क्या सरदार पटेल के परिवार का नेहरू ने किया था अपमान, कहानी सुनेंगे तौ चौंक जाएंगे

लोग आमतौर पर सवाल पूछते हैं कि क्या जवाहर लाल नेहरू ने सरदार बल्लभ भाई पटेल के साथ सौतेला व्यवहार किया। यहां पर हम दोनों शख्सियतों और उनके परिवार के बारे में बताएंगे। नेहरू का खानदान राजनीति में सक्रिय है लेकिन सवाल यह है कि क्या पटेल की राजनीतिक विरासत को आगे ले जाने वाला कोई नहीं था।

सरदार पटेल ना होते तो भारत का नक्शा वो नहीं होता, जो आज है। क्योंकि जब देश को आजादी मिली थी तो साढ़े पांच सौ से ज्यादा राजे रजवाड़े और रियासतें थीं। बिना राजाओं को खत्म किए, ये सब राजे रजवाड़े रियासतें अगर किसी ने भारत में मिलाई और पूरा एक देश बनाया तो वो थे सरदार पटेल। लेकिन उन्हीं सरदार पटेल के साथ क्या क्या हुआ। और करने वाला भी कोई और नहीं जवाहर लाल नेहरू। ये सुनकर आप हैरान रह जाएंगे कि कोई सरदार पटेल जैसे नेता के साथ भी ऐसा कैसे कर सकता है। वो भी तब जब सरदार पटेल नेहरू से बहुत सीनियर थे, उम्र से 14 साल बड़े थे, सरदार पटेल गांधी से तब मिले थे जब नेहरू मिले नहीं थे, यहां तक कि नेहरू के पिता मोतीलाल नेहरू की नजर में भी सरदार पटेल हीरो थे। लेकिन नेहरू ने पटेल के साथ जो जो किया, उसकी एक एक डिटेल जब आपको बताउंगा तो आपको इस पर दुख भी होगा और बहुत गुस्सा भी आएगा। लेकिन ये सब आपको डिटेल में बताउंगा। लेकिन सबसे पहले आपसे ये सवाल करता हूं कि आप नेहरू परिवार के बारे में तो बहुत जानते हैं लेकिन क्या आपको सरदार पटेल के परिवार के बारे में पता है।

जवाहर लाल नेहरू का परिवार

जवाहर लाल नेहरू-कमला नेहरू
इंदिरा गांधी- फिरोज गांधी
राजीव गांधी-संजय गांधी
सोनिया गांधी- मेनका गांधी
राहुल गांधी- प्रियंका गांधी- वरुण गांधी

अब सरदार पटेल का परिवार

सरदार पटेल की दो संतान थी पहली मणिबेन पटेल और बेटा डाया भाई पटेल...जो मणिबेन से छोटे थे । सोचिए ये नाम आप में से बहुत से लोग पहली बार सुन रहे होंगे। सरदार पटेल की मृत्यु के बाद मणिबेन पटेल की आर्थिक हालत ठीक नहीं थी इसलिए वो अहमदाबाद नें अपने रिश्तेदारो के घर रहने चली गईं उनकी इस हालत को देखकर कांग्रेस के एक नेता त्रिभुवन दास पटेल ने उनसे सांसद का चुनाव लड़ने का कहा, त्रिभुवन दास की मदद से मणिबेन पटेल 1952 में हुए पहले आम चुनाव में खेड़ा लोकसभा सीट से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीतीं।इसके बाद वो 1957 में आणंद सीट भी जीतीं लेकिन नेहरू ने उन्हें कभी मंत्री पद नहीं दिया...नेहरू की बेरुखी की वजह से कांग्रेस के बहुत से नेता.. मणिबेन पटेल से बचते थे...नेहरू की मृत्यु के बाद वो राज्य सभा में भेज दी गई लेकिन वहां भी वो कांग्रेस की बेरूखी झेलती रहीं और इस व्यवहार से तंग आकर उन्होंने 1970 में कांग्रेस को छोड़ दिया.. इंदिरा गांधी ने उन्हें नहीं रोका...इसके बाद उन्होंने मोरारजी देसाई के गुट में शामिल होकर चुनाव लड़ा और जीती भीं...आप में से बहुत लोग सोच रहे होंगे कि सांसद चुने जाने के बाद भी मणिबेन की हालत में सुधार क्यों नहीं हुआ इसके बारे में मैं आगे बताता हूं लेकिन उससे पहले सरदार पटेल के बेटे डाया भाई के बारे में बताता हूं जिन्हें नेहरू की वजह से कांग्रेस पार्टी को छोड़ना पडा।
डाया भाई पटेल थोड़े बगावती थे इसलिए उन्होंनें जल्दी राजनीति में प्रवेश किया और साल 1939 में पहली बार बॉम्बे म्यूनिसिपल कॉर्पोरेशन के सदस्य चुने गए और 15 साल तक निगम के सिर्फ़ सदस्य बने रहे और 1954 में जाकर बॉम्बे के मेयर भी बने लेकिन सरदार पटेल की मृत्यु के बाद नेहरू ने उन पर भी कोई ध्यान नहीं दिया और इस व्यवहार को देखते हुए उन्होंने 1957 में कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया..बाद में वो महागुजरात जनता परिषद पार्टी से सांसद बने....
अगर नेहरू चाहते तो डायाभाई को कांग्रेस में रोक सकते थे, कोई बड़ी ज़िम्मेदारी दे सकते थे लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया ।डाया भाई पटेल के दो बेटे हुए विपिन और गौतम पटेल लेकिन वो दोनों ही राजनीति से दूर रहे।
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