EC के फैसले से उद्धव ठाकरे की पहचान और विरासत पर संकट, ऐसे समझिए

बाला साहेब ठाकरे ने अपनी पहचान और ताकत शिवसेना के रूप में अपने बेटे उद्धव ठाकरे को सौंपी थी। लेकिन चुनाव आयोग के फैसले के बाद वो पहचान भी जाती रही। अब ठाकरे कैंप को सुप्रीम कोर्ट से न्याय की उम्मीद है।

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उद्धव ठाकरे

शुक्रवार को चुनाव आयोग ने उद्धव ठाकरे की पहचान छीन ली। उद्धव ठाकरे अपने विरासत को बचा नहीं सके। चुनाव आयोग ने विधायकों की संख्या बल का हवाला देते हुए एकनाथ शिंदे को शिवसेना का अगुवा माना और पार्टी की पहचान यानी सिंबल भी उनके खाते में चला गया। एकनाथ शिंदे कैंप ने इसे लोकतंत्र की जीत तो उद्धव कैंप ने लोकतंत्र की हत्या करार देते हुए सुप्रीम कोर्ट जाने की बात कही। इन सबके बीच राज्यसभा सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने कहा कि उम्मीद है कि सुप्रीम कोर्ट संवैधानिक नैतिकता के साथ खड़ा होगा। यानी कि उद्धव कैंप को सुप्रीम कोर्ट से न्याय की उम्मीद है। चुनाव आयोग के फैसले को एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार ने इंदिरा गांधी से जोड़कर देखा।

अब तो सुप्रीम कोर्ट से उम्मीद

पहले बात करेंगे राज्यसभा सांसद प्रियंका चतुर्वेदी की। उन्होंने ट्वीट में कहा कि जब चुनाव आयोग पूरी तरह से समझौता कर चुका है और हर एक शख्स को पता है कि अगली बारी न्यायपालिका की है तो अब उम्मीद सिर्फ सुप्रीम कोर्ट से ही न्याय की उम्मीद है। अब सुप्रीम कोर्ट ही लोकतांत्रिक सिद्धांतों और संवैधानिक नैतिकता को बनाए रखने के लिए खड़ा होगा। इससे कम अगर कोई फैसला सामने आता है तो निश्चित तौर पर देश बनाना रिपब्लिक की तरफ बढ़े जाएगा।एकनाथ शिंदे द्वारा दायर छह महीने पुरानी याचिका पर एक सर्वसम्मत आदेश में, तीन सदस्यीय आयोग ने कहा कि यह विधायक दल में पार्टी की संख्या बल पर निर्भर था, जहां मुख्यमंत्री को 55 में से 40 विधायकों का समर्थन प्राप्त और लोकसभा में 18 में से 13 सदस्यों का समर्थन हासिल है।

शरद पवार ने इंदिरा गांधी प्रसंग की दिलाई याद

राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के प्रमुख शरद पवार ने दावा किया कि इस फैसले का कोई बड़ा असर नहीं होगा। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि लोग नए प्रतीक को स्वीकार करेंगे।एनसीपी प्रमुख ने ठाकरे से पैनल के फैसले को स्वीकार करने और नया सिंबल लेने को कहा।उन्होंने कहा कि यह चुनाव आयोग का फैसला है। एक बार फैसला हो जाने के बाद कोई चर्चा नहीं हो सकती। इसे स्वीकार करें और नया चुनाव चिह्न लें। अगले 15-30 दिनों तक यह चर्चा में बना रहेगा बस इतना ही असर होने वाला है। उन्होंने कांग्रेस को अपने सिंबल को दो बैलों से एक हाथ में बदलने की याद दिलाई और कहा कि लोग उद्धव ठाकरे गुट के नए सिंबल को उसी तरह स्वीकार करेंगे जैसे उन्होंने कांग्रेस के नए सिंबल को स्वीकार किया था। उन्हें याद है कि इंदिरा गांधी ने भी इस स्थिति का सामना किया था। कांग्रेस के पास 'दो बैल एक जुए के साथ' का प्रतीक हुआ करता था। बाद में उन्होंने इसे खो दिया और 'हाथ' को एक नए प्रतीक के रूप में अपनाया और लोगों ने इसे स्वीकार कर लिया। इसी तरह लोग नए उद्धव ठाकरे गुट के चुनाव चिह्न को स्वीकार कर लेंगे।

क्या कहते हैं जानकार

जानकार कहते हैं कि जब इस तरह के फैसले से निश्चित तौर पर झटका लगता है। यहां बड़ी बात यह है कि महाराष्ट्र की सियासत में जिस तरह से बाला साहेब ठाकरे ने अपनी पकड़ को बनाए रखा उस पकड़ को उद्धव ठाकरे कायम नहीं रख सके। सीधे तौर पर उद्धव ठाकरे के भाई राज ठाकरे ने भी जब कहा कि पैसा तो कमा लेंगे लेकिन....। यह वाक्य अपने आप में बहुत कुछ बयां करती है। अगर मान लें कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला उद्धव ठाकरे के पक्ष में आता है तो उन्हें संजीवनी मिल जाएगी। लेकिन यदि ऐसा नहीं होता है तो 2024 और 2025 के लिए उन्हें नई पहचान को जनता के दिल और दिमाग में अंकित करना होगा। यहां देखने वाली बात होगी शिवसेना के वो नेता क्या करेंगे जिन्हें अपने अंतिम फैसले के लिए अब सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का इंतजार होगा। कुल मिलाकर सत्ता, संगठन, पहचान उद्धव ठाकरे से छिन चुके हैं।

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ललित राय author

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