नया साल में कांग्रेस और राहुल की नई चुनौती, उम्मीदों पर कितना खरे उतरेंगे नये अध्यक्ष?

Congress News: बिहार में बीजेपी से अलग होकर आरजेडी के साथ सरकार चला रहे नीतीश कुमार की निगाहें भी दिल्ली की कुर्सी पर लगी हैं। यानि विपक्ष एकजुट है नहीं, राहुल की स्वीकार्यता को लेकर भी तस्वीर करीब-करीब साफ ही हो चुकी है ऐसे में क्या समीकरण बनेंगे इसे लेकर दिलचस्पी जरूर बढ़ने लगी है।

प्रतीकात्मक तस्वीर

Rahul Gandhi News: राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा कांग्रेस (Congress) के लिए कितनी फायदेमंद होगी? राहुल गांधी (Rahul Gandhi) का 3000 किलोमीटर से ज्यादा पैदल चलना कांग्रेस की सियासी सेहत को कितना फायदा पहुंचाएगा? UP जैसे बड़े राज्य में जहां कांग्रेस पूरी तरह वेंटिलेटर पर है वहां राहुल गांधी कितनी जान फूंक पाएंगे? 2024 के लोकसभा चुनाव के लिहाज से मौजूदा दौर में बिछाई गई या बिछाई जा रही बिसात कांग्रेस की राह कितनी आसान करेगी? ये तमाम ऐसे सवाल हैं जो 2023 में भी राजनीतिक गलियारों में चर्चा के केंद्र में रहेंगे और इनका जवाब खुद कांग्रेस को ही तलाशना है।

कमजोर कड़ीकांग्रेस की सबसे कमजोर कड़ी है उसका कमजोर हो चुका संगठन। राज्य हों या केंद्र हर जगह कांग्रेस आपसी लड़ाई से जूझ रही है जिसका सबसे ज्यादा असर संगठन पर पड़ा है। 2014 में केंद्र की सत्ता से बाहर होने के बाद कांग्रेस कितनी बदली या कांग्रेस ने खुद को कितना बदला ये भी कांग्रेस के सामने यक्ष प्रश्न है। कांग्रेसी खुद ये बात स्वीकार कर चुके हैं कि 2004 में सत्ता मिलने के बाद संगठन पर ध्यान नहीं दिया गया, नेता सरकार में बैठकर मलाई तो खाते रहे लेकिन जमीन पर कार्यकर्ताओं को आगे बढ़ाने के लिए कोई काम नहीं हुआ। गांधी परिवार के चारों ओर कुछ ऐसे लोगों ने घेरा डाल लिया जो सबकुछ ठीक होने का दावा करते रहे जिससे पार्टी कमजोर होती चली गई। 2009 में दोबारा सत्ता मिली तो कांग्रेसियों का अहंकार चरम पर पहुंच गया, ये बात हाल में खुद राहुल गांधी ने भी कही है। इससे ये तो साफ है कि कांग्रेस को अपना मर्ज पता है लेकिन उसका इलाज करने वाला हकीम कहां से आएगा इसे लेकर अब भी उलझन बनी हुई है।

नए अध्यक्ष उम्मीदों पर खरे उतरेंगे?अब सवाल ये है कि आने वाली चुनौतियों से कांग्रेस निपटेगी कैसे, तमाम उतार चढ़ाव, कांग्रेस के भीतर ही G-23 ग्रुप के दबाव और 2024 की रणनीति के लिए परिवारवाद का दाग धोने की खातिर गांधी परिवार ने अध्यक्ष पद की कुर्सी से किनारा कर लिया। कई दिन तक चले सस्पेंस और सिसायी ड्रामे के बाद मल्लिकार्जुन खड़गे को अध्यक्ष चुना गया। मगर क्या खड़गे 138 साल पुरानी पार्टी को 21वीं सदी के हिसाब से आगे बढ़ा पा रहे हैं? क्या बीजेपी के मजबूत संगठनात्कम ढांचे का मुकाबला करने के लिए 26 अक्टूबर 2022 को अध्यक्ष पद की कमान संभालने के बाद खड़गे ने कोई ऐसा कदम उठाया है जिससे कार्यकर्ताओं का जोश बढ़े या कांग्रेस जमीन पर कहीं मजूबत दिखाई दे? अब तक के कार्यकाल के हिसाब से साफ है कि ऐसा कुछ नहीं हुआ।

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