क्या आप चाहते हैं हम गर्भ में पल रहे बच्चे की धड़कन रोकने को बोल दें? जानें CJI ने क्यों पूछा ये सवाल
CJI Ask Big Question In Case Hearing: सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा है कि 'गर्भ में पल रहे 26 हफ्ते बच्चे को जन्म दिन जा सकता है। भ्रूण हत्या करने की स्थिति में बच्चे की धड़कन को बंद करना होगा। बच्चा भले ही गर्भ में है, लेकिन उसके भी अधिकार हैं।' महिला की गर्भावस्था को खत्म करने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई हुई।
याचिका में की गई मांग पर क्या बोले चीफ जस्टिस?
Supreme Court News: 26 हफ्ते की महिला की गर्भावस्था को खत्म करने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ ने बड़ी बात कही। चंद्रचूड़ ने कहा कि, 'गर्भ में पल रहे 26 हफ्ते बच्चे को जन्म दिन जा सकता है। भ्रूण हत्या करने की स्थिति में बच्चे की धड़कन को बंद करना होगा। बच्चा भले ही गर्भ में है, लेकिन उसके भी अधिकार हैं।'
याचिका में की गई मांग पर क्या बोले चीफ जस्टिस?
दरअसल, याचिकाकर्ता महिला पोस्टपार्टम डिप्रेशन से पीड़ित है और जन्म के बाद बच्चे की देखभाल करने में सक्षम नहीं है। महिला के फिलहाल दो बच्चे पहले से ही हैं। इस मामले में गठित मेडिकल बोर्ड ने पहले गर्भ समाप्त करने का सुझाव दिया, लेकिन बाद भ्रूण की धड़कन चलते हुए पाए जाने पार ऐसा न करने का मत आया। इस याचिका पर आज सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश की पीठ ने कहा कि हम बच्चे के जन्म के बाद महिलाओं को होने वाले डिप्रेशन पर सवाल नहीं खड़े कर रहे हैं लेकिन इसे समझने में 26 सप्ताह लग गए?
वकील ने दी दलील, तो अदालत ने कही ये बड़ी बात
महिला के वकील ने दलील दी कि वह गरीब है, इतनी पढ़ी-लिखी नहीं है। वह अवसाद की दवाएं ले रही है। उसे प्रसवोत्तर मनोविकृति भी है और डॉक्टर का कहना है कि दवाएं बच्चे पर भी असर करेंगी। हालांकि आज की सुनवाई में माता पिता भ्रूण हत्या पर सहमत नहीं थे। सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा कि यह एक जीवित वाइबल भ्रूण है और यदि इसे जन्म दिया जाए तो यह बाहर भी जीवित रह सकता है। सुनवाई के दौरान ही जस्टिस पारदीवाला ने कहा कि यदि अभी प्रसव कराया गया तो इसमें गंभीर चिकित्सीय समस्याएं होंगी तो ऐसे में 2 हफ्ते का इंतजार करते हुए स्वाभाविक डिलीवरी होने देना चाहिए।
चीफ जस्टिस ने सुनवाई के दौरान दी ये जरूरी सलाह
सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस ने सलाह दी कि अगर गर्भवती कहती है कि वह बच्चा नहीं चाहती है और राज्य बच्चे को अपने कब्जे में ले सकता है और उसे गोद लेने के लिए सौंप सकता है। हालांकि कोर्ट ये भी जानना चाहती थी कि महिला बच्चे को कुछ और हफ्तों तक कोख में क्यों नहीं रख सकती और फिर ऑपरेशन के जरिए प्रसव करा सकती है। कोर्ट का मत था कि ऐ भ्रूण एक वाइबल बच्चा है। ऐसे में एम्स के सामने एक गंभीर नैतिक दुविधा है। अगर भ्रूण में बच्चे का हृदय बंद नहीं किया जाता तो वह जीवित ही पैदा होगा।
सुप्रीम कोर्ट के सामने आए इस अनोखे मामले में मुख्य न्यायधीश ने सवाल पूछा कि याचिकाकर्ता के मुताबिक क्या न्यायिक आदेश के तहत बच्चे को मौत की सजा दी जा सकती है? इस याचिका पर सुप्रीम कोर्ट कल भी सुनवाई जारी रखेगा। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार की वकील ऐश्वर्या भाटी को पति पत्नी से बात करने को कहा है।
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