'हेट स्पीच' की परिभाषा कठिन, असल समस्या तो...हरियाणा में हिंसा के बाद आई SC की यह अहम टिप्पणी

Haryana Violence: बेंच ने यह भी कहा, "हर किसी को समाधान ढूंढ़ना होगा, क्योंकि नफरत फैलाने वाले भाषणों से निपटने का कोई तरीका होना चाहिए। हर किसी को अदालत में नहीं आना चाहिए और कुछ तंत्र होना चाहिए। हमने कुछ सोचा है और हम आप सभी को बताएंगे।" कोर्ट ने इसके साथ ही केस को दो सप्ताह बाद सुनवाई के लिए लिस्ट कर दिया।

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तस्वीर का इस्तेमाल सिर्फ प्रस्तुतिकरण के लिए किया गया है। (फाइल)

तस्वीर साभार : टाइम्स नाउ ब्यूरो
Haryana Violence: देश की राजधानी दिल्ली से सटे हरियाणा के नूंह में भड़की हिंसा के बाद सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि हेट स्पीच (नफरत फैलाने वाले भाषण) की परिभाषा कठिन है। इसे परिभाषित करना बेहद जटिल है, पर उनसे निपटने में असली समस्या कानून और न्यायिक घोषणाओं के क्रियान्वयन के साथ निष्पादन की है। शुक्रवार (चार अगस्त, 2023) को जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस एस. वी. एन. भट्टी की बेंच की ओर से यह अहम टिप्पणी उन याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान आई, जो कि हरियाणा में सांप्रदायिक झड़पों को लेकर दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में हिंदूवादी संगठनों-विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल की ओर से आयोजित रैलियों व नफरत फैलाने वाले भाषणों से जुड़ी थीं।
बेंच ने इस मसले पर पूछा कि क्या कार्यक्रम शांतिपूर्ण ढंग से हुआ? याचिकाकर्ता शाहीन अब्दुल्ला की ओर से हाजिर हुए सीनियर वकील सी यू सिंह ने कहा कि रैलियों में कुछ नफरत भरे भाषण दिए गए, लेकिन कोई हिंसा की सूचना नहीं मिली। बेंच ने इस पर सिंह से कहा कि नफरत फैलाने वाले भाषणों का समाधान सामूहिक प्रयासों से ही खोजा जा सकता है।
जस्टिस खन्ना ने याचिकाकर्ता की ओर से पेश सीयू सिंह और केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से आगे कहा, ‘‘आप एक साथ बैठकर हल खोजने का प्रयास क्यों नहीं करते। आप देखते हैं कि नफरत फैलाने वाले भाषण की परिभाषा काफी जटिल है और यह सुनिश्चित किये जाने की आवश्यकता है कि यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के दायरे को पार न कर जाए। अमीश देवगन बनाम भारत सरकार के मामले में मेरा 2020 का फैसला है जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के प्रतिस्पर्धी हितों के संतुलन और नफरत एवं सांप्रदायिक वैमनस्य के प्रसार को रोकने की आवश्यकता से जुड़ा है। टॉप कोर्ट के कई अन्य फैसले भी हैं। आप देखिए, असल समस्या कार्यान्वयन और निष्पादन की है।''
फिर मेहता ने कहा कि टॉप कोर्ट ने तहसीन पूनावाला मामले में 2018 के फैसले में निर्दिष्ट किया है कि घृणास्पद भाषण क्या है और कोई भी किसी भी समुदाय के खिलाफ घृणास्पद भाषण को उचित नहीं ठहरा सकता। वह आगे बोले, ‘‘कानून बहुत स्पष्ट है कि अगर कोई नफरत भरा भाषण दिया जाता है, तो कोई भी प्राथमिकी दर्ज करा सकता है और अगर प्राथमिकी दर्ज नहीं होती है, तो कोई भी अदालत का दरवाजा खटखटा सकता है।’’
हालांकि, उन्होंने कहा कि कुछ व्यक्ति और संगठन अब नफरत फैलाने वाले भाषणों की शिकायतों को लेकर संबंधित थाने के बजाय सीधे उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटा रहे हैं तथा आदेशों के उल्लंघन पर अवमानना कार्रवाई का अनुरोध कर रहे हैं। उन्होंने कहा, ‘‘इतना ही नहीं, एक नई प्रथा सामने आई है, जहां लोग किसी कार्यक्रम में नफरत भरे भाषण दिये जाने की आशंका व्यक्त करते हुए अदालत का दरवाजा खटखटाते हैं और अग्रिम फैसले का अनुरोध करते हैं।’’
मेहता शीर्ष अदालत के 28 अप्रैल के उस आदेश का जिक्र कर रहे थे, जिसमें इसने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों (यूटी) को बिना किसी शिकायत के भी नफरती भाषण देने वालों के खिलाफ मामले दर्ज करने का निर्देश दिया था। न्यायालय ने अपने आदेश में ऐसे भाषणों को देश के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने को प्रभावित करने में सक्षम ‘गंभीर अपराध’ बताया था।
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अभिषेक गुप्ता author

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