6 नदियों के पानी पर क्यों है विवाद, भारत-पाकिस्तान के बीच क्या है सिंधु जल समझौता
Indus River Dispute: सिंधु-तास समझौते के तहत पश्चिमी नदियों झेलम, सिंध और चिनाब का नियंत्रण पाकिस्तान के पास है। इसके तहत इन नदियों के अस्सी फीसदी पानी पर पाकिस्तान का अधिकार है। भारत के पास इन नदियों के बहते हुए पानी से बिजली बनाने का अधिकार है लेकिन पानी को रोकने या नदियों की धारा में बदलाव करने का हक नहीं है।



भारत-पाकिस्तान के बीच 1960 में हुआ सिंधु नदी जल समझौता।
Indus River : भौगोलिक रूप से सिंधु नदी जल तंत्र में सिंधु नदी के अलावा झेलम, चिनाब, रावी, ब्यास और सतलज नदियां शामिल हैं। इन सभी नदियों के बहाव वाले क्षेत्र को अंग्रेजीं में बेसिन कहते हैं। सिंधु बेसिन का लगभग 47 प्रतिशत भाग पाकिस्तान में, 39 प्रतिशत भारत में, 8 प्रतिशत चीन में और 6 प्रतिशत अफगानिस्तान में है। वर्ष 1947 में जब देश का विभाजन हुआ तो भारत का पाकिस्तान के साथ बहुत से मुद्दों पर विवाद हुआ, इनमें से विवाद का एक मुद्दा पानी का भी रहा। हालांकि, इस विवाद को सुलझाने की कोशिश हुई और सिंधु नदी जल समझौते के रूप में इस विवाद का हल भी निकला। बीच-बीच में इस समझौते पर विवाद होते रहे है, अब भारत की ओर से पाकिस्तान को नोटिस भेजे जाने के बाद यह मुद्दा एक बार फिर चर्चा में है।
1960 में हुई संधिसिंधु जल संधि, नदियों के जल के वितरण के लिए भारत और पाकिस्तान के बीच हुई एक संधि है। इस संधि में विश्व बैंक (तत्कालीन 'पुनर्निर्माण और विकास हेतु अंतरराष्ट्रीय बैंक') ने मध्यस्थता की। इस संधि पर कराची में 19 सितंबर, 1960 को भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान ने हस्ताक्षर किए थे। इस समझौते के अनुसार, तीन पूर्वी नदियों -ब्यास, रावी और सतलुज का नियंत्रण भारत को, तथा तीन पश्चिमी नदियों-सिंधु, चिनाब और झेलम का नियंत्रण पाकिस्तान को दिया गया।
पाकिस्तान को इस बात का है डरहालांकि अधिक विवादास्पद वे प्रावधान थे जिनके अनुसार जल का वितरण किस प्रकार किया जाएगा, यह निश्चित होना था। क्योंकि पाकिस्तान के नियंत्रण वाली नदियों का प्रवाह पहले भारत से होकर आता है, संधि के अनुसार भारत को उनका उपयोग सिंचाई, परिवहन और बिजली उत्पादन की अनुमति है। इस दौरान इन नदियों पर भारत द्वारा परियोजनाओं के निर्माण के लिए सटीक नियम निश्चित किए गए। यह संधि पाकिस्तान के डर का परिणाम थी कि नदियों का आधार (बेसिन) भारत में होने के कारण कहीं युद्ध आदि की स्थिति में उसे सूखे और अकाल आदि का सामना न करना पड़े।
पाक के पास तीन नदियों का नियंत्रणसिंधु-तास समझौते के तहत पश्चिमी नदियों झेलम, सिंध और चिनाब का नियंत्रण पाकिस्तान के पास है। इसके तहत इन नदियों के अस्सी फीसदी पानी पर पाकिस्तान का अधिकार है। भारत के पास इन नदियों के बहते हुए पानी से बिजली बनाने का अधिकार है लेकिन पानी को रोकने या नदियों की धारा में बदलाव करने का हक नहीं है। संधि के बाद से भारत ने नदियों पर पन बिजली परियोजनाएं बनाए। कई नदियों पर अभी भी परियोजनाओं पर काम चल रहा है। पाकिस्तान को डर है कि भारत नदियों पर डैम बनाकर उसके हिस्से के पानी को रोक सकता है। हालांकि, भारत ने कभी यह नहीं कहा कि वह अपने बांधों के जरिए पाकिस्तान को मिलने वाले पानी पर रोक लगाएगा।
संधि की समीक्षा करना चाहता है भारतयह संधि पुरानी हो गई है। दोनों देशों की जनसंख्या काफी बढ़ गई है। कृषि भूमि की जरूरतें बदली हैं। जलवायु परिवर्तन तेजी से हो रहा है। ऐसे में भारत इस संधि की समीक्षा करना चाहता है। भारत की मंशा है कि दोनों देशों के विकास में इन नदियों के जल का समुचित एवं व्यावहारिक इस्तेमाल हो। भारत अपने हिस्से के करीब 80 प्रतिशत पानी इस्तेमाल नहीं कर पाता है। अब देश की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए एवं पानी के समुचित इस्तेमाल पर भारत आगे बढ़ा है। भारत की तरफ से कश्मीर एवं पंजाब में बांधों पर पनबिजली योजनाएं शुरू की गई हैं जबकि पाकिस्तान में बांधों पर इस तरह की कोई योजनाएं नहीं हैं। यह बात भी पाकिस्तान को अखरती है।
इन दो परियोजनाओं पर पाक को आपत्तिपाकिस्तान को भारत के 330 मेगावॉट के किशनगंगा पनबिजली परियोजना और 850 मेगावॉट के रातले जलविद्युत परियोजना पर आपत्ति है। जबकि भारत का कहना है कि हम विश्व बैंक के नियमों के अनुसार जम्मू-कश्मीर के विकास के लिए इन परियोजनाओं को संचालित कर रहे हैं। समझा जाता है कि भारत द्वारा पाकिस्तान को यह नोटिस किशनगंगा और रातले पनबिजली परियोजनाओं से जुड़े मुद्दे पर मतभेद के समाधान को लेकर पड़ोसी देश के अपने रुख पर अड़े रहने के मद्देनजर भेजा गया है। यह नोटिस सिंधु जल संधि के अनुच्छेद 12 (3) के प्रावधानों के तहत भेजा गया है। वर्ष 2015 में पाकिस्तान ने भारतीय किशनगंगा और रातले पनबिजली परियोजनाओं पर तकनीकी आपत्तियों की जांच के लिये तटस्थ विशेषज्ञ की नियुक्ति करने का आग्रह किया था। वर्ष 2016 में पाकिस्तान इस आग्रह से एकतरफा ढंग से पीछे हट गया और इन आपत्तियों को मध्यस्थता अदालत में ले जाने का प्रस्ताव किया।
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