-3 ने अपनी लैंडिंग का महत्वपूर्ण एवं जटिल पड़ाव पूरा कर लिया है। अब वह अगले 14 दिनों तक चंद्रमा की सतह का अलग-अलग तरीकों से वैज्ञानिक परीक्षण करेगा और उसका डेटा इसरो को भेजेगा। चंद्रमा के दक्षिणी हिस्से पर चंद्रयान-3 का उतरना भारत के लिए एक बड़ी कामयाबी है।
सैंपल एकत्र कर डाटा भेजेगा
चंद्रयान-3 के तीन हिस्से हैं। पहला प्रोपल्शन मॉड्यूल, दूसरा लैंडर विक्रम और तीसरा रोवर प्रज्ञान। चंद्रमा पर लैंडर विक्रम उतरा है। उसके अंदर रोवर प्रज्ञान मौजूद है। गत 17 अगस्त को प्रोपल्शन मॉड्यूल से अलग होने के बाद लैंडर मॉड्यूल विक्रम चांद की तरफ आगे बढ़ा। अब लैंडर से रोवर प्रज्ञान चांद की सतह पर बाहर आएगा और 14 दिनों तक चांद की सतह का सैंपल कलेक्ट करते हुए वैज्ञानिक परीक्षण करेगा। रोवर दक्षिणी हिस्से में पानी की खोज, खनिज तत्वों की जानकारी एवं चंद्रमा की सतह की बनावट का अध्ययन करेगा।
चांद के रहस्यों से उठाएगा परदा
ऐसा माना जाता है कि चंद्रमा भी पृथ्वी का हिस्सा है और उसकी उम्र भी पृथ्वी के बराबर है। पृथ्वी के चंद्रमा के निर्माण का एक प्रमुख सिद्धांत है कि मंगल ग्रह के आकार का एक खगोलीय पिंड युवा धरती से टकराया था और इस टक्कर से निकले मलबे से अंतत: चंद्रमा का निर्माण हुआ। हालांकि, चंद्रमा से मिले भूगर्भीय सबूत संकेत देते हैं कि यह पृथ्वी से महज छह करोड़ साल युवा हो सकता है। रोवर के भेजे गए आंकड़ों एवं डाटा के जरिए पृथ्वी और चंद्रमा के रिश्ते के बारे में और पड़ताल की जा सकेगी और किसी ठोस नतीजे पर पहुंचा जा सकेगा।
बर्फ के भंडार, खनिजों के बारे में लगाएगा पता
माना जाता है कि चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर जल और बर्फ के बड़े भंडार हैं जो स्थायी रूप से अंधेरे में रहते हैं। भविष्य के अंतरिक्ष अभियानों के लिए जल की मौजूदगी का बहुत अधिक महत्व है क्योंकि इसे पेयजल, ऑक्सीजन और रॉकेट ईंधन के तौर पर हाइड्रोजन जैसे संसाधनों में तब्दील किया जा सकता है। यह इलाका सूर्य की रोशनी से स्थायी रूप से दूर रहता है और तापमान शून्य से 50 से 10 डिग्री नीचे रहता है, इसकी वजह से रोवर या लैंडर में मौजूद इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के लिए आदर्श रसायनिक परिस्थिति उपलब्ध होती है जिससे वे बेहतर तरीके से काम कर सकते हैं।
लंबी अवधि के मिशन संभव हो सकेंगे
बर्फ के रूप में जल भविष्य में चंद्रमा खोज और उसके आगे के लिए भी अहम संसाधन है। इसे सांस लेने वाली हवा, पेयजल और सबसे अहम रॉकेट ईंधन के लिए हाइड्रोजन व ऑक्सीजन में तब्दील किया जा सकता है। इससे अंतरिक्ष यात्रा में क्रांति आ सकती है क्योंकि इन संसाधानों को पृथ्वी से ले जाने की जरूरत नहीं होगी और लंबी अवधि के मिशन संभव हो सकेंगे।
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