Citizenship Amendment Act kya Hai: CAA क्या है? मोदी सरकार ने इसे क्यों लागू किया और क्यों इसका विरोध होता रहा है?

देश में आज CAA लागू कर दिया गया है, केंद्र ने इसके लिए नोटिफिकेशन जारी कर दिया है। केंद्रीय गृहमंत्री पहले ही बयान दे चुके हैं कि लोकसभा चुनाव 2024 की घोषणा से पहले इसे देशभर में लागू कर दिया जाएगा। जानिए CAA क्या है और क्यों इसका विरोध होता है?

CAA क्या है और क्यों इसका विरोध होता है

CAA को लेकर पिछले कुछ समय से एक बार फिर चर्चा जोरों पर थी। Timesnow Navbharat के कार्यक्रम में स्वयं देश के गृहमंत्री अमित शाह ने घोषणा की थी कि लोकसभा चुनाव 2024 से पहले CAA लाया जाएगा। आज यानी सोमवार 11 मार्च को केंद्रीय गृहमंत्रालय ने इसका नोटिफिकेशन भी जारी कर दिया है। इस तरह से देश में CAA कानून लागू हो गया है। आइए जानते हैं CAA क्या है और 2019 में इसका विरोध क्यों हुआ था?
नागरिकता संशोधन बिल 2019 यानी Citizenship (Amendment) Act 2019 (CAA) को 11 दिसंबर 2019 को देश की संसद ने पास किया था। साल 2019 के नागरिकता संशोधन बिल लाकर सरकार ने साल 1955 के नागरिकता बिल में संशोधन किया गया।

नागरिकता देने का कानून

साल 2019-20 में भी केंद्र सरकार और सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी ने बार-बार स्पष्ट किया था कि नागरिकता संशोधन कानून लोगों को नागरिकता देने का कानून है, न कि किसी की नागरिकता छीनने का। उस समय सरकार की ओर से कहा गया था कि इस कानून के जरिए मुस्लिम बहुल पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आने वाले नागरिकों को नागरिकता दी जाएगी। सरकार ने कहा था कि धार्मिक अल्पसंख्यक फिर चाहे वह हिंदू हों, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी या इसाई हों सभी को, जो पड़ोसी देशों से जान बचाकर आए हों, उन्हें नागरिकता देने के लिए यह कानून लाया गया है।

2014 से पहले आ चुके लोगों को नागरिकता

इसके साथ ही सरकार ने यह भी स्पष्ट किया था कि दिसंबर 2014 से पहले इन मुस्लिम बहुल पड़ोसी देशों से जो भी लोग जान बचाकर भारत आए हैं, उन्हें नागरिकता दी जाएगी। कानून के संशोधन में मुस्लिमों को जगह नहीं दी गई थी। उस समय भी सरकार और भाजपा नेताओं का तर्क था कि पड़ोसी देशों मुस्लिम बहुल हैं और वहां धर्म के आधार पर उन्हें प्रताड़ित नहीं किया जाता।

CAA क्यों हुआ विरोध

नागरिकता कानून में मुस्लिमों को जगह नहीं दिए जाने को लेकर इस कानून का साल 2019-20 में जमकर विरोध हुआ था। सरकार का तर्क था कि मुस्लिम देशों में मुस्लिमों के साथ धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं हो सकता, इसलिए उन्हें इस कानून में जगह नहीं दी गई है। इसका विरोध करने वालों का तर्क था कि संशोधन संविधान के समानता के अधिकार का हनन है। इसके अलावा उन्होंने बताया कि पाकिस्तान जैसे देशों में शिया और अहमदिया के साथ भेदभाव होता है। ऐसे उन्हें भी सीएए में जगह दी जानी चाहिए।

2016 में पहली बार पास हुआ

बता दें कि नागरिकता संशोधन बिन को पहली बार साल 2016 में लोकसभा में पेश किया गया था। लोकसभा में यह कानून साल 2016 में ही पास हो गया था, लेकिन राज्यसभा में अटक गया। बाद में इस कानून को संसदीय समिति के पास भी भेजा गया और इस बीच 2019 का लोकसभा चुनाव आ गया। 2019 में एक बार फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार बनी। दिसंबर 2019 में एक बार फिर लोकसभा में यह कानून पेश हुआ। इस बार यह कानून संसद के दोनों सदनों में पास हो गया। इसके बाद 10 जनवरी 2020 को कानून को राष्ट्रपति की मंजूरी मिल गई थी।

क्यों लागू नहीं हुआ CAA

संसद के दोनों सदनों में पारित होने और राष्ट्रपति के दस्तखत के बावजूद यह कानून लागू नहीं हुआ। कानून को लागू करने में देरी के लिए कई फैक्टर जिम्मेदार रहे। देश के कई हिस्सों में CAA को लेकर विरोध प्रदर्शन हुए। विशेषतौर पर असम, त्रिपुरा जैसे राज्यों में हिंसक प्रदर्शन हुए। दिल्ली के शहीन बाग इलाके में लंबे समय तक धरना प्रदर्शन हुआ। विरोध करने वालों ने उस समय कहा था कि यह कानून भेदभावपूर्ण है। उनका कहना था कि इसमें म्यांमार के रोहिंग्या और तिब्बती बौद्ध जैसे कुछ पीड़ित समूहों को इसमें शामिल नहीं किया गया है। इसी दौरान दुनियाभर कोरोना आ गया, जिसके चलते देश में लॉकडाउन लगाना पड़ा। बाद में धीरे-धीरे विरोध-प्रदर्शन भी थम गए।
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