आज से कांग्रेस में खड़गे 'दौर' गुजरात-राजस्थान-हिमाचल से पता चलेगा कौशल, जानें 1998 से नाता

Congress New President Mallikarjun Kharge: साल 1998 में जब सोनिया गांधी ने सीतराम केसरी को हटाए जाने के बाद कांग्रेस अध्यक्ष पद संभाला था। तो उस दौर में भी कांग्रेस में निराशा का माहौल था। 1996 के लोक सभा चुनावों में कांग्रेस की हार हो चुकी थी। सीताराम केसरी ने कांग्रेस के समर्थन में बनी एच.डी.देवगौड़ा सरकार से समर्थन वापस ले लिया था। और केंद्र में अटल बिहारी बाजपेयी के नेतृत्व में एनडीए सरकार आ चुकी थी।

Congress New President Mallikarjun Kharge

मल्लिकार्जुन खड़गे आज कांग्रेस अध्यक्ष का पद संभालेंगे

मुख्य बातें
  • मल्लिकार्जुन खड़गे के कौशल की पहली परीक्षा गुजरात,हिमाचल प्रदेश और राजस्थान में होगी।
  • अशोक गहलोत-सचिन पायलट की खींचतान को कैसे संभालते हैं, इस पर भी नजर रहेगी।
  • गांधी परिवार के साये से निकल पाएंगे, यह सबसे बड़ा सवाल
Congress New President Mallikarjun Kharge: कांग्रेस में आज से खड़गे दौर शुरू हो जाएगा। नव निर्वाचित मल्लिकार्जुन खड़गे आज कांग्रेस अध्यक्ष पद संभालेंगे। खड़गे ठीक उन्हीं परिस्थितियों में कांग्रेस की कमान संभाल रहे हैं, जैसे कि 24 साल पहले सोनिया गांधी ने कमान संभाली थी। साल 1998 में कांग्रेस के सामने कुछ वैसी ही परिस्थितियां थी, जिनसे आज कांग्रेस जूझ रही है। उस वक्त भी पार्टी आंतरिक कलह और भाजपा के उभार से बैकफुट पर थी। और आज जब खड़गे के पास कांग्रेस की कमान आई है, तो पार्टी अपने सबसे बड़े राजनीतिक संकट से गुजर रही है। ऐसे में खड़गे के सामने सबसे पहली चुनौती गुजरात और हिमाचल प्रदेश के चुनाव हैं। विधानसभा चुनावों के बीच उनके सामने राजस्थान में अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच चल रहे सत्ता के संघर्ष को नियंत्रित कर सही दिशा देने की भी चुनौती होगी।
दिल्ली में संभालेंगे पद
मल्लिकार्जुन खड़गे ने अध्यक्ष पद के लिए हुए चुनाव में शशि थरूर को हराया था। इन चुनावों में खड़गे 7,897 वोट मिले थे, जबकि थरूर को 1,072 वोट मिले थे। आज पद भार ग्रहण करने वाले कार्यक्रम में कांग्रेस कार्यसमिति के सभी सदस्य, सांसद, प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष, कांग्रेस विधायक दल के नेता, पूर्व मुख्यमंत्री, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और एआईसीसी के अन्य पदाधिकारियों को आमंत्रित किया गया है। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने मंगलवार को कहा कि उन्हें भी इस कार्यक्रम में प्रस्तुत किया जाएगा।
क्यों सोनिया के दौर जैसी हैं परिस्थितियां
साल 1998 में जब सोनिया गांधी ने सीतराम केसरी को हटाए जाने के बाद कांग्रेस अध्यक्ष पद संभाला था। तो उस दौर में भी कांग्रेस में निराशा का माहौल था। 1996 के लोक सभा चुनावों में कांग्रेस की हार हो चुकी थी। और सीताराम केसरी ने कांग्रेस के समर्थन में बनी एच.डी.देवगौड़ा सरकार से समर्थन वापस ले लिया था। और केंद्र में अटल बिहारी बाजपेयी के नेतृत्व में एनडीए सरकार आ चुकी थी। कांग्रेस सिर्फ चार राज्य राज्य मध्य प्रदेश, उड़ीसा, मिजोरम और नागालैंड में सत्ता में थी। जबकि, पार्टी के पास लोकसभा में 141 सदस्य थे। सोनिया गांधी के कमान संभालने के एक साल के भीतर ही शरद पवार, पीए संगमा और तारिक अनवर ने सोनिया गांधी का विदेशी मूल के मुद्दे पर विरोध शुरू कर दिया था। और बाद में वह कांग्रेस से अलग हो गए थे। उसी दौर में ममता बनर्जी ने भी कांग्रेस ने नाता तोड़ लिया था। यानी जिस तरह आज पार्टी में आंतरिक कलह है और वह सत्ता से दूर है, करीब वैसी ही परिस्थितियां उस दौर में बनी हुईं थीं।
उस वक्त अध्यक्ष बनने के बाद अपने पहले भाषण में सोनिया गांधी ने कहा था ' कुछ लोग ऐसा भरोसा कर रहे होंगे कि मैं कई तारणहार हूं। लेकिन हमें अपनी अपेक्षाओं में यथार्थवादी होना चाहिए। हमारी पार्टी का रिवाइवल एक लंबी चलने वाली प्रक्रिया होगा, जिसके लिए ईमानदारी से हम सभी को कड़ी मेहनत करनी होगी।' ऐसे में खड़गे अपने पहले संबोधन में कार्यकर्ताओं को क्या संदेश देते हैं, यह भी काफी अहम होगा।
गुजरात-हिमाचल और राजस्थान में पहली परीक्षा
खड़गे के कौशल की पहली परीक्षा गुजरात और हिमाचल प्रदेश और राजस्थान में होगी। गुजरात और हिमचाल में जहां इसी साल 2022 में चुनाव होने हैं। गुजरात में आप की एंट्री के बाद चुनाव त्रिकोणीय हो चुका है। ऐसे में 27 साल बाद सत्ता में वापसी की सबसे बड़ी चुनौती होगी। इसी तरह हिमाचल प्रदेश में पार्टी के अंतर्कलह को खत्म कर फिर से सत्ता में वापसी करने का दारोमदार होगा। इसी तरह 2023 में होने वाले राजस्थान विधानसभा चुनाव के पहले अशोक गहलोत और सचिन पायलट की खींचतान को संभालना बड़ी चुनौती होगा।
विपक्ष में मजबूत होने से लेकर गांधी परिवार के साये से निकलने की चुनौती
2014 और 2019 लोक सभा चुनाव में कांग्रेस का सबसे खराब प्रदर्शन और पिछले 8 साल में करीब तीन दर्जन चुनाव हारने के बाद, कांग्रेस के सामने विपक्ष में भी अपनी भूमिका तय करने की चुनौती खड़ी है। ममता बनर्जी, नीतीश कुमार से लेकर केसीआर की प्रधानमंत्री पद की दावेदारी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से नजर आ रही है। और इसमें भी ममता बनर्जी तो कांग्रेस को किनारे कर विपक्षी एकता की बात करने लगी है। ऐसे में खड़गे के सामने इस बात की भी चुनौती होगी कि वह कांग्रेस को विपक्षी खेमे में मजबूत और सम्मानजनक स्थान दिलाएं।
इसके अलाव जिस परिवारवाद के साये से निकलने के लिए खड़गे के पास अध्यक्ष पद की कुर्सी पहुंची है। क्या वह अध्यक्ष रहते हुए उस गांधी परिवार के साए से निकल पाएंगे। क्योंकि अगर ऐसा नहीं होता है तो एक बार फिर भाजपा को कांग्रेस और गांधी परिवार पर हमला करने का मौका मिल जाएगा।
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प्रशांत श्रीवास्तव author

करीब 17 साल से पत्रकारिता जगत से जुड़ा हुआ हूं। और इस दौरान मीडिया की सभी विधाओं यानी टेलीविजन, प्रिंट, मैगजीन, डिजिटल और बिजनेस पत्रकारिता में काम कर...और देखें

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