सचिन पायलट-अशोक गहलोत में तकरार लेकिन परीक्षा कांग्रेस आलाकमान की, जानें कैसे

Sachin pilot Ashok Gehlot Controversy: क्या कांग्रेस आलाकमान अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच तनाव समाप्त करने के लिए सर्वमान्य रास्ता निकाल पाएगा। इस सवाल का जवाब तो भविष्य के गर्भ में छिपा है। लेकिन आंकड़े बताते हैं कि दोनों की अनदेखी का खामियाजा कांग्रेस को उठाना पड़ सकता है।

अशोक गहलोत-सचिन पायट में तनाव चरम पर

Sachin pilot Ashok Gehlot Controversy: राजस्थान में इस साल के अंत में विधानसभा की 200 सीटों के लिए चुनाव होने हैं। लेकिन कांग्रेस में सब कुछ ठीक नहीं है। सचिन पायलट ने अशोक गलहोत के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है जिसकी झलक 11 अप्रैल और बाद में 11 मई से 15 मई के बीच दिखाई दी। 11 अप्रैल को सचिन पायलट अपनी ही सरकार के खिलाफ जयपुर में धरने पर बैठे तो 11 मई को जोधपुर से जनसंघर्ष पदयात्रा का आगाज किया था जिसका समापन जयपुर में 15 मई को हुआ। 15 मई को उन्होंने अपनी सरकार को धमकी देते हुए कहा कि अगर भ्रष्टाचार के खिलाफ जांच (वसुंधरा राजे का सिंधिया का नाम लेकर),आरपीएससी में अनियमितता को लेकर कार्रवाई 31 मई तक नहीं हुई तो वो पूरे राज्य में पदयात्रा(Sachin Pilot Jan sangharsh Padyatra) करेंगे। सवाल यह है कि क्या कांग्रेस आलाकमान दोनों को मना पाएगा या तकरार की तरकश से और तीखे बाण निकलेंगे। सचिन पायलट का कहना है कि क्या वसुंधरा राजे सरकार के दौरान भ्रष्टाचार की जांच के लिए आवाज उठाना गलता है। क्या राजस्थान लोकसेवा आयोग की भर्तियों में जो धांधली हो रही है उसके खिलाफ बोलना गलत है।

अल्टीमेटम खत्म होने में अब पांच दिन

सचिन पायलट के अल्टीमेटम के करीब 11 दिन बीतने के बाद कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे अशोक गहलोत और सचिन पायलट के साथ बैठक करने वाले हैं। अब उस बैठक के बाद नतीजा क्या निकलेगा वो भविष्य के गर्त में है। लेकिन राजस्थान की सियासत के लिए दो बातें अहम हैं। अगर कांग्रेस एक बार फिर सरकार बनाने में कामयाब हुई तो दोबारा चुनकर आने वाली पहली सरकार(Rajasthan Assembly Elections 2023) बनेगी। अगर ऐसा नहीं हुआ तो सरकार बदलने का ट्रेंड बरकरार रहेगा। अब सवाल यह है कि क्या कोई ऐसा रास्ता निकलेगा जो अशोक गहलोत और सचिन पायलट को मान्य होगा या पायलट अपने लिए अलग रास्ता तलाशेंगे और यदि ऐसा होता है तो कांग्रेस पर कितना असर पड़ेगा।

क्या कहते हैं जानकार

सचिन पायलट और अशोक गहलोत की बात करें तो दोनों जनाधार वाले नेता हैं, एक तरफ पश्चिमी राजस्थान में अशोक गहलोत का जोर है तो पूर्वी राजस्थान में सचिन पायलट की पकड़ हैं। 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस 101 सीट जीतने में कामयाब हुई। यदि सीटों की संख्या देखें को सचिन पायलट के प्रभाव वाले पूर्वी राजस्थान में कांग्रेस ने अच्छा प्रदर्शन किया। इसके साथ ही पश्चिमी राजस्थान में गहलोत का दम दिखा। चुनावी प्रचार के दौरान कांग्रेस के केंद्रीय नेता सचिन पायलट को सीएम के तौर पर पेश तो करते थे, हालांकि औपचारिक तौर पर किसी नाम का ऐलान नहीं था। लिहाजा जब सीएम चुनने की बारी आई तो गहलोत की तरफ से तर्क पेश किया गया कि अगर सीटों की संख्या ही आधार है तो उनका योगदान कम नहीं। इसके साथ ही उनकी राजनीतिक प्रोफाइल पायलट से बेहतर है, ये सब तर्क कांग्रेस आलाकमान को पसंद आए और गहलोत, सचिन पायलट पर भारी पड़ गए। गहलोत की ताजपोशी के साथ ही पायलट को लगने लगा कि उनके साथ धोखा हुआ और यदि वे मुखर नहीं हुए तो राजस्थान कांग्रेस में वो महत्वहीन हो जाएंगे। ऐसी सूरत में कांग्रेस आलाकमान पर समझदारी भरा फैसला लेने का दबाव कहीं अधिक है।

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