'जजों की आलोचना निजी फायदे के लिए नहीं, समाज के व्यापक हित में होनी चाहिए', न्यायपालिका के अहम मुद्दों पर बोले पूर्व CJI चंद्रचूड़
India Economic Conclave 2024: डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि 'हम फ्री सोसायटी में रहते हैं। मैं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में विश्वास करता हूं लेकिन अभिव्यक्ति की यह आजादी पारस्परिक और आनुपातिक होनी चाहिए। इन आलोचनाओं के बाद भी हमें सकारात्मक एवं आशावान रहना है। हम आशावान नहीं रहेंगे तो भविष्य को हम कैसे देखेंगे।
टाइम्स नेटवर्क के इंडिया इकोनॉमिक कॉन्क्लेव 2024 में पूर्व सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़।
India Economic Conclave 2024: न्यायाधीश इसी समाज का अंग हैं और अपने चारों तरफ घटित होने वाली चीजों से वे भी बेअसर नहीं रह पाते लेकिन जब वे पीठ पर होते हैं तो वे न्यायपालिका के मूल्यों और तथ्यों पर आधारित अपना फैसला देते हैं। जजों, न्यायपालिका एवं अन्य लोकतांत्रिक संस्थाओं की आलोचना करना गलत नहीं है, लेकिन यह आलोचना व्यक्तिगत लाभ के लिए नहीं बल्कि समाज के व्यापक हित वाली होनी चाहिए। ये बातें बीते 10 नवंबर को देश के प्रधान न्यायाधीश पद से रिटायर हो चुके पूर्व सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने टाइम्स नेटवर्क के इंडिया इकोनॉमिक कॉन्क्लेव 2024 में कहीं। टाइम्स नाउ और टाइम्स नाउ नवभारत की ग्रुप एडिटर-इन-चीफ नविका कुमार के साथ खास बातचीत में पूर्व सीजेआई ने कई मुद्दों और विषयों पर अपनी राय बेबाकी से रखी।
'भविष्य के बारे में कुछ कहना चुनौती और अवसर दोनों'
इस सवाल पर कि सोशल मीडिया में जजों, उनके फैसलों यहां तक कि उनकी भी खूब आलोचना हुई, इसे वह कैसे देखते हैं। इस पर डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि 'हम फ्री सोसायटी में रहते हैं। मैं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में विश्वास करता हूं लेकिन अभिव्यक्ति की यह आजादी पारस्परिक और आनुपातिक होनी चाहिए। इन आलोचनाओं के बाद भी हमें सकारात्मक एवं आशावान रहना है। हम आशावान नहीं रहेंगे तो भविष्य को हम कैसे देखेंगे। संविधान केवल एक राजनीतिक दस्तावेज नहीं है। उसमें एक विजन है। यह विजन समाज में रचनात्मक बदलाव की उम्मीद करता है। कानून का शासन कायम करने में जजों की भूमिका बहुत होती है। समाज के भविष्य के बारे में कुछ कहना बहुत चुनौतीपूर्ण और अवसर दोनों होता है।'
'सोशल मीडिया को देखते हुए जजों को प्रशिक्षित होने की जरूरत है'
नाविका कुमार के इस सवाल पर कि क्या सोशल मीडिया ने कभी आपके फैसलों को प्रभावित किया। इस सवाल पर पूर्व सीजेआई ने कहा कि न्यायपालिका और समाज के कुछ आंतरिक मूल्य हैं। अंत में फैसला देते समय प्रत्येक जज इन वैल्यूज को देखता है। आलोचनाओं से न्यायाधीश बिल्कुल प्रभावित नहीं होते, यह कहना अतिशयोक्ति होगी। सोशल मीडिया और उसके प्रभाव को देखते हुए हमें खुद को प्रशिक्षित करने की जरूरत है।
अयोध्या जजमेंट पर अपनी टिप्पणी पर बोले पूर्व सीजेआई
अयोध्या जजमेंट पर अपनी एक टिप्पणी पर उठे विवाद पर भी पूर्व सीजेआई ने अपनी राय रखी। उन्होंने कहा कि दरअसल इस जजमेंट में ऑथरशिप नहीं था, मतलब कि फैसले पर पांच जजों के हस्ताक्षर नहीं थे। इस संदर्भ में उन्होंने वह बात कही थी। जस्टिस नरीमन के 'सेक्यलुरिज्म वाज नाट गिवेन इट्स ड्यू' वाले बयान पर पूर्व प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि जस्टिस नरीमन एक स्वतंत्र देश के एक आजाद नागरिक हैं। उन्होंने इस फैसले को अपने नजरिए से देखा और आलोचना की। वह अपनी अंतरात्मा की आवाज सुन रहे होंगे।
'हमें इंतजार करना चाहिए'
प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट पर पूछे गए सवाल पर डीवाई चंद्रचूड़ ने कोर्ट ने इस पर आज ही आदेश पारित किया है। उन्होंने कहा, 'मैं एक महीना पहले ही सीजेआई पद से रिटायर हुआ हूं। ऐसे में इस विषय पर मेरा कुछ बोलना अनुचित होगा। मुझे किसी मुद्दे को प्रि-जज नहीं करना चाहिए। यह काम कोर्ट का है। वह अपना काम कर रहा है। इस बारे में कोर्ट से क्या आता है, उसका हमें इंतजार करना चाहिए। उन्हें फैसला लेने दीजिए।' वक्फ बोर्ड संशोधन बिल के सवाल पर पूर्व सीजेआई ने कहा कि समाज जब आगे बढ़ता या तरक्की करता है तो कानूनों में बदलाव करना पड़ता है। कोर्ट व्यक्तिगत या दो लोगों के मामलों को देखता है जबकि विधायिका समाज के व्यवहार को देखती है। नया कानून बनाना है, उसमें संशोधन करना है, यह दायित्य विधायिका है। न्यायपालिका लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों एवं मूल्यों के आधार पर केवल उसकी समीक्षा और विवेचना करता है।
UCC संविधान के लिए कोई नई चीज नहीं-पूर्व सीजेआई
समान नागरिक संहिता के बारे में पूर्व प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि यूसीसी संविधान के लिए कोई नई चीज नहीं है। यह संविधान के नीति निर्देशक सिद्धांतों में शामिल है। हमारा समाज कैसा होना चाहिए संविधान निर्माताओं ने इसका हमें एक रोडमैप दिया है। हम एक बहु सांस्कृतिक, बहुभाषी और बहुधर्मी समाज में रहते हैं। समाज की पहचान भी बनाकर रखनी है और सबके लिए एक कानून भी लाना है। इसमें संतुलन लाना होगा। यह काम विधायिका पर छोड़ते हैं।
'आलोचना हमें अच्छा करने के लिए प्रेरित करता है'
हाल के समय में ईसी, ईवीएम, जांच एजेंसियों सहित लोकतांत्रिक संस्थाओं के कामकाज पर उठे सवालों पर उन्होंने कहा कि हम ऐसी दुनिया में रहते हैं जहां लोग सवाल करते हैं। 'मैं न्यायिक प्रणाली से जुड़ा रहा हूं। मैं मानता हूं कि सवाल पूछना हमें अच्छा करने के लिए प्रेरित करता है। यदि आप किसी फैसला की आलोचना करते हैं, वह ठीक है लेकिन आप किसी मोटिव के चलते आलोचना करते हैं तो वह अनुचित है। जब आप मानकर चलते हैं कि आप जो सोचते हैं वही सही है, फिर आपकी आलोचना उचित नहीं होती।' ईवीएम पर कोर्ट ने यदि अपना फैसला दे दिया है तो उसे आपका मानना चाहिए। यह भी हो सकता है कि आज का सुप्रीम कोर्ट का फैसला 50 -60 साल के बाद बदल जाए। ऐसा होता आया है।
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