EWS Reservation: DMK ने SC में दाखिल की पुनर्विचार याचिका, कहा- ओपन कोर्ट में हो सुनवाई
EWS Reservation: डीएमके पार्टी के अध्यक्ष और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने बैठक के बाद सुप्रीम कोर्ट में रिव्यू फाइल करने का फैसला लिया। वरिष्ठ अधिवक्ता पी विल्सन की ओर से दाखिल याचिका में डीएमके ने ये महत्वपूर्ण मुद्दे उठाए हैं।
EWS आरक्षण के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंचा DMK
EWS Reservation: ईडब्ल्यूएस आरक्षण की वैधानिकता बरकरार रखने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ डीएमके पार्टी ने पुनर्विचार याचिका दाखिल की है। डीएमके ने अपनी याचिका में सुप्रीम कोर्ट के 7 दिसंबर को फैसले को चुनौती देते हुआ कहा है कि आर्थिक आधार पर आरक्षण देना और उस कोटे से एससी, एसटी, ओबीसी को बाहर रखना संविधान की मूल भावना के खिलाफ है।
ओपेन कोर्ट में सुनवाई की मांग
डीएमके पार्टी के अध्यक्ष और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने बैठक के बाद सुप्रीम कोर्ट में रिव्यू फाइल करने का फैसला लिया। डीएमके ने याचिका में ये भी मांग कि है कि ईडब्ल्यूएस आरक्षण देश की 133 करोड़ जनता से जुड़ा है ऐसे में पुनर्विचार पर सुनवाई ओपन कोर्ट में होनी चाहिए। वरिष्ठ अधिवक्ता पी विल्सन की ओर से दाखिल याचिका में डीएमके ने ये महत्वपूर्ण मुद्दे उठाए हैं।
इन मुद्दों को उठाया
- सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में इंदिरा साहनी जजमेंट के जरिए बनाए गए कानून पर विचार नहीं किया।
- 2019 में किए गए 103वें संविधान संशोधन की आड़ में उच्च जातियों के लोगों को विशेष आरक्षण दे दिया गया। आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग जैसा शब्द गलत है क्योंकि उच्च जातियों ने कभी भी सामाजिक तौर से भेदभाव का सामना नहीं किया है। संविधान में संशोधन के जरिए जोड़ा गया 'economic weaker section' परस्पर विरोधाभासी हैं। अगर वीकर सेक्शन की बात करें तो अनुच्छेद 46 के मुताबिक अनुसूचित जाति-जनजाति और अन्य पिछड़ी जातियां ही इस श्रेणी में आते हैं। ऐसे में संविधान संशोधन से ये साफ नहीं होता है कि आखिरी सिर्फ आर्थिक आधार पर ही 'Weaker Section' क्यों तय किया गया। याचिका में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट की ही 7 जजों की बेंच ने केरल बनाम एनएन थॉमस मामले में स्पष्ट कर दिया था कि कमजोर वर्ग कौन हैं? लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने अपने हालिया आदेश में जजमेंट को नकार कर उस उच्च वर्ग को 'Weaker Section' मान लिया जो आर्थिक और शैक्षिक तौर पर पिछड़ा नहीं है।
- सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में इस बात पर विचार नहीं किया कि कैसे अगड़ी जातियां एक संविधान संशोधन के बाद कमजोर आंकी जा सकती हैं। जबकि इन अगड़ी जातियों के लोगों ने पीढ़ी दर पीढ़ी अच्छी पढ़ाई के बाद सरकारी नौकरियां ली हैं। यही नहीं कई सालों से इन परिवारों के पास सांस्कृतिक विरासत, सामाजिक ओहदा, किताबें, भाषा मौजूद है। ऐसे में इस उच्च जाति के वर्ग को सिर्फ आर्थिक रूप से पिछड़ा होने पर कमजोर मानना संविधान की मूल भावना के विपरीत है।
- ईडब्ल्यूएस की वैधानिकता को बरकरार रखने वाला सुप्रीम कोर्ट का आदेश कहता है कि संसद संशोधन के जरिए 100 फीसदी तक आरक्षण का प्रावधान कर सकती है। लेकिन ऐसा कहना एक स्वस्थ और बराबर की प्रतियोगिता को समाप्त कर देगी।
- ईडब्ल्यूएस को आरक्षण के लिए जो संशोधन किया गया था उसका आधार सिन्हो आयोग की रिपोर्ट था, लेकिन उसी रिपोर्ट में दावा था कि इस बात के कोई पुख्ता आंकड़े नहीं है कि उच्च जातियों की कितनी आबादी गरीबी रेखा के नीचे है।
- सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में इस ऐतिहासिक तथ्य को नकार दिया कि समाज में अगड़ी जातियां हमेशा से आर्थिक और सामाजिक रूप से फायदे में रही हैं।
- सुप्रीम कोर्ट का अपने आदेश में ये कहना कि आरक्षण की व्यवस्था को समाप्त करके जाति व्यवस्था को खत्म किया का सकता है, ये गलत है। जातिगत आरक्षण की वजह से जाति व्यवस्था नहीं है बल्कि जातियों की वजह से आरक्षण देना शुरू किया गया। डीएमके ने कहा कि इस अमानवीय जातीय व्यवस्था को खत्म करने के लिए जातियों के नाम को खत्म करना होगा। अगर किसी की जाति की वजह से उसे मंदिर में प्रवेश नहीं मिलता तो इसमें आरक्षण का दोष नहीं है।
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