'सुप्रीम कोर्ट के क्रीमी लेयर पर टिप्पणी को लेकर विपक्ष पैदा कर रहा भ्रम', कानून मंत्री अर्जुन मेघवाल ने लगाया आरोप

Supreme Court: कानून मंत्री अर्जुन मेघवाल ने एक बार फिर विपक्ष पर जमकर निशाना साधा। उन्होंने विपक्ष पर अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के बीच क्रीमी लेयर पर सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणी को लेकर लोगों के बीच भ्रम पैदा करने का आरोप लगाया।

कानून मंत्री अर्जुन मेघवाल ने विपक्ष पर साधा निशाना

Creamy Layer: कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने विपक्ष पर अनुसूचित जातियों (SC) और अनुसूचित जनजातियों (ST) के बीच क्रीमी लेयर के संबंध में उच्चतम न्यायालय की टिप्पणी को लेकर लोगों के बीच भ्रम पैदा करने का आरोप लगाया और कहा कि बी आर आंबेडकर के दिए संविधान में क्रीमी लेयर का कोई प्रावधान नहीं है। मेघवाल ने एक साक्षात्कार में कहा कि भारतीय जनता पार्टी (BJP) नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) सरकार आंबेडकर के संविधान का पालन करेगी और एससी तथा एसटी के लिए उसमें प्रदत्त आरक्षण व्यवस्था को जारी रखेगी।

‘क्रीमी लेयर’ का तात्पर्य एससी एवं एसटी समुदायों के उन लोगों और परिवारों से है, जो उच्च आय वर्ग में आते हैं। मेघवाल ने कहा कि विपक्ष जानता है कि शीर्ष अदालत ने क्रीमी लेयर पर महज एक टिप्पणी की है, लेकिन वह फिर भी लोगों के बीच भ्रम पैदा करने का प्रयास कर रहा है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने शनिवार को कहा था कि क्रीमी लेयर के आधार पर एससी और एसटी को आरक्षण देने से इनकार करने का विचार निंदनीय है। उन्होंने यह भी कहा था कि सरकार को उच्चतम न्यायालय के हालिया फैसले के उस हिस्से को निष्प्रभावी करने के लिए संसद में एक कानून लाना चाहिए था, जो इस मुद्दे के बारे में बात करता है।

उच्चतम न्यायालय ने क्रीमी लेयर पर कोई फैसला नहीं दिया - मेघवाल

मेघवाल ने कहा कि शीर्ष अदालत ने कहा है कि अगर राज्य चाहते हैं, तो वे उप-वर्गीकरण कर सकते हैं, लेकिन उच्चतम न्यायालय ने क्रीमी लेयर पर कोई फैसला नहीं दिया है, यह महज एक टिप्पणी है। उन्होंने विपक्ष को याद दिलाया कि आदेश और टिप्पणी के बीच अंतर होता है। इस महीने की शुरुआत में प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सात सदस्यीय संविधान पीठ ने 6:1 के बहुमत से व्यवस्था दी थी कि राज्यों को अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) में उप-वर्गीकरण करने की अनुमति दी जा सकती है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि इन समूहों के भीतर और अधिक पिछड़ी जतियों को आरक्षण दिया जाए। उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश बी आर गवई ने एक अलग लेकिन सहमति वाला फैसला लिखा, जिसमें उच्चतम न्यायालय ने बहुमत के फैसले से कहा कि राज्यों को अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों का उप-वर्गीकरण करने का अधिकार है, ताकि अधिक वंचित जातियों के लोगों के उत्थान के लिए आरक्षित श्रेणी के भीतर कोटा प्रदान किया जा सके।

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