Manipur Violence: मणिपुर हिंसा के पीछे सीएम एन बीरेन सिंह को विदेशी हाथ होने का शक
Manipur Violence: सीएम एन बीरेन सिंह का कहना है कि हिंसा पूर्व नियोजित प्रतीत होती है, इसके साथ ही विदेशी हाथ होने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।
एन बीरेन सिंह, मणिपुर के सीएम
Manipur Violence: मणिपुर हाईकोर्ट ने जब मेइती समाज को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने के लिए राज्य सरकार को आदेश दिया उसके बाद से राज्य में तनाव की स्थिति बननी शुरू हुई। तीन मई 2023 को जब कूकी समाज की अगुवाई में चूराचांदपुर में ट्राइबल सॉलिडैरिटी मार्च को निकाला गया उसके बाद हिंसा भड़की। उस हिंसा में सैकड़ों की जान गई और हजारों बेघर हुए। तब से लेकर आज तक रह रह कर हिंसा की खबरें आ रही हैं। इन सबके बीच मणिपुर के सीएम एन बीरेन सिंह ने हिंसा के लिए बाहरी ताकतों को जिम्मेदार बताया। एएनआई के मुताबिक उन्होंने कहा कि हिंसा पूर्व नियोजित प्रतीत होती है। वो बताते हैं कि मणिपुर एक तरफ म्यांमार और दूसरी तरफ चीन करीब है। करीब 398 किमी की सीमा पर निगहबानी ना होने के साथ आसानी से पार किया जा सकता है। सीमावर्ती इलाकों में बड़ी संख्या में फौजियों की तैनाती है। लेकिन इतने बड़े क्षेत्र में तैनाती संभव नहीं है। जो कुछ हो रहा है उस संदर्भ में स्पष्ट तौर पर ना हम बाहरी हाथ होने से इंकार या हाथ होने की पुष्टि कर सकते हैं, हालांकि जिस तरह से घटनाएं सामने आ रही हैं उसमें पूर्व नियोजित प्रतीत होता है, उसके पीछे मकसद क्या है बता नहीं सकते।
'सियासत करने से कांग्रेस बचे'
राज्य में हालात को सामान्य बनाए रखने के लिए केंद्र सरकार के साथ मिलकर हम काम कर रहे हैं। उन्होंने कूकी भाई और बहनों से टेलीफोन पर बातचीत की है। आइए क्षमा करें और भूल जाएं। एन बीरेन सिंह से राज्य के दो दिनों के दौरे पर गए राहुल गांधी से बातचीत भी की थी और कहा कि उनका दौरा राजनीति से प्रेरित लगता है। हम किसी को रोक नहीं सकते। लेकिन समय देखिए, मणिपुर में हिंसा के 40 दिन बाद वो विजिट के लिए आते हैं, वो पहले क्यों नहीं आए। वो कांग्रेस के नेता हैं लेकिन किस हैसियत से उन्होंने दौरा किया। उनके हिसाब से दौरे का समय ठीक नहीं था।मणिपुर में मेइती और कुकी समुदायों के बीच चल रहे जातीय संघर्ष में अब तक 100 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है। पहाड़ी जिलों में 'आदिवासी एकजुटता मार्च' के आयोजन के बाद 3 मई को सबसे पहले हिंसा भड़की थी। यह मार्च इसी की प्रतिक्रिया थी। मेइती समाज ने अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा मांगा, जिसका आदिवासी कुकी समुदाय ने कड़ा विरोध किया और उसके बाद दोनों समूहों के बीच झड़पें बढ़ गई हैं।
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