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Opinion India Ka: दशहरा रैली से होगा फैसला, असली Shiv Sena किसकी ?

ये दशहरा रैली यूं ही खास नहीं है..इस दशहरा रैली से शिवसेना की ब्रैंड इमेज जुड़ी है...इस रैली का इतिहास बताता है कि इसने ही शिवसेना की सेना को शक्तिशाली बनाया...56 साल पुराने इस आयोजन की परंपरा बाला साहेब ठाकरे ने शुरू की थी...अब बाला साहेब ठाकरे की इसी विरासत पर अपना-अपना अधिकार जताने के लिए उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे शक्ति प्रदर्शन करने जा रहे हैं..

शिवाजी पार्क की दशहरा रैलियों में हिन्दुत्व की हुंकार भर कर बाल ठाकरे ने अपने समर्थन का आधार पुख्ता किया था क्षेत्रीय दल के नेता होते हुए भी महाराष्ट्र के बाद देश के सियासी क्षत्रप बने तब दशहरे के मौके पर बाल ठाकरे के भाषण का इंतजार उनके समर्थक बेसब्री से करते थे लेकिन विरासत के दोराहे पर आज उनकी पार्टी उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे के बीच बंट चुकी है...दोनों के बीच पार्टी के नाम और धनुष-बाण के प्रतीक के लिए जोर-आजमाइश चल रही है

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पहले जितनी लड़ाई दशहरा रैली के आयोजन स्थल को लेकर थी...अब उससे ज्यादा जोर रैली में भीड़ जुटाने को लेकर है...दोनों ही गुट ज्यादा से ज्यादा भीड़ जुटाने में लगा है...ठाकरे गुट डेढ़ लाख लोगों को जुटाने की कोशिश में है....तो शिंदे गुट इससे दोगुना भीड़ को इकट्ठा करना चाहता है..राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है चूंकि शिवाजी पार्क शिवसेना की दशहरा रैली का पारंपरिक स्थल है..और शिवसैनिकों का इससे सियासी और भावनात्मक जुड़ाव भी है..शिवसैनिक तो इसे शिवाजी पार्क 'शिवतीर्थ' कहते हैं..

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इसी शिवाजी पार्क में मार्च 1995 में शिवसेना के पहले मुख्यमंत्री मनोहर जोशी ने शपथ ली

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